छत्तीसगढ़ की भाषा |16 CG Boli | Chhattisgarhi Bhasha

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छत्तीसगढ़ भाषा Language Of Chhattisgarh को प्राचीन काल में कोसली कहा जाता था किंतु विगत दो ढाई वर्षो से दक्षिण कौशल को छत्तीसगढ़ कहे जाने के कारण यहां के लोग कोसली को छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi)कहा जाने लगा । यह संस्कृति अनुदामिनी भाषा है। डॉक्टर महेंद्र चंद्र शर्मा ने इसे संस्कृत की पठयारी बहन कहां है।

Chhattisgarhi Bhasha का इतिहास (CG Boli)

छत्तीसगढ़ में प्राप्त के शिलालेखों के आधार पर छत्तीसगढ़ी भाषा Chhattisgarh Local Language का जन्मदाता ईशा पूर्वी की तृतीय शताब्दी तक जाती है। इससे पहले ईसा पूर्व चतुर्दशी तिथि की मानी गई थी प्राकृतिक भाषा के शिलालेख पूर्व दिशा में तथा शौरसेनी प्राकृतिक के शिलालेख के आधार पर उत्तर दिशा में मिले जिनसे या प्रमाणित होता है कि दोनों प्राकृतिक भाषाओं के मध्य के क्षेत्र में इन के मिश्रण से एक नए भाषा और भिन्न भाषा प्राकृतिक शौरसेनी की तुलना में मागधि भाषा के लक्षणों से अधिक प्रयुक्त होने के कारण अर्धमगधी शब्द बनाया गया ।

इन तीनों भाषाओं के कारण से छत्तीसगढ़ के उत्तर पश्चिम में और सैनिक और बुंदेली भाषा देखी जा सकती है वहीं छत्तीसगढ़ के अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं में अर्ध मागधि छत्तीसगढ़ी भाषा Chhattisgarhi Bhasha ( छत्तीसगढ़ी बोली) देखे जा सकती है।

यदि प्राचीन काल में देखे तो छत्तीसगढ़ में भी उत्तर भारत के विविध क्षेत्रों में बोले जाने वाले संस्कृत का स्थान प्राचीन ईसा की तीसरी शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी तक संस्कृत भाषा का प्रभाव रहा है इसके प्रमाण यहां उस अवधि के लगभग एक सौ शिलालेख प्राप्त हुए हैं ।

एक सहस्त्र वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में हैहय वंशी नरेशओं का राज्य आरंभ हुआ इन नरेश होने छत्तीसगढ़ में अर्धमगधी भाषा बोलनी शुरू की और प्रचार करने शुरू।

जो पहले से आ रही बोली आर्य बोली द्रविड़ बोली और आग्नेय बोली पहले से बोली जाती थी लेकिन हैहय वंशी के आने के बाद अर्धमगधी भाषा बोली का प्रचार हुआ जिनसे के पुराने भाषा मात्र वन्य पहाड़ी क्षेत्रों में है बोले जाने लगे और छत्तीसगढ़ के अन्य भागों में सिमटकर के रह गई।

छत्तीसगढ़ी भाषा Chhattisgarhi Bhasha क्षेत्र के दक्षिण पूर्वी विस्तार को संभाले हुए हैं और छत्तीसगढ़ में वर्तमान बोली छत्तीसगढ़ी अर्धमगधी मानक हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ के घरों और गलियों में, खेतों और लोग संस्कारों में, मात्र जात भाषा के रूप में, बोली जाती है।

CG Boli
CG Boli

किंतु छत्तीसगढ़ के कुछ-कुछ भागों में द्रविड़ भाषा परिवार के Chhattisgarh Local Language में गोंडी बोली, उराव बोली, तेलंगी बोली, दुरली बोली तथा आग्नेय भाषा परिवार के आदिवासियों की बोलियां कोरकू , खड़िया, खेरवाड़ी आदि छत्तीसगढ़ के छोटे-छोटे क्षेत्रों आदिवासी क्षेत्रों मैं यह भाषा बोली (Chhattisgarhi Language) जाती है।

छत्तीसगढ़ की भाषा के उद्विकास (CG Boli)

छत्तीसगढ़ की भाषा का विकास के अन्य आधुनिक भाषाओं की तरह प्राचीन आर्य भाषा से हुआ है गुरुग्राम आर्यों की प्राचीन भाषा समय के साथ परिवर्तित हो गई और उसे हिंदी और उसकी उप भाषाओं का विकास हुआ। विभिन्न सारे उप भाषाओं के मिलने से भारत में अनेक बोलियां का उद्भव हुआ जिनमें से छत्तीसगढ़ी बोली Chhattisgarh Local Language भाषा एक है।

