भारत के ह्रदय में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर में सतपुड़ा के पहाड़ियों का उच्चतम भूभाग है तो इसके मध्य भाग में महानदी , और उसकी सहायक नदियों के भू भाग है । इसके दक्षिणी भाग में बस्तर का पत्थर । छत्तीसगढ़ में प्राचीनकालीन स्मारक , दुलर्भ पवनजीव अभ्यारण , मंदिरो , बौद्धा बंदिरों , राज महलो , जल प्रपातो , एवं शैल चित्रों से भरे पड़े है ।
छत्तीसगढ़ राज्य का लगभग 40% भूभाग वनो से घिरा हुआ है जिसके कारन से छत्तीसगढ़ में पुरातात्विक , धार्मिक , औद्योयोगिक केंद्र , प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है जो छत्तीसगढ़ को मनोरमा देती है ।
Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal में अब तक 105 पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किय गए है । और इन्ही पर्यटन स्थल को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ के सरकार ने इसके लिए सं 2002 में chhattisgarh paryatan mandal का गठन किया है जिसका उद्देश्य chhattisgarh राज्य को एक अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप बनाना है ।

chhattisgarh ke prayatan sthalo के नाम आपको दिया जा रहा है जो छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा चिन्हांकित किये गए है –
Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal के नाम
1 . गिरौधपुरी –
2 . गुरु निवास
3 . तपो भूमि
4 . राजिम
5 . राजीव लोचन मंदिर
6 . कुलेश्वर महादेव मंदिर
7 . चम्पारण
8 . पंचकोशी
9 . आरंग
10 . तुरतुरिया
11 . खल्लारी
12 . पलारी
13 . नारायणपुर
14 . चंद्रखुरी
15 . सिरपुर
16 . बौद्ध विहार तथा स्वास्तिक विहार
17 . लक्ष्मण मंदिर
18 . गंधेश्वर महादेव
19 . सिहावा
20 . गुरुर
21 . नगपुरा
22 . डोंगरगढ़
23 . खैरागढ़
24 . भोरमदेव
25 . मड़वा महल
26 .छेरका महल
27 . रतनपुरा
28 . पाली
29 . लाफ़ागढ़ चैतुरगढ़
30 . धनपुर
31 . अमरकंटक
32 . बेलपान
33 . मल्हार
34 . सरगांव-
35 .देव किरारी
36 . ताला गांव
37 . देवरानी जेठानी मंदिर
38 . लूथरा शरीफ
39 . चांपा
40 . अष्टद्वार
41 . ऋषभ तीर्थ
42 . खरौद
43 . शिवरीनारायण
44 . कुनकुरी
45 . लक्ष्मण बंगरा
46 . बारसूर
47 . गढ़ धनोरा
48 . दूदाधारी मठ
50 . माँ चंडी मंदिर
ये ऊपर 36 Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल है जो आपको बताया गया है जिसमे मात्र धर्म से जुड़े हुए मान्यताओं के आधार पर आपको बताया गया है । और धार्मिक स्थल उसे कहते है जिसमे भगवन की पूजा अर्चना किया है , भगवान या किसी भी समाज के देवी देवता के बारे में बताया जाता है । वही कहलाता यही धार्मिक स्थल । और ये जितने भी धार्मिक स्थल बताये गए वह chhattisgarh mandal के आधार पर बताया गया है ।
- गिरौधपुरी –गिरौधपुरी सतनामी समाज का तीर्थस्थाल है । गिरौदपुरी बिलासपुर से लगभग 80 किलोमीटर तथा शिवरी नारायण से 12 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है । गिरौधपुरी को छत्तीसगढ़ के पावन भूमि माना जाता है । गुरौधपुरी में सोमवार मांग पूर्णिमा के दिन सतनामी समाज के प्रवर्तक गुरु घासीदास जा जन्म हुआ । जो आगे चलकर के संत घासीदास के रूप में जाने जाने लगा । गिरौदपुरी महानदी के किनारे स्थित है . यह भी है Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal .
- गुरु निवासगुरूनिवास में गुरु घासीदास के निवास स्थान है । जंहा पर 60 प्राचीन जैत स्तम्भ ( खम्भा ) है जिसके उम्र 60 से अधिक बताया जाता है । और उसी के समीप ही गुरु की गद्दी बानी हुई है । जिसके दरसन के लिए सतनामी समाज के लोग प्रतिवर्ष हजारो लाखो की संख्या में गिरौदपुरी अपने आस्था के साथ में पहुंचते है । गुरु निवास को Paryatan Sthal Chhattisgarh माना जाता है
- तपो भूमितपो भूमि गिरौदपुरी से 2 किलोमीटर के दुरी में पुर दिशा की और स्थित है । तपोभूमि में गुरु घासीदास ने ओरा व् घोरा पेड़ के निचे बैठकर के तप किया था . और तप के बाद में उन्हें संत ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी कारन से इस भूमि को तप भूमि के नाम से जाना जाता है । तपोभूमि में प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में पंचमी से लेकर के सप्तमी तक यंहा मेला लगता है ।छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल tapo भूमि को मान्यता है ।
