छत्तीसगढ़ी कविता का वर्तमान परिदृश्य | Chhattisgarhi Kavita Ka Vartman Paridrishya

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किसी भी जनतांत्रिक जनकल्याणकारी राज्य का उत्तर दायित्व है की वह कला और साहित्य का संवर्धन और संरक्षण करे । और किसी भी राज्य के जनतांत्रिक कल्याणकारी साहित्य के संरक्षण के लिए सबसे पहले जरूरत होती है तो वह है हमरे देखने का नजरिया की पूर्ति उसके बाद में राजनैतिक इच्छा शक्ति की । यदि छत्तीसगढ़ राज्य के छत्तीसगढ़ी कविता का वर्तमान परिदृश्य ( Chhattisgarhi Kavita Ka Vartman Paridrishya) की विकाश और बुनियादी शर्ते की पूर्ति होते दिखाई नहीं देते है तो इसका जिम्मेदारी का कारन हम स्वं है ।

यदि किसी राज्य की संस्कृति , लोक कला , लोक रंग , साहित्य , सांस्कृतिक मूवमेंट को देखने के लिए हमें हमें एक ऐसा वातावरण , एक ऐसा परिदृश्य होना चाहिए जो इन सभी को अलग अलग खंडो में न बटकर के एक एक ऐसी वातावरण , एक ऐसी संसथान हो जंहा सभी का सृजनात्मक विकास हो और उनके लिए अनुकूलित वातावरण हो ।

छत्तीसगढ़ जैसे नए राज्य की आंतरिक अशांति नक्सल वाद पर विशेष ध्यान दिया जाता है जबकि दिल्लीमे लोग बैठकर के नक्सल वाद पर बात बस की जाती है लेकिन यदि दिल्ली के परेड में उनके लिए एक झनकी एक प्रस्तुत किया जाय तो अनुकूलित वातावरण हो जायेगा ।

Chhattisgarhi Kavita Ka Vartman Paridrishya छत्तीसगढ़ी काव्य का उद्भव एवं विकास 

छत्तीसगढ़ी काव्य, छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य की संस्कृति व हिंदी के विशिष्ट काव्य की सभ्यता का मिलाजुला रूप है  . छत्तीसगढ़ी सिस्ट साहित्य का प्रारंभ बीसवीं शताब्दी से माना जाता है । इसके छत्तीसगढ़ के हिंदी कवियों के शब्द चयन में मैं परिलक्षित होती है । छत्तीसगढ़ के प्रथम प्रमाणित कवि को लेकर समीक्षकों में भेद है तथा अब तक डॉ विनय कुमार पाठक, जिसमें उन्होंने नरसिंह दास वैष्णव द्वारा लिखित सिवायन (1904) को इसमें उड़िया के साथ प्राप्त उनकी रचनाओं के आधार पर छत्तीसगढ़ का प्रथम कवि माना है , अधिकांश विद्वान स्वीकार करते हैं।


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छत्तीसगढ़ी काव्य का प्रगति की संक्षिप्त ब्यावरा

जहां आरंभ से लेकर आज तक लगभग 100 वर्षों में छत्तीसगढ़ी काव्य की प्रगति का ब्यावरा यहां दिया जा रहा है जो निम्न प्रकार से है:-

पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ को स्थापित किया एवं लघु खंड की सर्जन आकर प्रबंध काव्य लिखने की परंपरा को विकसित किया । इनकी दानलीला डे हिंदी आशा वासियों एवं साहित्यकार समीक्षकों के मध्य अत्यंत लोकप्रियता प्राप्त की । पंडित लोचन प्रसाद पांडे को छत्तीसगढ़ लेखन की परंपरा के संस्थापक माने जाते हैं , ने छत्तीसगढ़ी जन जागृति हेतु कुशल प्रयास किया। इनकी प्रथम प्रमाणिक मौलिक छत्तीसगढ़ी कविता 1909 की है ।

पदम श्री मुकुटधर पांडे , जो पंडित लोचन प्रसाद पांडे के अनुज है, ने छत्तीसगढ़ी काव्य को निखारा है । इनकी दो छत्तीसगढ़ी में छत्तीसगढ़ी जागरण में प्रकाशित प्रथम कविता छत्तीसगढ़ी प्रशस्ति है, जिसमें छत्तीसगढ़ की गौरवशाली परंपरा का वर्णन मिलता है पंडित पांडे का प्रभाव मिलता है, जिसमें उन्होंने जागरण का प्रयास किया है।

