Top 20+ Chhattisgarhi Lok Geet | छत्तीसगढ़ के लोक गीत

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छत्तीसगढ़ व्यापक रूप से गावो , कस्बो का राज्य है । यंहा की संस्कृति को लोक संस्कृति के रूप में देखना सबसे अधिक सुन्दर और सार्थक माना जाता है । chhattisgarh की संस्कृति लोक संस्कृति है , जो जनजातीय लोगो और अलग अलग भू भागो के साथ में इनकी अलग अलग अपनी एक अलग ही संस्कृति दिखती है और उन्हें संरक्षित भी किया जा रहा है ।

इन सभी के विचार , रीती रिवाज , पर्व उत्सव , यंहा की देवी देवताओ की मान्यताये , यंहा की लोगो की जीवन शैली , यंहा की भाषा , कथाय , लोक कथाय , लोक नृत्य , लोक गीत , लोक संगीत , लोक नाट्य , लोक आचरण , और यंहा की लोक देवता , का एक विराट रूप है जिसे आसानी के साथ समझ नहीं जा सकता है और न ही इन्हे कम साम्य में परखा जा सकता है ।

इनकी chhattisgarhi lok geet सबसे सुन्दर , घनिष्ठ , मधुर और निरवाळी है जो लोगो के मन को महित कर लेती है । भले ही विकास की दृश्टिकोण से देखे तो बहुत ही पिछड़ा हुआ है । किन्तु संस्कृति की दृटिकोण से देखे तो इसमें सबसे आगे है । दया , ममता , सरलता , आदरता , chhattisgarh के लोगो का गुण है ।

Chhattisgarhi Lok geet
Chhattisgarhi Lok geet

छत्तीसगढ़ में अनेक सस्कृति पलती है बढ़ती है । जंहा तक उसे अपनी संस्कृति का प्रश्न है , वह अपने पुराने संस्कृति से आज भी अच्छे , घनिस्ट रूप से जुड़ा हुआ है । chhattisgarh के अधिकांश निवासी प्रकृति में आस्था रखते है लेकिन सच और ईमान के आलावा इनका कोई अलग देवता नहीं है । यदि देखा जय तो तेजी से बदलती दुनिया के कारन से chhattisgarhi lok geet पर इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है ।

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1. छत्तीसगढ़ के लोकगीत Chhattisgarhi Lok Geet
2. छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम

छत्तीसगढ़ के लोकगीत Chhattisgarhi Lok Geet

cg lok geet लोगो की सामान्य और अलिखित व्यावहारिक रचना है , जो लोक परप्मरा से शुरू होती है और उसी से जुडी हुई है । लोक गीतों के रचियता प्रायः अज्ञात होता है लेकिन वह लोगो से समूहों से जुड़े हुए और लोगो के ही द्वारा रचना किया गया होता है ।

यह lokgeet किसी व्यक्ति विशेष के साथ में जुड़कर के मौखिक परम्परा के रूप में जीवित रहता है और मखीर रूप से ही युगो से चलता आ रहा है । लोक गीत प्रायः कटुताओं , पर्वो से संबंधित , संस्कारो से जुड़े हुए , धर्म से जुड़ हुए , और श्रम से सम्बंधित होते है ।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत को गाने के लिए किसी भी बंधन या नियम नहीं होता है इसे किसी भी समय , कही भी , आते जाते , काम करते , उठते बैठते , सोते जागते कंही भी गया जा सकता है इसका कोई समय अंतराल नहीं है । यह मन के आवाज और मन की गुनगुना से शुरू होता है । इस कारन से इसे संस्कृति के संवाहक कहा जाता है ।

छत्तीसगढ़ के लोक गीत श्रम और साधना के गीत है । chhattisgarh मूल रूप से lok geet और आख्यान की बोली है इसलिए chhattisgarh lok geet में पंडवानी , भरथरी , चंदैनी भाठा , ढोल मारु , बांस गीत , के साथ ही विभिन्न संस्कार गीत , पर्व गीत , पर्व त्यौहार गीत , अनुष्ठान गीत , बारह मास गीत ,