छत्तीसगढ़ी भाषाओं Language Of Chhattisgarh के विकास के क्रम को व्याकरण कर्ताओं ने तीन भागों में विभाजित किया है-
1. प्राचीन आर्य भाषा काल(1500-500 B.C.)
2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल – (500 B.C. -1000 AD )
3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल – (1000AD + अब तक) 

1. प्राचीन आर्य भाषा काल (CG Boli) ( 1500-500BC)

इस युग के भारतीय आर्यों के भाषाओं के उदाहरण हमें प्राचीनतम ग्रंथ वेदों से मिलते हैं। प्राचीन युग के अंतर्गत वैदिक और लौकिक दोनों भाग आते हैं । उस समय संस्कृत समाज के परस्पर विचार विमर्श विनिमय की भाषा थी और संस्कृत भाषा कई सदी तक चलती रहे। संस्कृत का प्रथम शिलालेख 150 ईसवी में रूद्र धर्मन के शासनकाल में गिरनार शिलालेख प्राप्त हुआ है तब से 12 वीं सदी तक इसको राज दरबारों यह भाषा चलता रहा।

जब बौद्ध धर्म का उदय हुआ उससे पहले वहां संस्कृत बोली अब प्रचलित थी लेकिन बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही स्थानीय बोलियों को महत्व मिला। भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार को प्रभावी बनाने के लिए जन बोलियों को चुना जिसमें उस समय की जन बोली पाली सर्वोपरि थी। पाली भाषा में जन भाषा Chhattisgarh Local Language और साहित्यिक भाषा मिलाजुला हुआ रूप देखने को मिलता है।

 2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा का काल (CG Boli) ( 500BC – 1000 AD )

मध्यकाल की प्राचीन भाषा का उदाहरण अशोक जी धर्म लिपियों और पाली ग्रंथों में मिलता है। मध्यकाल में धीरे-धीरे प्रादेशिक भिन्नता बढ़ती गई जिससे मध्यकाल में अलग-अलग प्राकृत भाषा का विकास हुआ। संस्कृत ग्रंथों में भी विशेष रूप से नाटकों में इन प्राकृतो भाषा का प्रयोग हुआ मिलता है। इन प्राकृत भाषा में सौरसेनी, मगधी, अर्द्ध मगधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि प्रमुख भाषा रही है ।

साहित्य में प्रयुक्त होने वाले व्याकरण चारों ने प्राकृति भाषाओं को कठिन, बांध दिया किंतु जब जैन समाज को इन गोलियों का और व्याकरण का सही से उच्चारण नहीं हो पाया तो उन्होंने नई भाषा नहीं बोली का विकास हुआ जिन्हें व्याकरण आचार्यों ने लोगों की इन नवीन बोलियों को अब अपभ्रंश नाम दिया ।

अपभ्रंश – मध्यकालीन भारतीय भाषा का चरम विकास अपभ्रंश भी हुआ। आधुनिक आर्य और हिंदी मराठी पंजाबी उड़िया आदि की उत्पत्ति इन्हीं अपभ्रंश उसे हुई है। एक प्रकार से यह अपभ्रंश भाषाएं प्राकृत भाषाओं और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की कड़िया है।

अपभ्रंश के रूप प्रचलित थे जिसे आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ।
1 . मागधी अपभ्रंश – बिहारी , उड़िया, बंगाली , असमिया
2 . अर्ध मागधी अपभ्रंश – पूर्वी हिंदी, अवधि, बघेली , छत्तीसगढ़ी language Spoken In Chhattisgarh।
3 . शौरसेनी – पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, ब्रजभाषा , खड़ी बोली ।
4 . पैशाची अपभ्रंश , – लहंदा , पंजाबी।
5 . ब्रांचड अपभ्रंश – सिन्धी
6 . खस अपभ्रंश – पहाड़ी कुमायचनी ।
7 . महाराष्ट्री अपभ्रंश – मराठी ।

 3 . आधुनिक आर्य भाषा काल (CG Boli) – ( 1000 ऐडी से वर्तमान तक)

