chhattisgarh ke lokgeet | छत्तीसगढ़ के लोकगीत

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chhattisgarh ke lokgeet (छत्तीसगढ़ के लोकगीत) लोक जीवन की अलिखित , व्यावहारिक रचना है जो की लोक परम्परा से प्रचलित और प्रतिष्ठित होता है । लोक गीतों के जो रचियिता होते है उनका नाम हमेशा अज्ञात रहता है क्योंकि लोकगीत प्राचीन काल से आ रही एक परम्परा का रूप होता है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत प्रायः रूप एक समूह के द्वारा रचित एक रचना होता है जो गायन के माद्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थांनतरित होते चले जाते है जिसके कारन से इसके रचनाकार के नाम अज्ञात हो जाते है ।

chhattisgarh ke lokgeet (छत्तीसगढ़ के लोकगीत) में सबसे ज्यादा कटुतापन , फूहड़ , पर्वो के बारे में , सस्कारो के बारे में , इसके आलावा धर्म , श्रम , से जुड़े हुए होते है । जो सामान्य रूप से लोकगीतों में बया करते दिखाई देते है ।

chhattisgarh ke lokgeet (छत्तीसगढ़ के लोकगीत) को गाने के लिए किसी विशेष समय की आवश्य्कता नहीं होती है , इसे गुनगुनाने के लिए कंही भी , किसी भी स्थान में गया जा सकता है और न ही इसके लिए किसी साथी , समूह की जरुरत होती है ।

इसे आप खेतो में काम करते हुए , चलते हुए , घरो के काम करते हुए , किसानी के काम के समय यानि की इसका कोई लय नहीं होता है जब मन चाहे तब इसे मन की विरह वेदना को कम करने के लिए इसे गया जाता है ।

chhattisgarh ke lokgeet (छत्तीसगढ़ के लोकगीत) के नाम 

1 . पंडवानी –  पंडवानी एक लोकगाथा है । पंडवानी में पांडवो की कथा को छत्तीसगढ़ी भाषा में गीत के रूप में गाया जाता है जिसके कारण से इसे पंडवानी कहते है । chhattisgarh ke lokgeet (छत्तीसगढ़ के लोकगीत) पंडवानी में महाभारत की सम्पूर्ण गाथा को गायक अपने स्वर , बोली , अभिनय , कथा और कथन के माध्यम से हमारे पास में प्रकट करता है । पंडवानी में महाभारत के पांडवो और कौरवो के कथा को पूरी साहस , जोश , धर्म , अध्यात्म , और श्रृंगार रस के साथ पुरे लय बद्ध तरीके से बताया जाता है ।

पंडवानी  में पांडवो की कथा को सुनने वाले को साक्छात दृश्य नजर आते है इतने अतभुत तरीके से पंडवानी को बताया जाता है । पंडवानी में प्रयोग होने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र , एकतारा , झांझ , हरमनियम , तबला , बेंजो , आदि होता है लेकिन इन सभी से महत्वपूर्ण जो पंडवानी को और चार चाँद लगाती है वह है रागी ।

रागी पंडवानी के गायन के समय बीच बीच में बातो को उठाने का काम करता है जिससे पंडवानी और ज्यादा रोचकता बढ़ जाती है ।

पंडवानी की दो शाखाये है :-
1 . वेदमती :- वेदमती शाखा में महाभारत के अनुसार शास्त्र सम्मत गायकी की जाती है , वेदमती शाखा के अनुसार इसमें गायन के साथ में नृत्य नाटक भी जाती है ।
2 . कापालिक :- कापालिक शाखा में मात्र गायन किया जाता है ।