- राजिमराजिम रायपुर से 45 किलोमीटर के दुरी पर स्थित है । राजिम को कई नाम से पुकारा जाता है जैसे पदमावतीपुरी , पंचकोशी , छोटा कांशी , आदि नमो से जाने जाते है । राजिम छत्तीसगढ़ का इक त्रिवेणी संगम स्थल है जंहा पर महानदी , पैरी और सोंढुर आकर के एक साथ राजिम में मिल जाते है ।धार्मिक दृश्टिकोण से इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है । त्रिवेणी संगम स्थल प्राचीन पांच कुलेश्वर महदेव मंदिर के समीप होने के कारण से इसकी महती और बढ़ जाती है । इन तीनो संगम स्थान का बड़ा धार्मिक महत्व है जिसके कारण से छत्तीसगढ़ के लोग यंहा श्रद्धा , पिंड दान, तर्पण , पर्व स्नान , अस्थि वित्सर्जन और दान आदि करते है और इसे छत्तीसगढ़ सरकार ने Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal है.3
- राजीव लोचन मंदिरराजिम में ही त्रिवेणी संगम के समीप ही राजीव लोचन के मंदिर स्थित है जो chhattisgarh के प्राचीन मंदिरो में से एक है । राजीवलोचन मंदिर में अंकित महामंडप की पाश्व भित्ति पर कलचुरी शांसन के कलचुरी सम्वत 896 ( 1154 ईस्वी ) का एक शिलालेख है और इस शिलालेख में कलचुरी शासक पृत्वी देव द्वितीय ( 1135-1165 ई) के सेनानी के द्वारा तलहरी मंडल को पराजित करने का वर्णन मिलता है ।दूसरी शिलालेख में 8 वी से 9 वी लिखा हुआ प्राप्त हुआ है जिसमे राजीव लोचन मंदिर को विष्णु मंदिर होने का बात कही गई है । इस तरह से यह मंदिर यंहा के मंदिरो में सबसे प्राचीन मंदिर है । मंदिर के गर्भ में काले रंग की पत्थर की विष्णु भगवान की चतुर्भुज मूर्ति स्थापित है जिन्हे लाखो दरसनार्थी Chhattisgarh Paryatan Mandal दर्शन करने के लिए आते है । श्री राजीव लोचन मंदिर को पांचवा धाम माना गाय है ।
- कुलेश्वर महादेव मंदिरकुलेशर महादेव के मंदिर राजिम में ही स्थित है । और कहा जाता है पंचमुखी महादेव के दर्शन विश्व के गिने चुने मंदिरो में ही होते है । राजिम के कुलेश्वर महादेव के मंदिर में पंचमुहि महादेव के मूर्ति है । कहा जाता है इस स्थान में भगवान राम , माता सीता और लक्ष्मण यंहा वनवास के समय यही कुछ समय के लिए निवास स्थान बनाया था । संगम स्थल में स्थिल कुलेश्वर महादेव के मंदिर का उल्लेख सतयुग के कथाओ में देखने को मिलता है ।
. चम्पारण को वललभचार्य की जन्म स्थली भी माना जाता है. यही संवत वैसाक कृष्ण 11 संवत 1535 विकर्मी को वललभचार्य का जन्म हुआ था . इनके पिता का नाम लक्समन भट्ट था. ये तैलंग बराम्हन थे . चम्पारण को महाप्रभु की 84 बैठकों में से एक बैठकों में महत्वपूर्ण माना जाता है .
चम्पारण धीरे धीरे तीर्थस्थल chhattisgarh paryatan mandal का रूप ले रहा है यंहा पर प्रतिवर्ष मांघ पूर्णिमा के अवसर में विशाल मेला लगते है जंहा हजारो की संख्या वैष्णव धर्म के लोग यंहा दर्शन करने के लिए आते है ।
- पंचकोशीराजिम का प्राचीन नाम पद्मावत पूरी कहा जाता है । ऐसा नाम रखने का मुख्य आधार यह था की राजिम के पंचकुलेश्वर मंदिर केंद्र में स्थित है , जिसके आसपास 8-9 मिल की दुरी पर कमल की पंखुडिया की भांति पांच तीर्थ स्थल है जिनके नाम पटेश्वर ( पटेवा ) चम्पेश्वर ( चम्पारण ), kopeshwar ( कोपरा ) बरनेश्वर ( ब्राहणी ) , फिंगेशर स्थित है इसलिए इसे पंचकोशी कहा जाता है ।पंचकोशी की बनावट कमल की फूल के पंखुड़ियों के सामान है जिसे कमल क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है । यंहा प्रतिवर्ष फाल्गुन मास्स में पांचो मंदिरो क लिए पदयात्रा निकलती है जिसके कारण से इसे पंचकोशी कहा जाता है । अब ेह पंचकोशी chhattisgarh paryatan sthal के रूप में धीरे धीरे उभर रहा है ।
- आरंगआरंग रायपुर से 37 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है । आरंग को मंदिरो के नगर के नाम से जाना जाता है यंहा अनेक छोटे छोटे मंदिर है । यंहा जैनियों का कला उत्कृष्ट मंदिर है जिसे भांड देवल के नाम से जाने जाते है । भांड देव जैन मंदिर अति प्राचीन 12 वी सताब्दी का मंदिर है । इस मंदिर के गर्भ गृह में जैन धर्म के तीर्थकर नेमिनाथ , अजितनाथ , श्रेयांस की 6 फूट लम्बी काळा ग्रेनाइड के पत्थर स्थापित है ।साथ ही यंहा 11 वी सदी का भागेश्वर मंदिर या बाघ देव मंदिर है । यह मंदिर रथ शैली में और इसमें 18 इस्तंभ है और इसकी उचाई 60 फुट ऊंची है । यंहा प्रतिवर्ष हमशिवृति के अवसर पर मेला लगता है । इसके आलावा यंहा बाबा हरदेव मंदिर , महमाया मंदिर , पंचमुखी महादेव मंदिर , पंचमुखी हनुमान मंदिर स्थित है । यंहा भी लोग Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal में घूमने के लिए आते है ।
- तुरतुरियातुरतुरिया सिरपुर से लगभग 24 किलोमीटर की तुरी में स्थित है । कहा जाता है की यंहा त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है जिन्होंने यही माता सीता को जब राम द्वारा तयाग देने पर आश्रय दिया था और यह भी कहा जाता है की इसी आश्रम में माता सीता के दोनों बेटे लव और कुश का जन्म हुआ था । इस कारण से इसे महर्षि वाल्मीकि का पुण्यभूमि भी कहा जाता है ।
