सगवारी हो आप सबो झन ला हमर ब्लॉग में स्वागत हे आज के इस पोस्ट के माध्यम से हम chhattisgarhi kahani सोन के फर ( son ke far ) कहानी को इस पोस्ट के माध्यम से देखने वाले है .
संगवारी हो आज के समय में छत्तीसगढ़ी कहानी का लुभवना भाव धीरे धीरे कम होते चले जा रहे है जिसके कारन से chhattisgarhi kahani भी धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे है । हम अपनी संस्कृति को बचाने के और धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए इस पोस्ट के माध्यम से छत्तीसगढ़ी कहानी को पड़ने वाले है तो चलिए दोस्तों शुरू करते है Chhattisgarhi Kahani सोन के फर (son ke far)कहानी को :-
Chhattisgarhi Kahani सोन के फर
की गजब दिन के बात हरे एक ठन रिहिस हे इन्हा के गांव के जम्मो आदमी मन हा खेती किसानी के काम ला करे । अउ जेकर करा घर में खेती नई रहए ते मन हा गरु गरवा , सेरी पठरू ला रखे रहए । उहि दिन गरु गाये , सेरी पठरू ला चराये अउ दूध , दही , गोबर , सेना ला बेच के गुजारा करे ।
एही गांव में एक झन सुखराम नाम के मनखे रिहिस । ओकर करा एको कना खेती खार नई रहए ता ओहा अपन गुजर बसर करे सेरी-पठरू ला रखे राहय । ओहा दिन भर जंगल झाड़ी में जेक अपन सेरी ला चराये । शाम के होय ता सुखराम हा अपन सेरी -पठरू ला धर के घर लौट जाए । सेरी-पठरू मन हा हरियर हरियर डारा पाना ला खा के मेसरावत लहुटे .
एक दिन के बात हरे सुखराम हा अपन सेरी ला धर के जंगल के बहुत दूर चल दिस । जेठ का महीना रहए । आगि के आग कस घाम । घाम मा फुदकी हा कुदरा कस तिप गए राहये ।
तीर तिखार मा पानी के नामो निशान नई राहये . सुखराम हा पानी के पियास में तरमरा गे । फिर का करे थक के रुख के संहिहा के तरी मा बैठ गे । सेरी-पठरू मन हा उहि करा बगर के चरत राहये ।
थोरिक देर मा भगवान संकर हा उहि करा आइस । ओहा सुखराम ला पानी के पियास में ताला बेली करत देख लिस अउ उहि जगह साधु के भेस बनइस ।
भेस ला बनाके हाथ मा कमंडल ला डरिस अउ सुखराम करा चल दिस अउ सुखराम ला देख के पूछते – सुखराम तेहै कबर ताला बेली करत हस ।
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सुखराम का कथे – का बताओ महराज पियास के मरे मोर जिव हा छुटत हे ।
सुखराम के बात ला सुन के संकर भगवान ला दया आगिस अउ हाथ में धरे कमंडल के पानी ला सुखराम के आगू मा मडा दिस अउ एक पसर फर ओला दिस ।
अउ कथे – तेहा जातिक खाये के ओतकी खा , बांचही तेल ले जाके घर के पठेरा मा मडा देबे ।
सुखराम हा ओमे के चार ठन फर ला खाइस अउ बाचिस ते फर ला गमछा में लपेट के धर लिस अउ कमंडल के पानी ला गटर-गटर पीस ।
दिन भर के थके मांझे सुखराम हा साँझा कन घर लौटिस । अपन गोसईन सुखिया सन गोटियस बतियाइस । गमछा में धर के ले फर ला रधनी खोली के पठेरा में रख देथे । खटिया में जइसे जिस ओकर नींद पुट ले परगे । कुकरा बासत ओकर नींद हा खुल गिस । झटपटा के उठ के हाथ मुँह ला धो के रंधनी खोली मा गिस । अउ ओहा पठेरा ला देखिस ।
पठेरा ला देख के सुखराम हा अकचका गे वो देखथे की ओ फर मन हा सोन के हो गे रथे ।