छत्तीसगढ़ी के प्रति प्रेम जागृत करने वाले छत्तीसगढ़ के प्रथम उपन्यास कार पंडित बंशीधर पांडे का नाम सर्वोपरि है इनकी रचना “हीरु के कहनी” उपन्यास 1926 में लिखी गई । इन्होंने छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ी में कम कविताएं लिखी हैं किंतु उनके कविताएं क्रांतिकारी रूप एवं अमूल्य धरोहर है ।

हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों में ही दक्षता रखने वाले स्वर्गीय प्यारेलाल गुप्त इतिहास और पुरातत्व के मर्मज्ञ थे । इन्होंने अपनी साहित्य यात्रा गद्य से प्रारंभ की थी किंतु उन्होंने कुछ अविस्मरणीय छत्तीसगढ़ी कविताओं का सृजन भी किया इनकी रचना छत्तीसगढ़ प्राचीन छत्तीसगढ़ जोकि इतिहास पर लिखी गई रचना है पत्थर साबित हुई नाटक कथा तथा उपन्यास की भी रचना की।

बिलासपुर के कुंज बिहारी चौबे क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं 12 वर्ष की उम्र से ही काव्य रचना की शुरुआत की थी। यह अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी कलम को तेज धार का उपयोग करते थे तथा इन्हें छत्तीसगढ़ के प्रथम विद्रोही कवि माने जाते थे ।

स्वर्गीय मेदनी प्रसाद पांडे ने अत्यधिक कविताओं की रचना की किंतु प्रकाशन के अभाव में उपलब्ध नहीं है। इनकी केवल एक व्यंग्यात्मक रचना जनसामान्य में प्रचलित है । । छत्तीसगढ़ी हास्य कलाकार उनकी “कछेरी” नाम के रचना का मंचन कर के लोगों को मनोरंजन करते थे । बिलासपुर जिले के पांडुका निवासी गोविंद लाल विट्ठल ने सन 1994 में “नाग लीला” नामक खंडकाव्य की रचना की, इसकी विषय वस्तु का मुख्य आधार पर आई है । यह रचना पंडित सुंदरलाल शर्मा को समर्पित की गई रचना है । मस्तूरी निवासी पंडित शिवदास पांडेय नीति पंडित सुंदरलाल शर्मा से प्रभावित होकर के 124 पद और 4 अध्याय की “छत्तीसगढ़ी दान लीला” लिखी है ।

स्वतंत्रता की उत्तर काल में मंच व प्रकाशन के माध्यम से छत्तीसगढ़ी काव्य को गति देने वाले पंडित द्वारका प्रसाद विप्र का स्थान सर्वोपरि है । ठेठ छत्तीसगढ़ी संस्कृति को समर्पित श्री विप्र ने अपने नाम के अनुसार छत्तीसगढ़ी काव्य को आगे बढ़ाएं । भारत हिंदू साहित्य समिति बिलासपुर के माध्यम से उन्होंने स्वतंत्रता के उत्तर काल में अनेक नए-नए कविताएं और लेखकों को मंच प्रदान किया।

डॉक्टर नरेंद्र वर्मा एक उत्कृष्ट छत्तीसगढ़ी कवि , समीक्षक के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी भाषा के अच्छे जानकार थे . उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास पर एक विश्लेषणात्मक प्रस्तुत किया ग्रन्थ 1979 प्रस्तुत किया । 1979 के बाद उन्हें बहुत कुछ करना था किंतु इसी वर्ष प्रकृति में उन्हें काल के ग्रास बना दिया । वे कथाकार गीतकार एवं संगीतकार भी थे . उनकी रचना “सुबह की तलाश मील” का पत्थर साबित हुआ , जबकि गीत संग्रह अपूर्वा छत्तीसगढ़ी साहित्य की अमूल्य धरोहर है । इनकी “मोला गुरु बनाई लेते” छत्तीसगढ़ी प्रहसन उत्साह गया । “ढोला मारू” अत्यंत लोकप्रिय हुआ । यह छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ-साथ हिंदी पर भी समान अधिकार रखते थे इन्होंने स्वच्छंद वाद प्रयोगवाद पर भी इनके छाप हैं।