- खल्लारीरायपुर से लगभग 80 किलो मीटर की दुरी पर आरंग खरियार रोड मार्ग पर बागबाहरा विकशखण्ड में खल्लारी ग्राम स्थित है । इसका प्राचीन खल्लावाटिका , खैवाटिका है । यंहा के देवालय से जो शिलालेख प्राप्त हुआ है उससे पता चलता है की यह स्थान विक्रम सम्वत 1471 इ अर्थात 1445 का है .और इसमें उल्लेख है की यह yaiayah वंश राजा हरी ब्रम्हदेव की राजधानी थी . और इस मंदिर को देवपाल मोची ले द्वारा बनाया गया था . कलचुरियो के रायपुर शाखा के अंतर्गत खल्लारी भी एक महत्वपूर्ण गड माना जाता है ।इसके आलावा यंहा पर खल्लारी माता का मंदिर पहाड़ी में स्थित है जंहा हजारो की संख्या में लोग यंहा माता रानी के दर्शन करने के लिए आते है । इसके आलावा यहाँ भीम के पाव , भीम के नाव अवं चूल्हा , लखेशरी गुड़ी है और माना भी जाता है की यंहा महाभारत काल में पांडव यंहा आये थे । खल्लारी को Chhattisgarh Paryatan Mandal ने स्वीकृति दी है ।
- पलारी- Chhattisgarh Ke Dharmik Sthalपलारी रायपुर से 68 किलोमीटर दूर उत्तर – पूर्व में तथा बलौदाबाजार से 15 किलोमीटर की दुरी में स्थित है । यंहा ितो से निर्मित लगभग 8 वी से 9 वी सताब्दी का अनूठा शिव का मंदिर है । इस मंदिर में अपनाई गई उत्कृष्ट तकनीक और सूझबूझ प्राचीन वास्तुकला का प्रमाण है ।
- नारायणपुर -छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलनारायण पुर – रायपुर से 53 मिल दूर में स्थित एक छोटे सा गांव है । यंहा 10 वी से 11 वी सदी िश्वि का पूर्वाभिमुख भगवान शिव के मंदिर है यह मंदिर लाल बलुई पत्थर से बना हुआ है ।
- चंद्रखुरी रायपुर से 30 किलोमीटर की दुरी में स्थित एक छोटा सा गांव चंद्रखुरी है . चंद्रखुरी में एक शिव मंदिर है स्थापत्य और मूर्तिकला के आहार पर इसे 13 वी से 14 वी सताब्दी का माना जाता है .
- सिरपुर – छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलसिरपुर रायपुर से 77 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है । इसका पुराना नाम श्रीपुर , शितरंगड़नापुर के नाम से भी पहले जाना जाता था । सिरपुर महानदी के किनारे बसाहुआ है । यह छोटा सा गांव कभी शरभपुरीय वंश , उसके बाद पाण्डु वंसrajao की राजधानी रहा है ।बौद्ध ग्रन्थ अवदान सतक के अनुशार महात्मा बुद्ध यंहा आये हुए थे । प्राचीन समय में यह एक बौद्ध नगर था । जिसके प्रमाण यंहा मिले चैत्य विहार , अनेक बौद्ध के मूर्तियों से अनुमान लगाया जा सकता है । और कुछ विद्वानों द्वारा ऐसा भी माना जाता है की सिरपुर ही महाभारत कालीन के अर्जुन के पुत्र भब्रूवाहन राजधानी थी और उस समय इसका नाम मणिपुर या चित्रांगदपुर था ।
- बौद्ध विहार तथा स्वास्तिक विहारसरपुर में यह स्थित है । सन1955-1956 में हुए उत्खनन के बाद में ही सजीरपुर के बौद्धविहार और स्वास्तिक विहार सामने आया । बौद्ध विहार में बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित है जिसकी उचाई 6 फुट है । बौद्ध विहार 14 कक्षों का है ।बौद्ध मंदिर के सामने पानी का कुंड और चारो और भौड़ भिक्षुओ का कुटिया बना हुआ है । इस बौद्ध मंदिर का निर्माण लम्बे इतो से और लम्बे लम्बे प्रसस्त खंडो से किया गया है । इस मंदिर के निर्माण को देखकr के ऐसा लगता है की दुमंजिला रहा होगा . बौद्ध विहार का निर्माण 6 वी सताब्दी में महाशिवगुप्त के शासन काल ( 559 – 655 इ ) में बाढ़ भिक्षु आनंद प्रभु दवरा कराय जाने की जानकारी प्राप्त होती है । यंहा भी बौद्ध Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal है ।
- लक्ष्मण मंदिरलक्ष्मण मंदिर भी सिरपुर में ही स्थित है । किदवंती है की पाण्डुवंश ( सोम वंस ) के राजा हर्षगुप्त का विवाह मगध के राजा मौखरि के राजा सुरवर्मा की बेटी वासटा देवी सी हुआ था । वह वैषणव धर्म को मानने वाली थी । उनके पति के स्वर्गवासी होने के बाद में पति की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए राजमाता वासटा ने सिरपुर में हरी विष्णु का मंदिर बनाया जो आज लक्समन मंदिर के नाम से जाना जाता है । जब मंदिर का निर्माण किया गया tab us समय उसके पुत्र महाशिवगुप्तबाला अर्जुन का शासन काल था ।लक्मण मदिर लाल इट से बना बना हुआ है । और इट से ही सभी देवी देवी देवताओ के , पशु पक्षियों के , कमल के पुलों की सुन्दर कला कृति , सुस्पस्ट ऊपर से निचे तक उभरी गई है । इस मंदिर में किसी भी प्रकार के प्लास्टर न होने के बाद भी हजारो वर्षो तक कला कृति को बनाई हुई है जिसके कारण से यह Chhattisgarh Ke dharmik sthal के रूप में उभर रहा है ।
- गंधेश्वर महादेवगंधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना 8 वी शताब्दी में माना जाता है । इसका जिर्णो उद्धार चिमन जी भोसला द्वारा कराया गया था । गंधेश्वर महादेव के मंदिर में काळा पत्थर से बना शिवलिग से बना है । इस मंदिर के प्रागण में भगवान बुद्ध , जैन प्रतिमा , विष्णु के , महिषासुर के मूत्रीय है जिससे यह प्रतीत होता है की यंहा दरम के प्रति कोई विशेष भेदभाव नहीं था ।