2 . पंथी गायन :-  पंथी गायन सतनामी समाज के लोगो के द्वारा गाया जाने वाला गायन है । इसे विशेष अवसरों में सतनामी समाज के लोगो के द्वारा गाया जाता है । इसे दिसम्बर महीना में इस गायन को कहते है । पंथी गायन के लिए जैतखाम का बनाया जाता है और उसी के सामने गोल समूह बनाकर के गीत गाते हुए नित्य करते है । पंथी गायन में पंथी की शुरुआत गुरुवंदना से की जाती है ।

गायन में सतनामी समाज के प्रवर्तक गुरुघासी दास के चरित्र के बारे में गायन किया जाता है  . पंथी गीतों की अपनी एक अलग ही धुन होती है , उनके द्वारा गाय जाने वाले गीतों में सत्कार्य करने की प्रेणा देते है , मुक्ति के मार्ग के अलावा आध्यात्मिक सन्देश के साथ में मनुस्य के जीवन की महत्ता के बारे में बताया जाता है ।

पंथी गायन में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख वाद्य यंत्र में मांदर और झांझ होते है । मांदर की थाप गीतों को और मधुर और सुहाना बनाती है ।


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3 . भरथरी :-  bharthari एक लोक गाथा है । भरथरी में राजा भरथरी और रानी पिंगला की कथा को गायन के माध्यम से बतलाया जाता है । छत्तीसगढ़ में भरथरी लोकगाथा की अपनी एक अलग पहचान है यंहा भरथरी को संगीत के रूप में और काव्य की दृस्टि से देखा जाता है । भरथरी में राग और विराग दोनों के रूप दिखाई देते है ।

भरथरी लोकगाथा में सारंगी या इकतारा का प्रयोग किया जाता है जो गायन शैली को और माधुर्य बनाती है ।

4 .  चांदौनी गायन :- चांदौनी गायन को प्रायः लोरिक चंदा के गायन भी कहा जाता है । छत्तीसगढ़ में लोरिक चंदा गायन में लोरिक और चंदा के prem prasng को गाथा के रूप में shetriy bhasha के साथ में गाया जाता है .

5 . ददरिया :-   ददरिया गीत मूल रूप एक प्रेम गीत है । जिसमे श्रृंगार रस की प्रधानता होती है । chhattisgarh ke lokgeet में ददरिया लोक गीत युवाओ को प्रेम के प्रति आकर्षण रहा है ।  ददरिया के माध्यम से अपनी मन की बात को युवा अपने प्रेमिका तक ददरिया के माध्यम से पहुंचाता है । ददरिया को chhattishgarh ke lokgeet में प्रेम काव्य के रूप में इसे स्वीकार किया गया है । 

ददरिया प्रेम गीत में दो दो पंक्तियों के पद होते है । इसे ेस्ट्री और पुरुष मिलकर के एक साथ गए सकते है या फिर समूह में गाए जा सकते है । ददरिया छत्तीसगढ़ी के लोकगीत को सवाल और जवाब ले रूप में गया जाता है । ददरिया गीत को बनाने के लिए किसी भी आस पास के घटना , जैसे शादी में हुई हो , त्यौहार में हुई हो , पर्व में हुई हो या किसी भी घटना को ददरिया बनाकर के सवाल जवाब करके ददरिया का रूप दे दिया जाता है ।

ये घटना क्रमो को ददरिया का रूप देने के लिए छत्तीसगढ़ के युवा , युवती इस गीत में पारंगत है । ददरिया गीत को गाते समय नित्य भी किया जाता है इसे किसी भी समय गया जाता है इसके लिए किसी विशेष पर्व की जरुरत नहीं होती है ।

ददरिया की शुरुआत दशहरे में शुरू हो जाती है । एक गांव के युवा दूसरी गांव में ददरिया गीत गाते हुए जाते है और दूसरे गांव में की युवतिया इनका ददरिया सवाली जवाब देकर के स्वागत करते है ।