स्वर्गीय पृथ्वी लाल तिवारी उन कविताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने अल्प छत्तीसगढ़ किंतु छत्तीसगढ़ी रचनाएं की है उनकी रचना जनमानस की गहराई तक स्थापित हुई है । इनकी रचना अत्यंत सशक्त एवं उत्कृष्ट है। पंडित सरयू प्रसाद त्रिपाठी मधुकर के काव्य संग्रह “मधुसीकर” भी इनकी छत्तीसगढ़ी कविताओं के उद्धरण मिलते हैं। छत्तीसगढ़ी अनुवाद साहित्य में दखल रखने वाले रायपुर के पंडित सुकलाल प्रसाद पांडे हिंदी कवि है किंतु इन्होंने छत्तीसगढ़ी ग्राम जीवन से जुड़े हुए रचना की है।

वर्तमान पीढ़ी के वरिष्ठ एवं अग्रणी छत्तीसगढ़ी साहित्यकार , कवि एवं समीक्षक डॉ विनय पाठक ने भी प्रयास प्रकाशन के माध्यम से लगभग 80 किताबों का प्रकाशन कर युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया वर्तमान पीढ़ी में चढ़ी भाषा और साहित्य के विकास और उसे गति देने में इनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है।

इसी प्रकार विगत 10 वर्षों से बिलासा कला मंच जो छत्तीसगढ़ी साहित्य और संस्कृति की को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है यह द्वारा भी लगभग 30 किताबों का प्रकाशन कर उभरते हुए साहित्यकार को स्थान दिया जा रहा है।

स्वर्गी रंजन लाल पाठक ने कुछ गिने-चुने रचनाएं की है किंतु वे उत्कृष्ट कोटि के हास्य रचना में पीछे कैसे लेवे प्रस्तुत करने के लिए प्रसिद्ध थे।

छायावादी कवि और समीक्षक के रूप में जाने जाने वाले पंडित शेषनाथ शर्मा शील ने कुछ छत्तीसगढ़ी रचनाएं भी लिखी है। इनकी प्रमुख कविता “तिरिया के जात” में नारी के कोमल ह्रदय शब्दाकिंत किया है । 

लाला जगदलपुर बस्तर अंचल में रहकर छत्तीसगढ़ी भाषा का पोषण किया साथ ही हल्बी और छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व सामंजस्य स्थापित की ।

डॉक्टर हनुमंत नायडू राजदीप ने दक्षिण भारतीय होते हुए भी छत्तीसगढ़ी में मधुर कविताओं की रचना की है। छत्तीसगढ़ी प्रथम चलचित्र “कही देबे संदेश” के गीतकार भी हैं गीतों को अपार लोकप्रियता प्राप्त हुए हैं।

डॉ विमल कुमार पाठक ने “गवई के गीत”के माध्यम से काव्य प्रेमियों के मध्य अपना स्थान बनाए ।

स्वर्गीय श्री हरि ठाकुर का नाम कविताओं में विविधता के लिए जाने जाते हैं । :छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता” , “जय छत्तीसगढ़” इनकी प्रतिनिधि काव्य संग्रह है जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ की महिमा को प्रति स्थापित किया है ।

धमतरी नारायण लाल परमार छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में स्थान रखते हैं। इन्होंने छत्तीसगढ़ी में प्रमुखता श्रृंगारी के गीतों की रचना के साथ युगबोध सुगठित नवीन कविताओं की भी रचना की है । काव्य के नए शब्द और नई दृष्टि श्री परमार की रचना में दिखाई देते हैं।

गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले श्री दानेश्वर शर्मा ने भले ही कम छत्तीसगढ़ी रचनाएं लिखी है लेकिन लोक जीवन को भिन्न-भिन्न दृष्टि से दर्शन कराने में इन्होंने प्रशंसनीय उपलब्धि प्राप्त की है इनके। गीत संगीत बंद हो चुके हैं।

दुर्ग निवासी श्री रघुवीर अग्रवाल के “पथिक” काव्य से छत्तीसगढ़ के प्रकृति चित्रण एवं प्रेम के दर्शन मिलते हैं । इनकी रचना जले रक्त से दीप  हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों के रूप दिखाई देते हैं ।

श्री विद्या भूषण मिश्र कवि होने के साथ ही लोकप्रिय संगीतकार भी है उन्होंने “छत्तीसगढ़ की गीत माला” छत्तीसगढ़ी कविता की रचना की है जो छत्तीसगढ़ी कविता का संग्रह है।