भारतीय आर्य भाषाओं के वर्तमान युग का प्रारंभ 1000 AD से माना जाता है जिनके महत्व की दृष्टि से आर्य भाषा के विकास सर्व परी रहा है । भारत में आर्य भाषा बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। दूसरे नंबर में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा की दृष्टि से द्रविड़ परिवार की भाषाएं इसके बाद में आती है।

पैसची, सौरसेनी , महाराष्ट्री , आदि अपभ्रंश भाषाओं से क्रमशः आधुनिक सिंधी, पंजाबी, हिंदी ,राजस्थानी गुजराती , मराठी , पूर्वी हिंदी , बिहारी , बांग्ला , उड़िया आदि भाषाओं को जन्म दिया।

सौरसेनी प्राकृत अपभ्रंश से हिंदी की पश्चिमी शाखा का जन्म हुआ। इसकी दो प्रधान बोलियां हैं एक ब्रज और दूसरी खड़ी बोली है।हिंदी की दूसरी शाखा है पूर्वी हिंदी जिसका विकास अर्धमगधी से हुआ है जिसका तीन प्रमुख बोलियां हैं अवधि , बघेली व छत्तीसगढ़ी language Spoken In Chhattisgarh ।

अवधी बोली में साहित्यिक परंपरा की बोली रही है जिसमें तुलसीदास और जायसी ने अपने काव्य अवधी भाषा में लिखे हैं।
बघेली और छत्तीसगढ़ी Chhattisgarhi Bhasha में प्राचीन समय में उल्लेखनीय साहित्य का विकास नहीं हुआ है जिसका विकास और क्षतिपूर्ति वर्तमान में हो रही है।

छत्तीसगढ़ की बोलियां की भाषाई परिवार (CG Boli)

छत्तीसगढ़ की प्रमुख बोलियों को मुख्य तीन भाषा परिवार में बांटा जा सकता है यह तीन भाषा Chhattisgarhi Bhasha परिवार निम्न है –
1 . मुंडा भाषा परिवार
प्राक् मुंडा –
प्राक् दक्षिणी मुंडा
प्राक् उत्तरी मुंडा

A . प्राक् दक्षिणी मुंडा –
क. प्राक बस्तर मुंडा – गंदबा
ख . प्राक् मध्य मुंडा – खड़िया

B . प्राक् उत्तरी मुंडा
क . प्राक् खेरवारी – विदहो
ख . कोरवा – नगेसिया , सौता , मांझी , मझवार , खेरवारी ।

2 . द्रविड़ भाषा परिवार
प्राक् द्रविड़
A . दक्षिण केंद्रीय द्रविड़/ गोंडी समूह – दोली , दंमाडी माडिया , मुड़िया , अबूझमाडिया
B . केंद्रीय द्रविड़ – परजी , धु्रवी
C . उत्तरी द्रविड़ – कुडखू या उरांव

3 . आर्य भाषा परिवार
प्राक आर्य
A . अर्ध मागधी – पूर्वी हिंदी छत्तीसगढ़ी
B . मागधी – उड़िया , मंत्री
C . विजनिकृत – हल्बी , सदरी

छत्तीसगढ़ी की उप भाषाओं के वर्गीकरण का आधार (CG Boli)

ग्रियर्सन ने भरतरी को छोड़कर छत्तीसगढ़ chhattisgarh के वर्गीकरण में स्थान दिया है बल्कि इसे मराठी से जोड़ते हुए छत्तीसगढ़ी (Chhattisgarhi Language) , ओड़िया तक मराठी का एक मिश्रित रूप बताया है ।

छत्तीसगढ़ी Chhattisgarh Local Language के रायपुरी बोली और बिलासपुरी बोली दोनों भाइयों का पृथक होने का आधार शिवनाथ नदी को बताया है जो इन दोनों संभागों की सीमा रेखा को निर्धारित करती है।

सरगुजिया और सदरी कोरवा के विभाजन का आधार पर्वत मालाएं हैं।

बैगानी , बिन्झवारी , कलगा , हुलिया का वर्गीकरण का आधार जातिगत माना गया है ।
खल्हाटी एवं बस्तरी का वर्गीकरण प्राकृतिक आधार पर किया गया है।

छत्तीसगढ़ी की भाषाओं का वर्गीकरण (CG Boli)

 ग्रियसन के अनुसार छत्तीसगढ़ की भाषा का वर्गीकरण

ग्रियर्सन ने भारत का भाषा सर्वेक्षण में भारतीय भाषाओं का सर्वोत्कृष्ट विश्लेषण किया है। ग्रियर्सन ने हिंदी प्रदेश को पूर्वी हिंदी और पश्चिमी हिंदी में विभाजित किया है तथा पूर्वी हिंदी के अंतर्गत केवल दो बोलियां अवधि और छत्तीसगढ़ी बोली Chhattisgarhi Bhasha को शामिल किया है।