सुआ गीत , ददरिया गीत , बच्चो के खेल गीत , धनकुल लोक गीत , लक्समी जगाओ लोक गीत , आदि गीतों के साथ में छत्तीसगढ़ के लोक गीत में लोक गायन की परम्परा दिखाई देती है । cg lokgeet गायन शैली में विविधता है । जिसे अलग अलग भावो से , अलग अलग गायन शैली से गया जाता है ।

छत्तीसगढ़ के लोकगीतों के नाम

1 . पंडवानी Chhattisgarhi Lok Geet

पंडवानी एक लोकगाथा है किन्तु महाभारत के पांडवो की कथा का chhattisgarhi भाषा में बताया जाना ही पंडवानी कहा जाता है । पंडवानी में किस्सा , संगीत , एवं अभिनय तीनो के मेल होने से एक अतभुत कथा के रूप में दिखाई देता है । पंडवानी का मूल आधार प्रधान देवारो की पंडवानी गायकी है ।

पंडवानी मूल रूप से महाभारत की कथा पर आश्रित है जिसमे महाभारत के सामान ही सहस , जोश , धर्म , आधात्म , और श्रृंगार के सभी भाव देखे जा सकते है । पंडवानी को सुनाने वाले मूल रूप से महाभारत की लिखित पंक्तियों के बारे में नहीं जानते , उनके गायन में परिस्कृत साहित्यिक दखल न होकर के लोक वाणी होती है । पंडवानी के लिए किसी भी प्रकार के अवसर , माह , या अनुष्ठान की आवश्य्कता है होती है इसे किसी भी समय , कंही भी , किसी भी दिन , महीना में गया जा सकता है ।

[su_heading size=”15″ align=”left”]पंडवानी की दो शाखाय मिलती है – [/su_heading]

1 . वेदमती शाखा
2 . कापालिक शाखा

वेदमती शाखा –
 वेदमती शाखा की पंडवानी को शास्त्रीय पंडवानी भी कहा जाता है । इसके गायन को शास्त्र को जानने वाले ही  गायकी करते है । इसे सामूहिक रूप से भी गया जाता है लेकिन मात्र गायक ही है जो हाथ में तमूरा , करताल बजता हुआ और नित्य करते हुए महाभारत की कथा को बतलाता है । इसकी बातो को हुंकार देने वाला रागी होता है । साथ में तबला , ढोलक , हारमोनियम , करताल के साथ में आख्यान किया जाता है ।

समय के परिवर्तन के साथ में वेदमती शाखा भी कमजोर पड़ने लगी और तीन भोगो में बात गया –

पहला शाखा – बैठा हुआ नाट्य शैली – इसमें महाभारत की कथा सुनाने वाला अपने हाथ में तमूरा  के साथ में अभिनय करता हुआ गायन करता है । इसमें झाडूराम देवांगन इस शैली के सबसे श्रेष्ठ कलाकार है ।
दूसरा शाखा – उठता हुआ नाट्य शैली – इसमें महाभारत की कथा बताने वाला उठकर के , खड़े होकर के , चलते फिरते हुए गायन करता है । विश्वप्रसिद्ध तीजन बाई इस कला का अच्छा उदहारण है ।

तीसरा शाखा – इसमें महाभारत की पंडवानी सुनाने वाला खड़े होकर के अभिनय करते हुए गायन करता है और रागी हुंकार भरते हुए उन्ही बात की कड़ियों को दोहराता है । इस श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ पंडवानी गायक रेवाराम जंजीर है ।

कापालिक शाखा

यान पंडवानी का परम्परागत गायन शैली है । जिसे देवर और परधान जैसे गायक पालथी मार के बैठ कर के गाते है । पंडवानी सुनाने वाला है वादन अर्थात बजाता भी है । और इसमें वाद्य यंत्र के आधार पर इसे दो भागो में गया है – सारगिया देवा , दुगरु देवा आदि ।

कापालिक गायन शैली मात्र कथा गायन शैली है , कापालिक गायन में संगीत और कथा का ही महत्व है । आधुनिक विचारधारा और गायन में कठिनता के कारन से कापालिक शैली धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहे है साथ ही इसके वाद्य को बजन वाले भी बहुत ही कम है । कापालिक गायन शैकी की प्रमुख गाईका ऋतू वर्मा है ।

