नकली पैरो से इतिहास रचने वाले – चित्रसेन साहू Success Story

Rate this post

चित्रसेन साहू एक माउंटेन मैं है जो साउथ आफ्रिका के किलिमंजरो पर्वत को बिना पैरो के फतह करने वाले भारत के पहले व्यक्ति है , इसके आलावा नेशनल पैरा एथलीट , व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी ,सोशल वर्कर भी है जो उसके ट्रैन दुर्घटना के बाद ही ये सफलता हासिल किया है आइये जानते है इसके सक्सेस स्टोरी , स्ट्रगल और इसके जर्नी को ।

चित्रसेन साहू का परिचय

चित्रसेन साहू छत्तीगढ़ के बालोद जिले के एक छोटे से गांव बेलौदी गांव में एक किसान परिवार से है । एक गरीब परिवार से होने के कारन प्रारंम्भिक शिक्षा ग्राम बेलौदी में 1 ली से लेकर 11 वी तक की पढ़ाई गांव में ही रहकर किया है । 12 वी की परीक्षा को पास के ही जो अपने गांव से 5 किलोमीटर दूर है उसमे किया है । उस समय की पढ़ाई में अच्छे थे ।

क्रिकेट बहुत ही ज्यादा खलते थे । उस समय ऐसा था की गांव में पढ़ाने के लिए टीचर भी नहीं थे । कोचिंग की बात तो दूर वह पर टयूसन की सुविधा भी नहीं थे ऐसे ही घर में रहकर काफी मेहनत करकर 12 वी तक की पढ़ाई किये । घर में पिता जी किसान थे तो उसी के साथ माँ , भाई के साथ किसानी काम भी किया करते थे ।

12 वी के बाद आगे इंजीनियरिंग करने को सोचा था तो 12 वी के बाद काफी मेहनत के बाद GC बिलासपुर में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए । 1 साल तक मकैनिकल इंजीनियरिंग चक्कर काटने के बाद मज़बूरी में ही सिविल इंजीनियरिंग किये । सिविल इंजीनियरिंग में सेकंड ईयर में पढ़ाई में इंटरेस्ट बढ़ने लगते है तो तो 4 सालो तक काफी मेहनत करके सिविल इंजीनियरिंग को पूरा किया ।

इसी बीच में सेकंड ईयर में एयरफोर्स में सलेक्शन भी हुआ था लेकिन किसी कारण वस् से पोस्टिंग नहीं हो पाय । और जब सेकंड बार कॉल जॉब लेटर आया तो उसे यह सोचकर छोडे दिए थे की इसे अब सिविल के बाद ही करना चाहिए । उस समय 3 ईयर था जब कॉल लेटर आया था ।

उसके बाद CDS की तैयारी भी कर रहे थे और एग्जाम ही दे चुके थे उसके बाद SSB की तैयारी कर रहे थे । इस प्रकार से कालेज में  क्रिकेट , घूमना फिरना , ट्रैकिंग करना बहुत ही ज्यादा पसंद थे जो बाद में आपके किलिमंजरो में काम आया  । सभी चीज इस समय तक अच्छे से चल रहे थे और गर्मी दिनों में बिलासपुर घर आ गए थे और वहां से रायपुर जाने वाले थे  ।

चित्रसेन साहू पैरो को कैसे खोय 

8 मई 2014 के आस पास ग्रेजुएशन इंजीनियरिंग ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद 4 जून के आस पास रायपुर में स्कालरशिप के काम से रायपुर गए थे और वही से रायपुर से बिलासपुर भी जाने थे । चार जून को अमरकंटक एक्सप्रेस से शाम 6 बजे लौट रहे थे । उस समय ट्रेन में बहुत ही ज्यादा गर्मी थी और ट्रैन में पानी भी नहीं थे , यहाँ तक की मुँह धोने के पानी भी थे ।