ओला चुप-चाप धर के सेरी कोती चल दिस । सेरी ला धर के फिर से जंगल कोती चल दिस । सुखराम हा सेरी ला चरात-चरात मने मने बढ़ खुस हो गे । फेर ओला संसो घलो होय की ये सोन के फर ला का करो ।
अइसने सोचत सोचत दिन हा बीत गे । साम के जब सुतीस ता झटपट सटपट , येति कोती नींद घलो नई आइस अउ दूसर दिन ओहा शहर में जाके बेचे बर सोचिस ।
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ओहा बड़े फजर उठ गिस । सुखिया ला सेरी-पठरू ला चराये बर भेज दिस ।
लेकर धकर ओहा रेंगत रेंगत शहर गिस । सोनार करा जाके के सोन के फर ला देखइस ।
चमचमत सोन के फर ला देख के सोनार के लार टपक गे । ओहा पूछिस येला तौलो – तराजू मा तौलिस ।
सुखराम हा कथे – हा भैया येला तौल दो । अउ झटकन तौल अउ मोला पैसा दे ।
सोनार हा फट ले फर ला तौलिस अउ रूपया के गड्डी ओला दे दिस ।
घर जाके सुखराम हा सुखिया ला सारी बात बता दिस । दुनो झन हा सुमता होके नवा घर बनवइस । घर में नवा नवा बर्तन ले लिस ।
सुखिया के तन भर जेवर ला देख के पारा परोस के मन हा अकचका गिस । जेन मनखे देखे तेहा पूछे – की कान्हा ले यत्का पैसा पाय हो ।
दुनो झन हा सिधवा रिहिस । जइसे के बात रिहिस हे वैसे सबो बात ला बता दिस की हमर घर में सोन के फर हे ओला बेच के हमन पैसा बचा लेथन । सबो गांव के मन हा ये बात ला जान डरिस ।
एक दिन के बात आये चार झन चोरहा मनखे मन हा सुखराम के घर में आइस अउ पूछिस – चल तो देखा कान्हा हे तोर सोन के फर हा ।
सुखराम हा भल ला भल जानिस अउ ओहा रधनी खोली के पठेरा में रखे सोन के फर ला ओ चोर मन ला देखा दिस । चमचमात सोन के फर ला देखिस ता चोर के मन मा लालच आ गे । ओमन हा देख के चुपचाप सुखराम के घर ले चल दिस ।
अधरतिया चोर मन हा सोन के फर के चोरी करे बर खुसरिस । खटर-पटर आवाज ला पाके सुखिया के नींद हा खुल गे । ओहा सुखराम ला उठाईस । सुखराम हा चोर मन ला चीन डरिस ।

ओमन हा पठेरा में रखे सोन के फर ला धारण अउ भागत भागिन ।
दूसर दिन सुखराम हा गांव में बइठका बुलाइस सोन के फर ला पाय अउ चोर मन के बात ला बताइस । संग में गांव के मुखिया रिहिस । चोर मन ला बइठका में बुलाइस । ओमन हा फर ला धर के आइस . पंच मन हा चोर मन लतेड के पूछिस – कस जी सुखराम कहत हे ते सही हे ।
चोरमन अकचका गे अउ चोरी के सबो बात ला बताइस । पंच मन हा फर ला मांगिन ता सोबो झन मन हा फर ल देखिस ता देखथे – सबो फर मन हा कच्चा हो गे राहये ।
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कच्चा फर फेर पंच मन सुखराम ला दे दिस । सुखराम हा फिर फर ला लेग के रड़नी खोली के पठेरा मा मडा दिस फर सोना होंगे ।
चारो चोर मन ला पंच मन फटकारिन अउ दो बात कथे – पसीना के कमाई ले मनखे ला सुख मिलथे , चोरी ठगी ले काम हा कभू नई बने , चोर मन हा कभू महल नई बनावे ।
ये रही हमरी कहानी दोस्तों छत्तीसगढ़ी कहानी (Chhattisgarhi Kahani) सोन के फर (son ke far) जो उम्मीद करते है आपको जरूर पसंद आया होगा । पसंद आया होगा तो इस Chhattisgarhi Kahani सोन के फर (son ke far) को अपने दोस्तों के पास में ज्यादा से ज्यादा शेयर जरूर करे । आपकी के शेयर हमको एक और अच्छी कहानी लिखने को मजबूत करती है ।