उन्होंने छत्तीसगढ़ का वर्गीकरण क्षेत्रीय एवं जातीय आधार पर ही है।
क्षेत्रीय आधार पर – छत्तीसगढ़ी, खल्टाही , सरगुजिया।
जाति आधार पर – सदरी , कोरवा , बैगानी , बिझवारी , कलिंगा ।

ग्रियर्सन के अनुसार ग्रियर्सन ने छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ की भाषा को 9 भागों में विभाजित किया है –

  1. बिलासपुरी छत्तीसगढ़ी
  2. कवर्धा छत्तीसगढ़
  3. खैरागढ़ छत्तीसगढ़ी
  4. खल्लटाली छत्तीसगढ़ी
  5. सरगुजिया छत्तीसगढ़ी
  6. सदरी कोरवा छत्तीसगढ़ी
  7. बैगानी छत्तीसगढ़ी
  8. बिनंछवारी छत्तीसगढ़ी
  9. कलंगा भुलिया छत्तीसगढ़ी

डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा के अनुसार

नरेंद्र देव ने 1979 मैं अपने ग्रंथ छत्तीसगढ़ी भाषा Chhattisgarh Local Language का उद्विकास में विश्लेषण को आगे बढ़ाया है।
1 . छत्तीसगढ़ी
A . रायपुरी , B – बिलासपुरी
[रायपुर और बिलासपुर की भाषा Chhattisgarhi Language को भौगोलिक विभाजन रेखा सीमा नदी के साथ में विभाजित किया।] 2. खल्टाही
3 . लरिया
4 . सरगुजिया
5 . सदरी कोरवा
6 . बैगानी
7 . बिन्झवारी
8 . कलंगा
9 . भुलिया
10 . बस्तरी या हल्बी

भौगोलिक आधार पर छत्तीसगढ़ी का स्वरूप
उत्तरी छत्तीसगढ़ी ( भंडार छत्तीसगढ़ी )
पूर्वी छत्तीसगढ़ी ( उत्ती छत्तीसगढ़ी)
दक्षिण छत्तीसगढ़ी ( रक्स्हून छत्तीसगढ़ी )
पश्चिमी छत्तीसगढ़ी ( बूढ़ती छत्तीसगढ़ी )
मध्य छत्तीसगढ़ी ( केन्दरी छत्तीसगढ़ी )

1961 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की बोलियां (CG Boli)

1. बैगानी
2 . भुलिया
3 . बिलासपुर
4 . बिन्झवारी
5 . देवार
6 . धमधी
7. गौरिया
8 . कांकेरी
9 . लरिया
10 . नागवंशी
11 . पन्डो
12 . पनकी
13 . सतनामी
14 सरगुजिया
15. छत्तीसगढ़ी
16 . गोरी

छत्तीसगढ़ के बोलियों का परिचय (CG Boli)

1. छत्तीसगढ़ी (मध्य छत्तीसगढ़ी)
मध्य छत्तीसगढ़ी को छत्तीसगढ़ी का मानक रूप माना जा सकता है। यह मध्य छत्तीसगढ़ी राजनांदगांव, दुर्ग , रायपुर , बिलासपुर , ,जांजगीर चांपा , बलोदा बाजार , धमतरी क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarhi Bhasha बोली जाती है।

2. सरगुजिया
यह कोरिया , सरगुजा , उदयपुर क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ की भाषा Language Of Chhattisgarh बोली जाती है। यह छोटा नागपुर के समीप होने के कारण इस पर नागपुरिया बोली का प्रभाव देखने को मिलता है जो भोजपुरी का ही रूप बताया गया हैं ।

3. खल्टाही
छत्तीसगढ़ की पश्चिमी सीमा के बोले हैं जो विदर्भ तथा मंडला क्षेत्र से लगे हुए हैं। इस बोली पर बुंदेलखंडी का प्रभाव दिखाई देता है।
खल्टाही शब्द की उत्पत्ति खल्ल वाटिका से हुई है जो खलारी का मूल संस्कृत नाम है।
यह बोली बालाघाट जिले के पूरे भाग और रायगढ़ जिले के कुछ हिस्से में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarhi Bhasha बोली जाती है।