इस प्रकार से पंडवानी chhattisgarh lok geet की अपनी एक विशिस्ट शैली है । जो न केवल chhattisgarh को ही बल्कि पुरे विश्व में भारत की लोक गीत की अमित छाप बनाई हुई है । chhattisgarh ke lokgeet विदेशो में जैसे अमेरिका , फ़्रांस , इंग्लैण्ड जैसे देशो में इनकी अलग ही पहचान बन गई है ।

2 . पंथी गायन -Chhattisgarhi Lok Geet

पंथी गायन chhatisgarh के सतनामी समाज के परम्परगत chhattisgarh lok geet है । विशेष अवसर पर खासकर के गुरुघासीदास जी के ज्ञान प्राप्ति के दिन प्रतिवर्ष दिसम्बर माह में सतनामी समाज के लोगो के द्वारा पंथी नित्य किया जाता है । पंथी cg lok geet में जैतखाम बनाया जाता है और उस घेरे में आसपास के सभी लोग पंथी नित्य को गीत मई नित्य करते है । और इसकी शुरआत गुरुवंदना से होती है । 

पंथी नित्य की अपनी एक अलग ही धुन होती है , उनकी वाद्य यंत्र भी गायन के हिसाब से बजाया जाता है । गायन में सतनामी समाज के निर्माण करने वाले गुरु घासीदास जी के चरित्र के बारे में बताया जाता है । पंथी गायन करते हुए उनके सन्देश , सत्कार्य करने की प्रेणा , गुरु और गुरु परिवार की इस्तुति , मुक्ति के बारे में बताया जाता है ।

पंथी नित्य में आध्यात्मिक सन्देश के साथ में मनुष्य के जीवन के महत्ता के बारे में बताया जाता है ।

गायन के साथ में मुख्य वाद्य यंत्र मांदर और झांझ होते है जो पंथी करते हुए लोगो के आलावा सुनने वाले लोगो को भी आकर्षित कर देता है । पंथी नित्य छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा प्रचलित है और तेजी से बढ़ने वाला छत्तीसगढ़ के लोकगीत है ।

3 . भरथरी

भरथरी एक लोक गाथा है । इसमें राजा भरथरी और उनकी रानी पिंगला की कथा का गायन होता है । छत्तीसगढ़ के लोक गीत में भरथरी संगतिक और काव्यात्मक प्रतिष्ठा है भरथरी गायन में राग और विराग के दोनों रूप देखे जा सकते है । छत्तीसगढ़ में भरथरी को एक अलग ही पहचान है । नाथ और पंथी के प्रभाव के कारन से इसकी विशिस्ट पहचान है ।

भरथरी में प्रमुख वाद्ययंत्र सारंगी , या इकतारा होता है जिसे आप भरथरी गाते हुए योगियों को देख सकते है । छत्तीसगढ़ में भरथरी लोक गीत की शीर्ष गायिका सूरजु बाई खांडे है जो भरथरी गायन में प्रसिद्द है । भरथरी लोक गायन में श्रृंगार रस की प्रधानता है ।

4 . चांदौनी गायन ( लोरिक चंदा )Chhattisgarhi Lok Geet

लोरिक चंदा – लोरिक चंदा लोक साहित्य , लोक गीत , लोककथाओं में प्रशिद्ध प्रेमी है जिनके बारे में जाना जाता है । लेकिन आज देखा जाय तो लोरिक चंदा के प्रेम कथा के बारे में आज किसी किसी को ही पता होगा । लोरिक चंदा एक प्रेम कथा है जिसमे चंदा एक लड़की का नाम है जो आरंग रायपुर की रहने वाली है और लोरिक का नाम है जो आरंग से 8 किलोमीटर के दुरी पर स्थित रीवा ग्राम का निवासी था . और दोनों के बीच में अथाह आदर्श प्रेम के कारन से लोगो के जुबान में आज लोरिक चंदा प्रेम प्रसंग बन कर गया है ।