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6 . बांस गीत :- chhattisgarh lok geet में बांस गीत में बॉस के प्रयोग होने के कारण से इसे बांस गीत का रूप दिया जाता है । छत्तीसगढ़ के लोकगीत में बांस गीत को लोक गाथा माना गया है । इसमें गायक , रागी , और वादक प्रमुख होते है कभी कभी तो वादक ही गायक होते है । बांस गीत में प्रमुख वाद्य यंत्र में एक से अधिक लम्बा बांस का होता है ।

बांस गीत को छत्तीसगढ़ के यादव समाज के लोगो के द्वारा गया जाता है । बांस गीत को गाने वाले अपने वाधय यंत्र बांस को खूब सजा धजा के रखते है । बांस के माद्यम से सुमधुर आवाज और खुरदुरी आवाज इस गीत को और अधिक रोचकता प्रदान करता है । chhattisgahr ke lokgeet में बांस गीतों में करुणा के गाथा गाये जाते है । इन गाथाओ में सीता-बंसल की कथा , मोरध्वज और कर्ण की कथा , कृष्ण की कथा का गायन किया जाता है ।

7 . ढोल मारु :–  chhattisgarh ke lokgeet में dhola मारु मूल रूप राजस्थान के लोककथा है यह धीरे-धीरे लोगो के द्वारा अधिक देखा जाने के कारण से इनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है की यह राजस्थान से लेकर के उत्तर भारत तक पहुंच गई है । ढोला मारु लोकगीत में ढोला और मारु की प्रेम कथा जादुई चमत्कार के साथ लोकशैली में गाया जाता है । छत्तीसगढ़ में इसे प्रेम कथा के रूप में ग्रामीण और शहरी दोनों अंचलो में इसे देखा जाता है ।

8 . घोटुल पाटा :– chhattisgarh lok geet में छत्तीसगढ़ के आदिवाशियों का यह लोक गीत है जो किसी के मृत्यु हो जाने के बाद में इस गीत को गाया जाता है । छत्तीसगढ़ में इस गीत को मुड़िया आदिवासी जनजाति के द्वारा गाया जाता है । गोटुल पाटा गीत में राजा जोलंग साय की कथा के साथ में प्रकृति के बारे में गीत गाया जाता है । इसे मुख्य रूप से मुड़िया जनजाति के सासबसे बुजुर्ग व्यक्ति इस गीत को गाते है ।


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9 . जगार/धनकुल गीत – chhattisgarh ke lokgeet में बस्तर में इस गीत को हल्बी और भतरी आदिवासी समाज के द्वारा गया जाता है । धनकुल या जागर गीत में लोकगाथा को गाया जाता है ।

10 . वैवाहिक गीत :- छत्तीसगढ़ के लोकगीत में वैवाहिक गीत का विशेष महत्व है । वैवाहिक गीत को विवाह के रस्म के अवसर में गाया जाता है । इसे महिलाय प्रायः समूह के रूप में गाते है । इसमें तेल गीत – कन्या या वर को जब तेल चढ़ाया जाता है तब इस गीत को गाते है । , भावर गीत  – सात फेरो ले समय में गया जाता है । परघौनि गीत – जब बारातियो के स्वागत किया जाता है तब इस गीत को गाया जाता है । समधी गीत – समधी भेट के समय गया जाने वाला गीत है इसके आलावा बिदाई भी शामिल है जो कन्या के विदाई के समय गाया जाता है ।

11 . जंवारा गीत – chhattisgarh ke lokgeet में जंवारा गीत का विशेष महत्व है । छत्तीसगढ़ में इस गीत को चैत नवरात्र और राम नवमी दोनों अवसर में गया जाता है । राम नवमी के अवसर में जब दुर्गा माता की स्थापना की जाती है तब 9 दिनों तक माता की सेवा में इस गीत को सामूहिक रूप से या मडली के रूप में गाया जाता है । कभी कभी दूसरे गांव से भी लोक माता की सेवा में जस गाने के लिए आते है । जंवारा गीत में इन 9 दिनों में माता दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है । प्रति दिन अलग अलग रूपों की माता का पूजन किया जाता है ।