4. लरिया
छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों में यह बोली बोली जाती है। छत्तीसगढ़ में यह बोली रायगढ़ ,  गरियाबंद ,  महासमुंद एवं रायपुर में छत्तीसगढ़ की भाषा language Spoken In Chhattisgarh बोली जाती है। इस बोली पर ओड़िया का प्रभाव देखा जा सकता है ग्रियर्सन ने लरिया को छत्तीसगढ़ी का पर्यायवाची माना है।

5. सदरी कोरवा
कोरबा जयपुर की कोरवा जनजाति कि लोगों की बोली है। यह बोली सरगुजा,  बिलासपुर , रायगढ़ के उत्तर वर्दी क्षेत्रों में रहने वाले कोरबा जाति के लोग इस में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarhi Bhasha बोली जाती है।। यह बोली सरगुजा जिले में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। इस बोली में भोजपुरी का प्रभाव है।

6. बैगानी
इसका प्रयोग बैगा जनजाति के लोग करते हैं । छत्तीसगढ़ में यह बोली बिलासपुर और कवर्धा जिले में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarh Local Language बोली जाती है।। इसलिए इसे बैगानी कहा जाता है। बेगानी बोली में घोड़ी और बुंदेली भाषा का प्रभाव पड़ा है।

7. बिंझवारी
यह बोली मुख्यता छत्तीसगढ़ में रायगढ़ और सारंगढ़ के कुछ हिस्सों में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarhi Bhasha Mein बोली जाती है। . इस बोली पर उड़िया भाषा का प्रभाव है।

8. कलंगा
यह बोली उड़ीसा के समीपवर्ती इलाकों मेंमें छत्तीसगढ़ की भाषा language Spoken In Chhattisgarh बोली जाती है। तथा इस पर उड़िया का प्रभाव दिखाई पड़ता है।

9. भुलिया
यह बोली सोनपुर के इलाकों में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarhi Mein बोली जाती है। इस बोली में उड़िया भाषा का अधिक प्रभाव है।
10. परजी
बस्तर कथा संलग्न क्षेत्र उड़ीसा की प्रजा तथा ध्रुवा जनजाति की बोली को परिजी या धुरवी कहां जाता है इस बोली का प्रयोग छत्तीसगढ़ में जगदलपुर, सुकमा ,कोंडागांव कौन सा तहसीलों में , और दंतेवाड़ा में छत्तीसगढ़ की भाषा Language Of Chhattisgarh बोली जाती है।

11. बस्तरिया हल्बी

हल्बी बस्तर की हल्बा जनजाति के लोगों की बोली है यह बस्तर में प्रचलित होने के कारण इसे बख्तरी बोली भी कहा जाता है इस पर मराठी का प्रभाव है।

12. भतरी

भतरी पर उड़िया और हल्दी का प्रभाव है।

13. गोंडी भाषा
गोंडी छत्तीसगढ़ के गोंड जनजातियों द्वारामें छत्तीसगढ़ की भाषा language Spoken In Chhattisgarh बोली जाती है। यह द्रविड़ भाषा समूह की बोली है।

14. दोरली
यहां मुख्य रूप से बस्तर बीजापुर की दक्षिणी पूर्ववर्ती सीमा पर में छत्तीसगढ़ की भाषा Chhattisgarh Local Language बोली जाती है। यह एक गोड़ी बोली है इसमें तेलुगु का अधिक प्रभाव है।
15. अबूझमाड़िया
अबूझमाड़िया बस्तर के दक्षिणी क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की भाषा Language Of Chhattisgarh बोली जाती है।

छत्तीसगढ़ व्याकरण का इतिहास (CG Boli)

छत्तीसगढ़ व्याकरण का यह इतिहास 1850 ईस्वी में छत्तीसगढ़ का व्याकरण तैयार करने में छत्तीसगढ़ के एग्लो वर्नाकुलर स्कूल के हेड मास्टर हीरालाल काव्य उपाध्याय ने अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर छत्तीसगढ़ का व्याकरण छत्तीसगढ़ का इतिहास से जुड़े तथ्य इकट्ठा की। लगभग 100 साल पहले ग्रियर्सन द्वारा भारत का भाषा सर्वेक्षण जिस व्यापक स्तर पर कराया था वह संपूर्ण विश्व के लिए किसी भी क्षेत्र में हुए भाषी सर्वेक्षण में विशालतम था। इस पूरे सर्वेक्षण के दौरान एकमात्र छत्तीसगढ़ का वैज्ञानिक व्यवस्थित व्याकरण प्राप्त हुआ था।