- सिहावाधमतरी से लगभग 65 किलोमीटर की दुरी पर घने जंगलो एवं पहाड़ियों से घिरे हुए Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal स्थित है । सिहावा के उत्तरी पूर्व में कर्णेश्वर में 6 प्राचीनकालीन मंदिर है । कर्णेश्वर का विशाल शिव मंदिर इस अंचल के शैव उपसना का प्रमुख केंद्र रहा है . इन सभी मंदिरो का निर्माण 1114 ईस्वी सोमवंशि राजाओ ने किया था . शिवमंदर से प्राप्त शिलालेख से ज्ञात होता है की यह क्षेत्र पहले सोमवंशियों का भू भाग था . उनके सामंत यंहा शासन करते थे .यंहा स्थित ऋंगी ऋषि के आश्रम के समीप पवित्र जल का कुंड है , और इसी स्थान से छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नदी का उद्गम हुआ है . mahrshi ऋंगी ऋषि ने अपने प्रिय शिष्य महानद के नाम पर इस नदी का नाम महानदी नाम दिया है ।
- गुरुर – बलोदा धमतरी मार्ग पर बेस गुरुर में 9 वी से 10 सताब्दी में बना हुआ महा भैरव का मंदिर स्थित है । प्रमाणों से पता चलता है की इसके कांकेर के रियासती नरेश व्याघ राज ( बागराज ) ने बसाया था .
- नगपुरा- छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थलयह दुर्ग जिला से 14 किलोमीटर दूर नगपुरा स्थित है । यह भारत के जैन तीर्थ स्थलों में एक mana jata है और छत्तीसगढ़ का एक मात्र जैन तीर्थ स्थल माना जाता है । शिवनाथ नदी के किनारे खुदाई में मिलने वाले पार्श्वनाथ की मूर्तियां अंकित करती है कि कभी पार्श्वनाथ कभी इसी रास्ते से गुजरे उनके।कलचुरी वंश के शंकरगण ke प्रपौत्र गजे सिंह ने एक पार्श्वनाथ की स्थापना के समय ईसवी 919 में संकल्प लिया था कि वह राज्य में 108 प्रतिमाएं स्थापित करेगा। ताम्रपत्र में उसने लिखा है यदि वह ऐसा नहीं कर सका तो उस के वंशज ऐसा करेंगे। गज सिंह के प्रपोत्र जगतपाल सिंह ने नगपुरा में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी। इस मंदिर में खंडित चरण पादुका आएं एवं मंदिर हैं जो इनका प्रमाणिकता को दर्शाते हैं।1982 में उत्तर प्रदेश के गंडक नदी के किनारे ग्राम उगना मैं 24 तीर्थ करो मेरे से 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्राप्त हुई बाद में उसे नागपुरा लाया गया। 1985 से नगपुरा का तीर्थ द्वार शुरू हुआ तभी से यह तीर्थ स्थल के रूप में प्रचलित और विकसित होता आ रहा है।नगपुरा में पार्श्वनाथ का विशाल मंदिर है मंदिर 3 शिखरों से युक्त है इसके गर्भ में पार्श्वनाथ की 15 प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह जैन तीर्थ स्थल विश्व भर में प्रसिद्ध हो चुका है जहां प्रतिवर्ष लोग भ्रमण करने के लिए अमेरिका ,केन्या इंग्लैंड जापान ऑस्ट्रेलिया नेपाल आदि कई अनेक देशों से जो जैन धर्म के मानने वाले हैं यात्री यहां आते हैं यहां 6 धर्मशालाएं हैं जिनमें 100 कमरे हैं एवं 12100 लोग एक साथ इस कमरे में ठहर सकते हैं।
- डोंगरगढ़ – Chhattisgarh Ke Dharmik Sthalडोंगरगढ़ राजनांदगांव से 36 किलोमीटर पर मुंबई हावड़ा रेल मार्ग पर है। डूंगरगढ़ में एक पहाड़ी के अंतिम शिखर पर मां बमलेश्वरी की मंदिर है। डूंगरगढ़ नगर का वास्तविक एवं प्रमाणित इतिहास अभी भी अतिथि के गर्भ में छुपा हुआ है परंतु उपलब्ध जानकारी के आधार पर डोंगरगढ़ की अत्यंत समृद्ध सारी ऐतिहासिक नगरी था ।कहा जाता है कि आज से लगभग 2200 वर्ष पूर्व यहां राजा वीर सिंह राज्य करते थे , और राजा वीर सिंह के कोई संतान नहीं थी और इन्हीं के उपलक्ष में देवी कृपा से संतान प्राप्त होने के उपलक्ष में उसने मां बमलेश्वरी अर्थात भगवती पार्वती का एक मंदिर बनवाया जो आज प्रसिद्ध सिद्ध पीठ है।मां बमलेश्वरी मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि एवं क्वार नवरात्रि मैं भव्य मेला लगता है जो 9 दिनों तक चलता है यहां लाखों श्रद्धालु देश विदेश से अपने आस्था श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने मन्नत को पूरी करने और मन्नत मांगने के लिए यहां आते हैं।
- खैरागढ़ – छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलखैरागढ़ राजनांदगांव से 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो पूर्व में खैरागढ़ रियासत के नाम से जाना जाता था। खैरागढ़ में स्थित इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय ना केवल भारत में ही बल्कि संपूर्ण विश्व का अपनी तरह का एकमात्र संगीत कला विश्वविद्यालय है ।इस विश्वविद्यालय का नामकरण इंदिरा के नाम पर रखा गया है। जिसका अल्प अवस्था में देहात हो गया था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 14 अक्टूबर 1956 को खैरागढ़ रियासत के राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह और उसके रानी पद्मावती देवी ने रिहायशी महाल अनुदान के रूप में देकर की थी। और उसके पुत्री के नाम पर इस विश्वविद्यालय का नाम रखा गया।