भगवती प्रसाद सेन हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं । हास्य कविता के रूप में हास्य व्यंग के माध्यम से जीवन की घटनाएं को सरल सहज बनाने के वे छणिक के प्रयास ही कर पाए थे कि अस्मत उसके निधन हो गई।

जांजगीर जिले के पवना ग्राम के ग्राम जीवन से जुड़े स्वर्गीय कपिल नाथ कश्यप ने अपनी लेखन से ग्राम के सुलभ सौंदर्य अभाव में जन्मी कड़वाहट , भोले भोले ग्रामीण के जीवन संघर्ष और पीड़ा को अपनी रचना में चित्रित किया है ।

दुर्ग के ठेठ छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्यकार टिकेंद्र टिकरिया जो सामाजिक उत्थान को स्थान देने वाली कवि है । कविता को मर्म और साधना के रूप में अंगीकार कर छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं । इनके करीब छांव नाटक प्रकाशित हो चुके हैं, इनके नाटक “साहूकार ले छुटकारा”, “गवइया” , “सौतन के डर”, “नवा बिहान”, “देवार डेरा” आदि अत्यंत लोकप्रिय नाटक है।

देवी प्रसाद वर्मा बच्चू जांजगीरी  का हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों में बराबर अधिकार है छत्तीसगढ़ी रचना में है अपने नए उपमनो का प्रयोग करते हैं ।

ग्राम पांडुका के बेहतर राम साहू , जो 50 के दशक से छत्तीसगढ़ी लेखन कर रहे हैं, भी ग्रामीण परिवेश के व्यक्ति हैं तथा एक यथार्थवादी कवि और साहित्यकार भी हैं । उनकी रचनाओं में ईमानदारी दिखाई देती है उनकी रचना “कौवा लेगे कान” , “हमारे भीतरी सब कुछ हे ” उनकी महत्वपूर्ण है ।

धमतरी के समीप छाती ग्राम के निवासी डॉक्टर महेंद्र कश्यप “राही”  लेखनी के धनी हैं। उन्होंने विभिन्न जीवन प्रसंगो के साथ चित्रण किया है ।  ध्रुव कुमार छत्तीसगढ़ी हास्य को संपन्न करते हैं। स्वर्गीय हेमनाथ संस्कृति के साथ राजनीतिक गतिविधियों को भी समाहित करने वाले रचनकार है .


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छत्तीसगढ़ी के अन्य अन्य नव कवि गण- 

इसके अलावा एक से एक प्रतिभा कलाकार छत्तीसगढ़ी साहित्य को अपनी सेवाएं दे रही है जिनके बारे में बताना आवश्यक है । बृजलाल शुक्र जो लोक व्यवहार पर लिखते हैं। धमतरी के रमेश अधीर  ने अपने संग्रह घरघुंदिया  में लोग धर्म निम्बो एवं प्रतीकों का प्रयोग कर बड़ी आत्मीयता के साथ किया है । दिगंबर नाथ शर्मा की भक्ति प्रधान रचनाएं, रामनिवास साहू की प्रेरक रचनाएं , शिव शंकर एवं मनोहर लाल शुक्ल की मांगी अभिव्यक्ति से पूर्ण रचनाएं छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य में उल्लेखित है ।

पूर्व सांसद श्री केयर भूषण की रचनाएं समाज सुधार के दायित्व का निर्वहन करती है। श्री ललित मोहन श्रीवास्तव की रचनाएं श्रृंगार प्रधान है। ठाकुर उदय सिंह चौहान, स्वर्गीय उमेश शर्मा की कम रचना में अधिक से अधिक स्थान बनाने में सफल हुए । प्रतिमा निवासी राजेंद्र तिवारी छत्तीसगढ़ी रचना “भुइया के पाकिस चुंदी मैं” ग्रामीण जीवन को आधार बनाकर चर्चित हुए ।

उती नामक छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह के साथ दुर्ग निवासी दिलीप ठाकुर छत्तीसगढ़ में शुरुआत किए। श्री सतीश कुमार प्रजापति संगम सागर देवांगन की समन्वित प्रस्तुति “कलस-करवा” के विषय वस्तु है । कलस करवा के माध्यम से विवाह उत्सव एवं मांगलिक कार्य के विषय वस्तु के बारे में बताया जाता है । इसके अलावा गंडई कवर्धा के युवा कवि पीसी लाल यादव का काव्य संग्रह “सुरता” रसिको को समर्पित है ।