यह व्याकरण प्राप्त होने पर ग्रियर्सन इतने रोमांचित और उत्साह हुए कि उन्होंने हीरालाल काव्योपाध्याय के सत सम्मान नाम उल्लेखित सहित इसे सन् 1990 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल शोध पत्रिका के खंड 49 भाग 1 में अनुदित और संपादित कर प्रकाशन कराया।

छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी व्याकरण का यह परंपरा आगे सतत विकसित होती रही। सन 1921 में पंडित राजीव लोचन प्रसाद पांडे ने राय बहादुर हीरालाल के निर्देशन में इस को विस्तृत रूप से पुस्तकार प्रकाशित कराया।

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 छत्तीसगढ़ी पर प्रकाशित भाषिक कार्य (CG Boli)

छत्तीसगढ़ी पर प्रकाशित कार्य में पुस्तकों या उनके खंडों का कालक्रम निम्नानुसार दिया जा रहा है –

छत्तीसगढ़ी बोली Language Of Chhattisgarh का व्याकरण – हीरालाल काव्योपाध्याय का है जो
[ ग्रामर आफ छत्तीसगढ़ी डायल्कट ग्रियर्सन द्वारा रचित इंग्लिश ग्रामर का हिंदी अनुवाद है। जो वर्तमान समय में ग्रियर्सन की मूल ग्रंथ अनुपलब्ध है]

ग्रामर ऑफ छत्तीसगढ़ी डायल्क्ट ऑफ हिंदी – लोचन प्रसाद पांडे 1921
लिस्ट ऑफ मोस्ट कॉमन छत्तीसगढ़ी वर्डस एंड डिक्शनरी – एडब्ल्यू मेन्जेल ( 1939 )
छत्तीसगढ़ी , हल्बी , भतरी बोली का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन – भालचंद्र राव तैलंग (1966)
छत्तीसगढ़ी बोली (Chhattisgarhi Mein) व्याकरण और कोष – कांति कुमार (1969)
छत्तीसगढ़ी भाषा  शास्त्रीय अध्ययन – शंकर शेष (1973)
छत्तीसगढ़ी भाषा  का उद्विकास – नरेंद्र वर्मा (1979)

छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियां का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन – मन्नूलाल यदु (1982)
छत्तीसगढ़ी शब्दकोश – रमेश चंद्र मल्होत्रा एवं अन्य (1982)
छत्तीसगढ़ी और खड़ी बोली की व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन – साधना जैन (1986)
छत्तीसगढ़ी-मुहावरा कोश – रमेश चंद्र मल्होत्रा एवं अन्य (1991)
छत्तीसगढ़ी व्याकरणिक कोटियां – चितरंजन कर (1993)
संकल्प छत्तीसगढ़ी भाषा विशेषांक – विनय कुमार पाठक (1994)
छत्तीसगढ़ी में उपसर्ग – नरेंद्र कुमार सुदर्शन (1996)
हिंदी की पूर्व बोलियां – रमेश चंद्र मल्होत्रा

इन सभी के अलावा छत्तीसगढ़ के वर्णनात्मक, रचनात्मक, संवहन आत्मक, ऐतिहासिक , तुलनात्मक , शब्दवैज्ञानिक, नामवैज्ञानिक , बोली भौगोलिक , समाज-भाषा-वैज्ञानिक अर्थ-वैज्ञानिक और लोक भाषा आदि विविध पक्षों पर हुए एचडी तथा शोध कार्य छत्तीसगढ़ में (Chhattisgarhi Mein) hello chhattisgarhi हुए हैं जो पिछले 30-35 वर्षों में किए गए हैं शोध कार्यों की लगभग 20 प्रकाशित अप्रकाशित सामग्री भी उपलब्ध है ।

जिस प्रकार किसी भी मात्र बोली का सहचार्य गया उस क्षेत्र मानक भाषा पर निश्चित रूप से पढ़ती हैं ठीक उसी प्रकार से छत्तीसगढ़ (Chhattisgarhi Mein) भी अनेक तत्व बहुत से छत्तीसगढ़ी भाषियों (CG Boli) बोलियों द्वारा वृहद मानक भाषा हिंदी में प्रविष्ट हो चुके हैं इस हिंदी को छत्तीसगढ़ी हिंदी कहा जा सकता है।

 

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1001+ छत्तीसगढ़ी शब्दकोश || Chhattisgarhi Shabdkosh

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