2+ छत्तीसगढ़ की लोक कथा | ब्राम्हण और भाट 2 minutes

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 ब्राम्हण और भाट की कहानी (छत्तीसगढ़-की-लोक-कथा)

बहुत पहली की बात हरे एक झन ब्राम्हण अउ एक झन भठ रहए । ब्राम्हण अउ भाट के मध्य गहरी दोस्ती रहए । दुनो झन हा शाम के समय एक दूसरे से मिलतिस अउ दुनो झन हा अपन सुख अउ दुःख के गुट ला गोठियाये ।

दुनो झन के पास में पैसा नई रहए ता दोनों झन हा सोचथे थे की कैसे दुनो झन हा पैसा के जुगाड़ करे जाए ।

एक दिन भाठ ने ब्राम्हण से कहिथे की चलो हम दोनों राजा गोपाल के दरबार में जाबो । यदि राजा गोपाल हा हमर से खुश हो जाहि तब हमर मन के परेशानी अउ पैसा के टेंसन परेशानी हा दूर हो जाहि ।

ब्राम्हण हा कथे – देगा तो वह कपाल क्या करेगा वह गोपाल ।

भाट हा कथे ऐसे बात नई हे संगवारी देगा तो गोपाल क्या करेगा कपाल ?

दुनू झन हा ये सोच के परेशान होंगे  .

लेकिन ब्राम्हण हा बार बार एकेच बात ला दुहराय – देगा तो वह कपाल क्या करेगा वह गोपाल ?

राजा गोपाल हा बहुत दानी राजा रहए वह जरूर देगा चलो एक बार जा के देखतन ओकर पास में । कपाल का कर सकथे ।

अउ ऐसे करत करत दुनो झन हा बहस हो जथे । अउ दुनो झन के बहस हो जाने के बाद में दुनो झन हा निर्णय लेथे की राजा के दरबार में जा के देखा जाए ।

इस प्रकार राजा अउ ब्राम्हण हा एक निर्णय करके राजा गोपाल के दरबार में चले जथे अउ अपन अपन बात ला कथे ।

राजा गोपाल हा मने मन भाट के बात ला सुन के खुश हो जथे अउ ब्राम्हण के प्रति राजा हा नाराज हो जथे ।

राजा हा दुनो झन ला दूसर दिन बुलाथे ।

दूसर दिन जब ब्राम्हण अउ भाट हा राजा के दरबार में पहुंच जथे तब राजा गोपाल हा अपन देह रख्सक ला इशारा करथे ।

राजा के देह रक्षक हा ब्राम्हण को चावल , पैसे अउ दाल , वस्त्र देथे ओकर बाद में भाट ला चावल , घीव अउ कद्दू दिस । भाट के कद्दू के अंदर में सोना को भर के रखे रहिस हे ।

राजा हा दुनो झन ला बिदा दे के कथे अब दुनो झन हा घर जाके खाना बना के येला खा लुहू । अउ शाम होय के बाद में फिर से दरबार में हाजिर हो जाहु ।

भाट अउ ब्राम्हण हा साथ में चले जथे अउ नदी के किनारे में जाके खाना बनाये के शुरू करथे ।

भाट हा ब्राम्हण ला देखत रिहिस हे अउ सोचत रिहिस हे की राजा हा येला दाल भी दे हे अउ मोला कद्दू बस से दे देहे । येला छीलना पढ़ी , कटेला पढ़ही ओकर बाद में एकर सब्जी बनहु । ब्राम्हण के तो बड़े मजा हे दाल जल्दी से बना डरही ।

ऊपर ले ये कद्दू यदि महा येला खा लुहू तब मोर कमर के दर्द हा फिर ले चालू हो जाहि ।

भाट हा ब्राम्हण ला कथे संगवारी तेहा ये कद्दू ला लेकर के तेहा दाल ला मोला दे देबे ता बहुत अच्छा होही कबर की कद्दू ला खातों तहन मोर कमर में दर्द चालू हो जथे ।

ब्राम्हण हा भाट के बात ला सुन के भाट के बात ला मान जथे अउ कद्दू ला ब्राम्हण ला दे देथे ।