- भोरमदेव – छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलभोरमदेव को छत्तीसगढ़ का खजुराहो में कहा जाता है। यह कवर्धा से अर्थात कबीरधाम जिले से 17.6 किलोमीटर पूर्व की ओर मैकल पर्वत श्रृंखला मैं ग्राम छापरी के निकट चारा गांव नामक गांव में भोरमदेव का मंदिर स्थित है। भोरमदेव मंदिर खजुराहो एवं कोणार्क की कलाकार मिश्रण माना जाता है। भोरमदेव मंदिर 11वीं शताब्दी के अंत में 1089 ईस्वी के आसपास नागवंशी शासक गोपाल देव द्वारा निर्मित किया गया है।भरत इनकी मंदिर नागर शैली की अथवा चंदेल शैली उत्कृष्ट मंदिर हैं जो विश्व प्रसिद्ध है खजुराहो से इसकी तुलना करते हुए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है।भोरमदेव मंदिर 5 फीट ऊंचे है जिस के गर्भ गृह में शिवलिंग की प्रतिमा स्थापित है। कुछ विद्वानों द्वारा इसका नामकरण गोंड देवता से संबंध माना जाता है।
भोरमदेव में हजारों देशी और विदेशी पर्यटक यहां घूमने के लिए इस मंदिर को देखने के लिए आते हैं। इसे chhattisgarh paryatan mandal क्षेत्र घोषित किया जा चुका है। - मड़वा महल – छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलभोरमदेव से 1 किलोमीटर की दूरी पर कबीरधाम मार्ग पर मड़वा महल स्थित है। मड़वा महल को दूल्हा देव भी कहा जाता है।ऐसा माना जाता है कि यहां ऐतिहासिक विवाह संपन्न हुआ था। यहां प्राप्त शिलालेख के आधार पर एक नागवंशी राजा ने हैहय वंशी राजकुमारी से विवाह किया था और इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र जी के द्वारा 1549 में कराया गया था।इस मंदिर के दो अंग है एक है मंडप और दूसरा है गर्भ ग्रह इस मंदिर में बाहर 54 विभिन्न कामा मुद्राओं की कृतियां से प्रतिमाएं हैं। इसमें खजुराहो और कोणार्क की दुर्लभ कलाकार संगम देखने को मिलता है।
Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal - छेरका महलमंडवा महल से 1 किलोमीटर दूर पर तथा भोरमदेव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में यह स्थित है यह कोई महल तो नहीं है बल्कि यहां एक शिव का मंदिर है जो 14 वी सदी की है। इस मंदिर में केवल एक गर्भगृह जिसमें शिवलिंग स्थापित है और इस गर्भगृह से बकरी के शरीर से आने वाले गंध निरंतर आती है । और यह गंध है अभी भी रहस्य बना हुआ है।भोरमदेव में महाशिवरात्रि के पावन पर्व एवं चेत्र सुदी तेरस के अवसर पर वर्ष में दो बार मेला लगता है जहां हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु भोरमदेव भ्रमण करने के लिए, घूमने के लिए, दर्शन chhattisgarh ke dharmik sthal करने के लिए आते हैं।
- रतनपुरारतनपुरा बिलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर कटघोरा मार्ग पर स्थित है। रतनपुर अनेक तालाबों और मंदिरों से गिरा हुआ प्राचीन धार्मिक नगर है। रतनपुर छत्तीसगढ़ के प्राचीन ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से इसे एक छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल स्थान माना जाता है।रतनपुर पहाड़ियों से घिरा हुआ गांव है और प्राचीन काल में या छत्तीसगढ़ की राजधानी रहा है। रतनपुर को कलचुरी राजा रत्ना देव प्रथम ने बसाया था और इन्हीं के नामों पर इसका नाम रतनपुर पड़ा।रतनपुर में ऐतिहासिक धार्मिक और पुरातात्विक महत्व के कई स्थान हैं रतनपुर में महामाया का सुप्रसिद्ध मंदिर है इस मंदिर का निर्माण राजा रत्नदीप के द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था। महामाया मंदिर के गर्भ में देवी महामाया की प्रतिमा स्थापित है। महामाया आज भी जगत प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां नवरात्रि के अवसर पर प्रसिद्ध मेला लगता है जहां हजारों लाखों श्रद्धालु अपने दीप जलाने के लिए यहां आते हैं।रतनपुर में Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal इसके अलावा भैरव मंदिर, राम पंचायतन मंदिर इसे रामटेकरी भी कहा जाता है, श्री वृद्धेश्वर नाथ मंदिर, श्री रत्नेश्वर महादेव मंदिर, भुनेश्वर महादेव मंदिर, लखनी देवी मंदिर जिसे एक वीर का मंदिर कहां जाता है, कंठी देओल मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, रतनपुर का किला, सतीचौरा, जैसे सती मंदिर भी कहा जाता है, इसके अलावा रतनपुर में मूसा खा की दरगाह भी है ।
- पालीपाली बिलासपुर से अंबिकापुर मार्ग में 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक स्थल है। पाली में एक प्राचीन शिव मंदिर पुरातात्विक महत्व कहां है। पाली के शिव मंदिर का निर्माण बान वंश के राजा प्रथम विक्रमादित्य जिसे जय में वो भी कहा जाता है के द्वारा कराया गया था।और इस मंदिर का जीर्णोद्धार कलचुरी वंश के राजा ।