पानी की तलाश में भाटापारा स्टेशन रायपुर में पानी पिने के लिए उतरते है और चढ़ते समय हाथ फिसल जाती है ( शायद किसी ने तेल वाले चीज हैंडल में लगा था ) जिससे ट्रैन और पटरी के बीच में पैर के आ जाने से आपके दोनों पैर ट्रैन से कट जाते है । उस समय बहुत ही ज्यादा शरीर से रक्त बह रहे थे । उस समय भी आप पुरे होश में थे ।

जैसे ही पटरी से पैर काट जाते है तुरंत अपने मोबाइल से सभी घर वाले, दोस्तों को अपने मोबाईल से फोन करते है । RPF  के जवान वही रखे एम्बुलेंस लाते है और आधा घंटा ( आधा घंटा तक आप वही पर रहते है ) तक तहकीकात, डाक्यूमेंशन करने के बाद हॉस्पिटल ले जाते ।

चित्रसेन साहू ने कई इंटरव्यू में बताते है की आप ऐसा सोच रहे थे की सायद एक पैर कटेगा । उस समय आपकी तेजी से काम कर रहे थे की और मन ये सोच रहे थे की मेरा परिवार क्या होगा , डिफेन्स की तैयारी का क्या होगा , न जाने कई प्रकार से मन में सवाल उठ रहे थे । रात 11 बजे आपका सर्जरी शरू होता है ।

इसके बाद RPF के जवानो ने मदद के बाद एम्बुलेंस से हॉस्पिटल में ले जाकर मदद की । आप कई इंटरव्यू में बताते है की उस आपके साथ सुबह से ही ऐसी घटना हो रहे थे शुबह जब आप जाने वाले थे तो आपका बैग गुम गए थे उसके शाम को ढूंढे तो वो बैग भी मिल गए । उसके बाद वापस आते एक्सीडेंट के बाद रायपुर ले जाते  समय एम्बुलेंस से गाय के साथ एक्सीडेंट हो गया । मतलब 4 जून का दिन आपके लिए एक बुरा दिन रहा जिसने आपको बारबार सचेत किया था ।

घटना के बाद परिवार वाले , दोस्त , कॉलेज वाले सभी लोग मिलने के किय आते है । उस समय परिवार की आर्थिक इस्थिति थोड़ा ख़राब थे । लोग हॉस्पिटल आये सहनुभूति देकर चले जाते थे ।

चित्रसेन साहू कई इंटरव्यू में बताते है की 5 मेजर सर्जरी होने के बाद 33 दिनों तक हॉस्पिटल में रहे । इस समय आपकी हालत बहुत ही ख़राब थे जिसमे आपने परिवार वाले , घर वाले में , आपके दोस्त में बहुत ही ज्यादा मदद की उस समय सकारात्मक सोच के साथ गूगल की मदद से कैसे, कौन-कौन एग्जाम है , कैसे मै जॉब के लिए अप्लाई कर सकता हु और न जाने कई प्रकार से मन में सवाल उठ रहे थे ।

चित्रसेन साहू बिना पैरो के सरकारी जब की शुरआत

3 महीने बाद से ही कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी शुरू कर चुके थे और एग्जाम देने शुरू कर दिए । जब एग्जाम सेण्टर में एग्जाम देने जाते थे तो व्हील चेयर से ही एग्जाम देने जाते थे तो आपको बहुत ही ज्यादा परेशानी होती थी ।  कभी कभी तो एग्जाम में दरवाजे के सबसे आगे होते थे तब जब हवा चलती थी बहुत ही ज्यादा दर्द महसूह किया करते थे और एग्जाम  में डेढ़ घंटे में एग्जाम देते थे, बाकि समय में वही एग्जाम सेण्टर में ही सो जाते थे ।  बहुत सारे एग्जाम देने के बाद हाऊसिंग बोर्ड के एग्जाम में क्लियर करने के बाद अस्सिस्टेंट इंजिनियर के पद में सरकारी जॉब शुरू कर देते है ।

इसके बाद artificial पैर से office जाते और वही से आते । 2017 में ऑटोमेटिक कार खरीदते है उसके लाइसेंस बनाने के लिए हाईकोर्ट में डेढ़ साल तक हाईकोर्ट पेंडिग रहा  और 3 जुलाई 2019 को जजमेंट में सभी विकलांगो को योग्य है उनको लाइसेंस बनाने का फैसला सुनाया जो आपकी पहली सफलता कहा जा सकता है ।