एकर बाद में दुनो झन हा अपन अपन खाना बनाये के शुरू करथे ।

ब्राम्हण हा जब कद्दू का काटते तब ओला कद्दू के अंदर में ढेर सारे कद्दू से बहार गिर जथे सोना ला देख के ब्राम्हण हा बहुत ही जायदा खुश हो जथे । अउ सोचथे की देहे तो कपाल का करे गोपाल ।

ब्राम्हण हा सोना ला कपडा में बांध लेथे अउ कद्दू ला सब्जी बना के खा जथे अउ कद्दू के आधा भाग ला राजा ला दे बार रख लेथे ।

कुछ देर बाद में जब दुनो झन हा राजा के दरबार में पहुंच जथे तब राजा गोपाल भाट ला देखत रीहिस हे लेकिन भाट के chehre में koi raunak नई dekhai det रहिस jekar कारन से राजा गोपाल आचर्य में पढ़ गे .

फिर राजा हा कथे दे हे तो गोपाल का करहि कपाल का ये ठीक बात नई हे ।

तब ब्राम्हण ने राजा को कद्दू का एक हिस्सा ला राजा के आगू मा रख लिश ।

राजा हा एक बार ब्राम्हण ला देखिस अउ एक बार ब्राम्हण ला देखिस फिर ओहा भाट ला कथे कद्दू ला तो मेहा तोला दे रेहेव हो ?

भाट हा कथे हव मेहा दाल ओकर से लेव अउ कद्दू ला ओला दे देव ।

राजा गोपाल हा ब्राम्हण के और देखथे ब्राम्हण हा मुस्कुराते हुए कथे देहे हे तो कपाल का करे गोपाल ।

यंहा का कपाल किस्मत को कहा गया है , वंही गोपाल राजा के लिए इस्तेमाल किया गया है ।

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गरीब मनखे (chhattisgarh lok katha in hindi)

एक झन गरीब मनखे अपन गरीबी ले बढ़ परेशान रहए । गरीबी ला अपन भाग्य के दोष माने ।

एक घाव ओहा एक झन साधु करा जाथे अउ ओला कथे महराज मेहा बढ़ गरीब हरो , मोर गरीबी ला मेटे के कोन्हो उपाए बताओ ।

ता महत्मा है कथे – मोर पहचान एक झन व्यापारी है कथे ओहा 25 हजार माँ आणखी खरीद लेथे का तेहा अपन आँखि ला बेचबे ।

मनखे ह कहथे – नहीं महराज में अपन आँखि ला बेचहु ता अंधरा नई हो जाहु ।

ता हाथ ला बेचबे का ? हाथ के ओहा 20 हजार देते ।

 छत्तीसगढ़ की लोक कथा
छत्तीसगढ़ की लोक कथा

नई महराज अगर मेहा हाथ ला बेच हु ता का काम के रहु ।

महात्मा हा अउ कथे ओहा पांव घला ख़रीदते पांव के 15 हजार देथे ।

गरीब हा कथे – नई महराज अगर मेहा पांव ला बेच हु ता चल कैसे पहु  .

ता इक काम कर ते अपन जम्मो शरीर ला बेच 1 लाख मा    .

ओमा मनखे हा कथे – एक लाख में का ओहा मोला एक करोड़ भी दिहि याभो ले मेहा अपन शरीर ला नई बेचव .

 mahatma  हा कथे – जउन मनखे 1 करोड़ ले ज्यादा कीमती नई बेच सके ओहा कैसे जह सकथे मेहा गरीब हरव  . एकर ले बढ़ हसी के बात  का होही बेटा ये शरीर हा एक ठन खजाना हरे , एकर ले काम ले मेहनत कर , तेहा अपन शरीरी के पूरा सदुपयोग करबे ता रुपया पैसा तो का तेहा आसमान के तारा ला घलो झीख सकथस । 

मनखे हा ये ज्ञान ला पाके धन्य हो जथे अउ यही ज्ञान के बदौलत में ओहा एक दिन बहुत बड़े आदमी बनथे ।

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