जाजल्य देव के समय हुआ था यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है । पाली का मंदिर खजुराहो, कोणार्क और भोरमदेव मंदिरों की तरह ही यहां काम कला का चित्रण देखने को मिलता है। - लाफ़ागढ़ चैतुरगढ़लाफ़ागढ़ बिलासपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर कोरबा मार्ग पर स्थित और पाली से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है खुला फागण पुरातात्विक और छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल माना जाता है। लाफ़ागढ़ दुर्गम पर्वत माला की सिंपल चोटी पर लगभग 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैयहां पर चैतुरगढ़ का किला है जिसकी ऊंचाई समुद्र सतह पर 3240 फिट है। चैतुरगढ़ का किले का निर्माण 14 वी शताब्दी में कलचुरी शासक बाहरसाए ke शासनकाल में बनाया गया था।चैतुरगढ़ के किला में महामाया का मंदिर स्थित है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र एवं क्वार नवरात्रि के अवसर पर 9 दिनों का भव्य मेला लगता है। लाफ़ागढ़ के किले के बाएं और 3 किलोमीटर की दूरी पर शंकर खोला गुफा स्थित है जो ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से लाफ़ागढ़ किला का एक प्रमुख Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal है।
लाफ़ागढ़ को गढ़ मंडला के राजा संग्राम शाह के 52 गढ़ के सूची में सम्मिलित रहा है। - धनपुरधनपुर बिलासपुर से बिलासपुर कटनी रेल मार्ग पर पेंड्रा रोड स्टेशन से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह chhattisgarh paryatan mandal है। धनपुर जैन धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा प्राचीन व्यवसाय केंद्र रहा है। धनपुर में जैन धर्म के अलावा और शैव धर्म से संबंधित अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।ग्राम धर्मपुर में ऋषभ नाथ तालाब स्थित है जिसके समीप एक पेड़ के नीचे जैन तीर्थ कर की प्रतिमा ग्राम देवता के रूप में स्थापित है जबकि बाएं और परकोटा खींचकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई । धनपुर से लगभग 2 से ढाई किलो मीटर की दूरी पर एक विशाल काली शैल चित्र हैं जो बड़ी चट्टान में खुदाई करके बनाया गया है जिसे यहां के स्थानीय निवासी बेनी बाई के नाम से जानते हैंइस चट्टान में बनी प्रतिमा की ऊंचाई 25 फुट है और यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र चट्टानों में बनाई गई मूर्तिकला का एकमात्र उदाहरण है। इसे भी छत्तीसगढ़ सरकर ने chhattisgarh ke dharmik sthal के रूप में जाना जाता है ।
- अमरकंटकछत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के मध्य के सांस्कृतिक विरासत को लेकर आधिपत्य हेतु परस्पर दावे के कारण हाल ही में विवाद का विषय बना अमरकंटक सतपुड़ा मैकल पर्वत मध्य प्रदेश की शहडोल जिले में स्थित है।
अमरकंटक से नर्मदा, सोनभद्र, जोहिला तीन नदी का उद्गम स्थल और पवित्र स्थल माना जाता है। अमरकंटक में साल के वृक्ष अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं।अमरकंटक के के इस जंगल में विपुल खनिज संपदा, आयुर्वेदिक जड़ी बूटी एवं स्वास्थ्य जलवायु से परिपूर्ण यह स्थल Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal का केंद्र है।
अमरकंटक समुद्र 87 36 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्राचीन काल से ही तपोस्थली के रूप में पुराणों में वर्णित किया गया। प्राचीन काल में अमरकंटक के अरण्य में कपिल मुनि ने यहां आकर के तपस्या कर अपनी तपोस्थली बनाई। संतकबीर भी यहां पहुंचे थे। मराठा काल में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने नर्मदा उद्गम स्थल पर कुंड एवं मंदिर का निर्माण कराया ।
- बेलपानबिलासपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर बेलपान स्थित है और मनियारी नदी तट पर तखतपुर से 11 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है।बेलपान में छत्तीसगढ़ के दर्शनी तीर्थ स्थल में शिव मंदिर, विशाल कुंड , सीता कुंड, महात्मा जी की समाधि आदि है। जिसके कारन से यह chhattisgarh ke tirth sthal ke naam में गिना जाता है ।