2017 में व्हीलचेयर बासकेटबॉल की टीम चयनित हुए और टीम भी बना लिए ।

Tracking की शुरुआत 

चित्रसेन साहू
चित्रसेन साहू

जब आप एक्सीडेंट के बाद बिस्तर में थे तब अरुणिमा सिन्हा के नया लांच किए हुआ पुस्तक तो देखकर मन सोचे थे की इसके विकलांगता के बाद भी आगे कुछ किया जा सकता , आगे बड़ा जा सकता है लेकिन इसके पहले माउंटेन ट्रैकिंग का कभी नहीं सोचे थे । मिस्टर राहुल  गुप्ता जी जो tracking कराते थे उस tracking को ज्वाइन कर लेते है और वही से छोटे छोटे ट्रैकिंग करना शुरू किये थे ।

आप कई इंटरव्यू में बताते है कि जब tracking करने लगे थे ट्रैकिंग अच्छे लगने लगी थी तब 2019 में मई माह में  अरुणाचल प्रदेश  में अपने दोस्त के ट्रवलिंग एजेंसी में 10 दिनों की ट्रेनिंग में करीब 14000 फ़ीट तक ट्रैकिंग किए । इसके बाद में आपको लगने लगा की इतना tracking करने के बाद भी मेरा शरीर में कोई प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा है उसके बाद से plan बनाते  है की सिबम्बर 2019 में अफ्रीका  के सबसे  ऊँचे  पहाड़  किलिमंजरो में ट्रैकिंग करने के लिए जाते है ।

अफ्रीका के किलिमंजरो पहाड़ में 5 दिन में ही ट्रैकिंग पूरा किये को किये थे । 3 दिन लगातार चलते रहे 4 और 5 दिन थोड़े आराम किये । 4 थे दिन 8 घंटे पहाड़ में चढ़े और चार घंटा रेस्ट किए और रात में आगे बढ़े ।

लगातार जब 12 घंटे तक tracking करने से शरीर पुरे थकने के बाद भी अपने पुरे जोश के साथ आगे बढ़ते गए । जब पहाड़ के उचाई में पहुंचे थे तब आपके आर्टिफिशल पैर में राख या पाठरो के दुकड़े फिसले का काम करती और बड़ी सावधानी के माइनस 15 से 10 डिग्री तापमान में भी पुरे साहस के साथ जोश के साथ किलिमंजारो की पहाड़ी में ट्रैकिंग करने में सफल रहे ।

ये पहाड़ी में चढ़ने के बाद आप भारत के सबसे पहले व्यक्ति बन गए जो पहली बार किलिमंजरो की पहाड़ी में चढाई की । ये बड़ी साहस की बात और शौर्य की बात है बिना पैर के सिर्फ आर्टिफीसियल leg के सहारे इतनी उचाई तक गए और अपने आप को बिना पैरो के इतिहास रचने का अदम्य साहस  रखते है ।

इस उचाई तक पहुंचने के लिए आपने बहुत ही ज्यादा संघर्ष किया है और यहाँ पहुंचने के बाद लोग आपसे बहुत कुछ सीखेंगे और मोटीवेट होंगे खासकर के उनलोगो को जो  विकलांग है और कभी भी घर से बाहर नहीं निकले है उसके लिए भी आप एक रोल मॉडल की तरह काम किये है ।

इसके बाद आपके ऑस्ट्रेलिया की सबसे बढ़े एवरेस्ट कोजियस्को को भी फतह किया है । उसके बाद 14000 फ़ीट से स्काई डायविंग किये । इसके बाद Mission Inclusion शुरू करते है ( मिशन इन्क्लूजन दूसरे लोगो को जो कभी घर से बहार निकले में मदद करता है और दूसरी जो विकलांगता में दया दिखते है उसके लिए )


24 बार फेल Officer Success Story -Prem Kumvat

The Youth of Icon India – Priyanka Bissa

Leave a Reply