जबकि चैत नवरात में माता शीतला का पूजन किया जाता है । जंहा 9 दिनों तक गांव के सभी नर और नारी माता के मंदिर में एकत्रित होकर के माता की प्रसन्न करने के लिए जस गीत गाते है । चैत नवरात्र के अंतिम दिन में माता का वित्सर्जन किया जाता है यानि की जंवारा का वित्सर्जन किया जाता है । जंहा गांव के तालाब में देवी कलस , गेहू का बोया गया जंवारा , बैरग , त्रिसूल के साथ में गौ के बैगा के द्वारा देवी का जंवारा वित्सर्जन किया जाता है ।

कहा जाता की मदिर में बोया गया गेहू का बीज गीतों के माध्यम से बढ़ते है जैसे जैसे गीत , जस गायन होता है वैसे वैसे जंवारा बढ़ता जाता है । जंवारा की उचाई इस 9 दिनों में 15 से 20 इंच तक बढ़ जाती है ।

अंत में जंवारा वित्सर्जन के बढ़ में इन्ही जंवारा के माध्यम से महिला और पुरुष एक दूसरे को जंवारा बधते है जिससे जब भी वह एक दूसरे को देखते है तो सीताराम जंवारा के साथ एक दूसरे का अभिवादन करते है । 


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12 . लोरी गीत – chhattisgarh lok geet में यह एकल गीत है जो छत्तीसगढ़ के अंचल में बहुत ही ज्यादा प्रचलित है । लोरी गीत को प्रायः बच्चो को सुलाने के लिए महिलाओ के द्वारा गया जाने वाला गीत है ।

chhattisgarh ke lokgeet
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13 . मंडई गीत – chhattisgarh ke lokgeet में मंडई गीत खूब प्रचलित है । मड़ई गीत को मंडई के अवसर में गया जाता है । मंडई गीतों में दोहो के माध्यम से गीत गाया जाता है । यादव समाज के लोगो और आदिवासी जनजातियों के द्वारा इसे गया जाता है । मंडई गीत में प्रमुख वाद्य यंत्र मोहरी , दफड़ा , गुदुम्ब , डमरू , टिकली , करताल आदि प्रमुख यंत्र प्रयुक्त की जाती है । मंडई गीत में छत्तीसगढ़ के जनजीवन का चित्रण देखने को मिलता है ।

14 . देवार गीत – छत्तीसगढ़ के लोकगीत में देवार गीत को खाना बदोश जाती कहा जाता है । देवार जाति का प्रमुख जीविका का साधन नाच ( नृत्य ) , गाना इसके जीविका का साधन है । साथ में अपने जीविका को बढ़ाने के लिए सुवर ( Pig) का पालन करते है । देवार गीत में व्यंग और हास्य दिखाई देते है ।


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chhattisgarh ke lokgeet के एक देवार गीत :-

मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

मोर पहरा मा गा , मोर पहरा मा गा

रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

अन्हु कहिके काबर दगा मा डारे
दगा मा डारे वो दगा मा डारे

नई आबे त कुदाहू डहरा वो
रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

हवस टुरी तै मीठ लबरी
मन मा मई सोचेव गा दिल मा बैठारो

नई जाबे ता मई खाहु वो जहरा वो
रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

नवा के दरजी गगर खिले न
पाली बाजार में जरूर मिलना
रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

सांवा में सांवा फुले भादो में कांसी
सांवा में सांवा फुले भादो में कांसी
पाली मा पेशी चले , जबलपुर मा फांसी
रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

घन चंदा के चांदनी गा , घन सुइया के जोत
घन किरिया के मोहनी रे , मोहे तीनो लोक
रे आमा के ढहरा मोर पहरा में नई आये
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा

मोर पहरा मा , मोर पहरा मा
मोर पहरा में नई आये रे आमा के ढहरा ।।

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