- मल्हार- मल्हार बिलासपुर के दक्षिण पश्चिम में बिलासपुर से रायगढ़ जाने वाले सड़क मार्ग पर मस्तूरी से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां सागर विश्वविद्यालय एवं पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्यों से इस स्थल की प्राचीनता एवं जहां के प्राचीन प्रभावशाली संस्कृति इतिहास की जानकारी प्राप्त है जैसे यहां ताम्रपत्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमबद्ध इतिहास प्रमाणित हुआ है। यह भी प्राचीनकालीन , ऎतिहासिक paryatan sthal chhattisgarh है ।कलचुरी वंश पृथ्वी दे देती के शिलालेख से मल्हार का प्राचीन नाम मल्लाल दिया गया है। 1167 हिस्ट्री का एक और अन्य कलचुरी शिलालेख में इसका नाम मल्लाल पतन प्रदर्शित किया गया है। पुराणों में मल्हार का नाम मल्लासुर नाम के एक असुर का नाम मिलता है और उसको मारने वाले शिव को मल्हारी कहा गया है।कलचुरी शिलालेख के अनुसार छत्तीसगढ़ का मलाल पतन तीन नदियों से घिरा हुआ था पश्चिम से अर्पा, पूर्व में लीलाधर नदी, और दक्षिण में शिवनाथ नदी दर्शाया गया है।इसके अलावा कई अभिलेखों में यह भी दर्शाया गया है कि कल्चुरि शासकों से पहले शरभ पुरी राज वंश के शासन का उल्लेख मिलता है ।मल्हार में Paryatan Place स्थल में chhattisgarh ke dharmik sthal में एक है । इसके अलावा उत्खनन में प्राप्त सामग्री यहां संग्रहालय में रखा हुआ है इसके अलावा पातालेश्वर केदार मंदिर, डिंडेश्वरी मंदिर, देउर मंदिर आदिchhattisgarh Paryatan Sthal स्थल है
- सरगांव-बिलासपुर से 28 किलोमीटर की दूरी पर रायपुर और बिलासपुर मार्ग पर सर गांव स्थित है।
सरगांव के chhattisgarh Paryatan Sthal स्थल प्राचीन शिव मंदिर हैं जो 11वीं शताब्दी का शिल्पकला के आधार पर बनाई गई सबसे प्राचीन मंदिर है। इसे भी छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल के रूप में घोसित किया गया है । - देव किरारीदेव किरारी बिलासपुर से 27 किलोमीटर की दूरी पर तथा बिलासपुर-रायपुर रेल मार्ग पर स्थित बिल्हा स्टेशन से देव किरारी 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। देव किरारी में 12 वीं शताब्दी के प्राचीन मंदिर का भग्नावशेष स्थित है जो कलचुरी कालीन कला का समृद्ध केंद्र रहा होगा। इसे भी Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal के रूप में जाना जाता है ।
- ताला गांवताला गांव बिलासपुर से 27 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर-रायपुर मार्ग ग्राम भोजपुरा से 7 किलोमीटर दूरी तथा बिलासपुर-रायपुर रेल मार्ग पर नन्दौरी स्टेशन से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर है . ताला गांव मनिहारी नदी के तट पर स्थित एक छोटा सा गांव है।ताला गांव में प्रमुख Paryatan Place स्थल यहां लगभग चौथी से पांचवी शताब्दी के पुरातात्विक महत्व के 2 मंदिर तथा रूद्र शिव की प्रतिमा उल्लेखित है। इसे भी paryatan sthal chhattisgarh शासन ने घोषित किया है ।
- देवरानी जेठानी मंदिर – छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल ताला गांव में ही मनिहारी नदी के किनारे दो मंदिर स्थित है और दोनों को मिलाकर के देवरानी जेठानी मंदिर इनकी स्थिति के कारण दिया गया है। ताला गांव में बाएं तरफ जेठानी और दाहिने पर देवरानी मंदिर स्थित है।
ताला गांव की देवरानी मंदिर बलवीर लाल पत्थर से बना हुआ है। देवरानी मंदिर गुप्तकालीन शिल्प कला का प्रतिनिधित्व करती है देवरानी मंदिर में जलेश्वर शिव का मंदिर है।जेठानी मंदिर देवरानी मंदिर के बाएं और है यह मंदिर भागना अवस्था में है। लेकिन इनके प्रतिमाएं अभी भी सुरक्षित स्थिति में है। जेठानी मंदिर कुषाण शिल्प स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करता है . दोनों मंदिर चौथी और पांचवी शताब्दी के मध्य निर्मित हुआ है। यह प्राचीन कालीन अवशेष है जो Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal में गिना जाता है ।
- लूथरा शरीफलूथरा शरीफ बिलासपुर बलौदा मार्ग पर लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर मुस्लिम धार्मिक स्थल स्थित है। यहां प्रसिद्ध मुस्लिम संत हजरत बाबा सैयद इंसान की दरगाह स्थित है। सभी धर्मों के लोग बाबा की दरगाह पर आकर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं यहां वर्ष में उर्स का आयोजन होता है।
- चांपाचांपा हावड़ा मुंबई रेल मार्ग पर बिलासपुर से रेल मार्ग के द्वारा यदि जाते हैं तो 53 किलोमीटर तथा सड़क मार्ग से जाते हैं तो 78 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। चांपा समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चांपा हसदो नदी के तट पर बसा हुआ नगर है। चांपा में काश सोना आदि से निर्मित वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है।चांपा के दर्शनीय स्थल समलेश्वरी देवी का मंदिर, श्री जगन्नाथ मंदिर, श्री मुरली मनोहर का शिव मंदिर, श्री कृष्ण गौशाला मंदिर, राजमहल एवं राम बांध का तालाब, मदनपुर गढ़,मड़वारानी मंदिर Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal में इसे भी गिना जाता है।
- अष्टद्वारयह शक्ति स्टेशन से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम अष्टद्वार ही है पूर्व ग्राम अष्टद्वार के दर्शनीय स्थल अष्टभुजी माता का प्राचीन मंदिर दर्शनीय है यह कलचुरी कालीन का तत्कालीन शिल्प कला का प्रमुख उदाहरण है । यह भी Paryatan Sthal Chhattisgarh का ।