स्वर्गीय बाबूलाल सीरिया के कविता “गमकत गीत” में छत्तीसगढ़ी जीवन की चमक है। पिथौरा के स्वर्गीय मधु लोधी का हृदय का पक्षी छत्तीसगढ़ी और हिंदी रचनाओं का संग्रह है। श्री दयाराम साहू ने अपने दो काव्य संग्रह जागिस छत्तीसगढ़ के माटी और “रखिया” में नारी चेतना को वाणि दी है । आरंग की वीरेंद्र नामदेव ने कृषि जीवन पर प्रकाश डाला है। मोहन अग्रवाल और संतराम साहू ने “सुता संग्रह” में अपनी 11-11 प्रतिनिधि कविताएं प्रस्तुत की है ।

युवा कवि राम लाल निषाद “राज्यश्री” के काव्य में उड़िया  प्रभावित छत्तीसगढ़ की झलक मिलती है कवि रमाशंकर तिवारी ने अपनी रचनाओं में नवीन प्रति की योजना के साथ सुंदर शब्द चयन आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया है ।


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गायकी के माध्यम से कविताओं की प्रस्तुति

कवि सम्मेलनों , आकाशवाणी के कार्यक्रमों, सांस्कृतिक मंच आदि आयोजनों में गायकी द्वारा अपनी काव्य मई भावना प्रस्तुत करने वालों में सर्वश्री पवन दीवान , रवी शंकर शुक्ला, रामेश्वर वैष्णव, , लक्ष्मण मस्तुरिया , मुकुंद कौशल, हेमनाथ वर्मा, मैथ्यू जहानी, ,  सागर, जीवन यदु , डॉक्टर माधव प्रसाद गुप्ता, मुस्तफा हुसैन, बसंत दीवान आदि प्रमुख है। भिलाई के श्री रामविलास शर्मा जो एक प्रसिद्ध कथावाचक है, की छत्तीसगढ़ी कविता में संगीत का संयोजन होता है ।

लक्ष्मण मस्तुरिया के छत्तीसगढ़ी के स्थापित संगीतकार बन चुके हैं और छत्तीसगढ़ी फिल्मों के गीत लिख रहे हैं “चंदैनी गोंदा” में स्थापित हुए “मोर संग चलो रे” जैसे पहुंच गए जैसे गीतों के माध्यम से अपनी विशेष पहचान बनाई और प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे । छत्तीसगढ़ी फिल्म मोर छैया भुइयां के लिए इन्होंने सुंदर गीत लिखे हैं।

छत्तीसगढ़ी महाकाव्य 
छत्तीसगढ़ी में तीन महाकाल के, श्री राम कथा, श्री कृष्ण कथा श्री महाभारत कथा। प्रमुख है इनकी रचना प्रणय जनी ने कर छत्तीसगढ़ी साहित्य की इस विद्या कि सम्पूर्ति का छत्तीसगढ़ी महा काव्य जगत में ऐतिहासिक स्थान प्राप्त किया है।

छत्तीसगढ़ी खंडकाव्य 
खंड काव्यों की स्वरूप परंपरा के क्रम में पंडित सुंदरलाल शर्मा के “दान लीला”, पंडित शिवदास पांडे की “छत्तीसगढ़ी दानलीला”, गोविंदराव विट्ठल की “नाग लीला”, उम्र दलपत सिंह का “रामयश मनोरंजन”, गया प्रसाद बसरिया का “महादेव के बिहाव”, बुलंद दस कुर्रे “महाभारत चक्रव्यूह”, मदन लाल प्रजापति का “मोरध्वज एवं गांधी गाथा”, बृजलाल शुक्ल की “सुखवा” , श्यामलाल चतुर्वेदी का “राम वनवास”, जमुना प्रसाद यादव का “श्याम संदेश”, बृजलाल शुक्ल का “किशन कन्हैया”, एवं  “सबरी सत्कार”, कल्पित नाथ कश्यप का “सीता की अग्नि परीक्षा” एवं “हीरा कुमार”, डॉ विनय कुमार पाठक का “सीता के दुख”, मणिलाल कटाक्वार का “लीलागर” , संतराम साहू का “चंदा लोरी कामकला”, छत्तीसगढ़ी खंडकाव्य के उल्लेखनीय कृतीय हैं .

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