- ऋषभ तीर्थबिलासपुर से लगभग एक किला किलोमीटर और मुंबई-हावड़ा रेल मार्ग जाने पर से शक्ति से होते हुए 15 किलोमीटर की दूरी पर दमाऊदेहरा स्थित है। जैसे ऋषभ तीर्थ या गूंजी नाम से भी जाना जाता है।इस स्थान में पहाड़ों के बीच एक गहरा कुंड है जिसमें लगातार पानी गिरता रहता है। पहाड़ में एक प्राचीन शिलालेख प्राप्त हुआ है जिससे यहां प्राचीन अरे शब्द अर्थ है होने का प्रमाण मिलता है।
इसके 8 किलोमीटर की दूरी पर जटायु आश्रम जिसे गिद्ध पर्वत के नाम से भी जाना जाता है तथा रेन खोल अर्थात रावण की गुफा भी स्थित है। इसके 3 किलोमीटर पर पंचवटी है।कहां जाता है की भगवान श्री रामचंद्र की 14 वर्ष के वनवास में वह यही आए थे और रावण ने सीता का अपहरण इसी स्थान से किया था। यह Chhattisgarh Ke Tirth Sthal Ke Naam है ।
Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal - खरौदखरौद महानदी के किनारे बिलासपुर से 63 किलोमीटर की दूरी उत्तर दक्षिण पूर्व में शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर की दूरी पर एक नगर है। यहां लक्ष्मेश्वर मंदिर शबरी मंदिर इंदर देव मंदिर आदि Paryatan Sthal Chhattisgarh है।
- शिवरीनारायण – Chhattisgarh Ke Dharmik Sthalशिवरीनारायण बिलासपुर से दक्षिण पूर्व दिशा में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पुनाराम यह प्राचीन धार्मिक स्थल है। यहां छत्तीसगढ़ के 3 प्रसिद्ध नदियां महानदी शिवनाथ नदी एवं जोक का संगम प्रयाग है।
इस स्थान का नाम शिवरीनारायण क्यों रखा गया इसके पीछे कहावत है की रामायण काल में सबरी इसी स्थान में निवास करती थी यही भगवान श्री राम और शबरी ने झूठे बेर खिल आए थे अतः शबरी के नाम पर शिवरीनारायण हो गया ।शिवरीनारायण में Paryatan Placeस्थल चंद्रचूड़ महादेव का मंदिर, राम लक्ष्मण जानकी मंदिर, दूधाधारी मठ, केवट मंदिर, सिंदूर गिरी, संगम घाट छत्तीसगढ़ के धार्मिक स्थल में हैं।
प्रतिवर्ष शिवरीनारायण में मांग पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशाल मेला लगता है जो लगभग एक पखवाड़े तक चलता है।लोगों का कहना है कि मांग पूर्णिमा को जगन्नाथपुरी से भगवान आकर शिवरीनारायण में विराजते हैं और जगन्नाथपुरी में किवाड़ बंद रखे जाते हैं अतः उस दिन यहां जगन्नाथ जी के दर्शन का महत्व पुरी के दर्शन के तुल्य माना गया है।
- कुनकुरीकुनकुरी रायगढ़-जशपुर सड़क मार्ग पर रायगढ़ से लगभग 167 किलोमीटर , पत्थलगांव से 56 किलोमीटर तथा जशपुरनगर से 44 किलोमीटर की दूरी पर कुनकुरी स्थित है। यह प्रदेश का महा विशाल गिरजाघर, कैथोलिक चर्च यहां महत्वपूर्ण दर्शन तीर्थ स्थल है। यह भी Paryatan Sthal Chhattisgarh का ।
- लक्ष्मण बंगराजोगीमारा के समक्ष अनेक गुफाओं में से एक लक्ष्मण बेंगरा गुफा भी है जिसके भीतर रखे विशाल चट्टान दृश्य अत्यधिक मोहक है। यह लक्ष्मण के स्वयं के लिए प्रयोग में लाई जाती थी और यही से श्री राम और सीता जी के रखवाले किया करते थे जिस तरह सीता बेंगरा जोगीमारा गुफा, लक्ष्मण बेंगरा तीनों रामायण कालीन अवशेष माने जाते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि यहीं से रावण ने सीता का हरण किया था . यहां पर एक लकीर भी खींची हुई दिखती हैं इसे लक्ष्मण रेखा कहा जाता है। सीता बंगला में जो पद चिन्ह दिखाई देते हैं उसे रावण का चिन्ह माना जाता है कि सभी तत्व प्रमाणिकता है कि सीता बंगरा जोगी मारा और लक्ष्मण बंगला का इतिहास रामायण कालीन का है। और ऐसा भी कहा जाता है कि सरगुजा जहां लक्ष्मण बन रहे स्थित है बाली और सुग्रीव का राज्य था जहां से राम ने वानर सेना बनाकर सीता की खोज है की शुरुआत की थी। यह भी Chhattisgarh Ke Dharmik SthaL में से एक है ।
- बारसूरजगदलपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धार्मिक ऐतिहासिक पुरातात्विक दृष्टिकोण से बस्तर का बारसूर स्थान स्थित है। बारसूर 11वीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में नागवंश किस शासक ने बरसों को अपनी राजधानी बनाई। प्राचीन काल में यहां 147 मंदिर और उतने ही मात्रा में तलाब होने ke प्रमाण माना जाता है किंतु वर्तमान में यहां मामा भाचा मंदिर, बतीसा मंदिर, चंद्रेश्वर मंदिर, और एक पुरातत्व संग्रहालय हैं जो Chhattisgarh Ke Tirth Sthal Ke Naam में गिना जाता है।
- गढ़ धनोरागढ़ धनोरा केशकाल से 12 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है यह पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण धार्मिक ऐतिहासिक स्थल है। दृढ़ धारणा में शिव मंदिर समूह, विष्णु मंदिर के समूह, मोहब्बत पारा, बंजारी मंदिर आदि Chhattisgarh Ke Dharmik Sthal है।