और इसी के प्रेमगाथा को देखकर के गीत बनाई गई जिसे लोरिक चंदा कहा जाता है । लोरिक चंदा की शैली गाथात्मक शैली है । छत्तीसगढ़ में लोरिक चंदा के श्रेष्ठ गायक , वरिष्ठ गायक चिन्तदास चंदैनी है ।

 5 . ददरिया -Chhattisgarhi Lok Geet

ददरिया मूल रूप से प्रेम गीत है , जिसमे श्रृंगार गीत की प्रधानता होती है । ददरिया को छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का राजा कहा जाता है । छत्तीसगढ़ के लोक गीतों में युवा मन की अभिव्यक्ति का अत्यंत सशक्त माध्यम है । ददरिया दो दो पनकी के छोटे छोटे गीत होते है , जो लोकगीत काव्य के श्रेष्ठ उदहारण है । ददरिया छत्तीसगढ़ के लोक गीत को स्त्री और पुरुष दोनों एक साथ गए सकते है और इसे अलग अलग भी गए सकते है ।

जब स्त्री और पुरुष एक साथ मिलकर के गाते है तब ददरिया chhattisgarh ke lokgeet को सवाल जवाब के रूप में गाया जाता है । इसमें स्त्री के दो दाल भी एक साथ मिलकर के संवाद करते हुए ददरिया लोक गीत को गा सकते है । ददरीया के धुन इतनी लोकप्रिय और सुनने में इतना मधुर होता है की इसे कोई भी आसानी के साथ में गा सकता है ।

ददरिया गाते समय ददरिया के हर दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द को पकड़कर कर के गया जाता है । ददरिया का कोई समय नहीं होता है इसे किसी भी समय गुनगुनाया जा सकता है जैसे महुआ बिनते समय , धान बोते हुए , धान कटाई करते समय , धान कुटाई करते समय , कंही जाते हुए । ददरिया लोक गीतों का जीवन के किसी भी बात में हो सकती जंहा पर प्रेम प्रसंग के बारे में कहा जाये .

लड़की – करे मुखारी करौंदा रुख के ,
एक बोली सुना दे अपन मुख के ।।

6 . बांस गीत -Chhattisgarhi Lok Geet

बांस लोक गीत मूल रूप से गाथा गायन है । बांस गीत में रागी और वादक प्रमुख होते है । रागी का मतलब – गायक के बातो को हुकरू देने वाला । इसमें गायक कथा को गाता है , रागी हुंकारू देता है और वादक बांस बजाता है । वादक मोठे मांस की लगभग एक मीटर की लम्बी बांसुरी होता है जिसे फुकने से आवाज निकलती है ।

वादक अपने बांस वादक को खूब सजा कर के रखता है । इस कथा में लम्बे बांस का उपयोग में लाने के कारन से इसे बांस chhattisgarh ke lokgeet के नाम से जाना जाता है । बांस को कथा के शुरू होने से लेकर के कथा के अंत तक बजाया जाता है ।

cg lok geet में बांस गीत का प्रचलन राउत या यादव समाज के लोगो में देखा जा सकता है । बांस गीत में एक गीत गाता है और दूसरा बजाता है । बांसगीत के कथा में सित – बसंत , मोरध्वज कर्ण , आदि है । छत्तीसगढ़ के ग्राम बेसिन के केजूराम यादव , खैरागढ़ के नकुल यादव बांस लोकगीत के सर्वश्रेठ गायक है ।

[7 . ढोला मारु -Chhattisgarhi Lok Geet

ढोलामारु मूल रूप से राजिस्थान की लोकगाथा है लेकिन ढोलामारु सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रचलित है । ढोला और मारु की प्रेम कथा का त्रिकोणात्मक उसे सबसे अधिक रोमांचकारी बना देती है । ढोलामारु में जादुई चमत्कार और ग्रामीण तंत्र मन्त्र की कथा से लोकप्रिय बन गई है ।

छत्तीसगढ़ के लोक गीत में ढोलामारु की कथा को प्रेम गीत के रूप में अधिक जाना जाता है । छत्तीसगढ़ ढोला मारु की कथा में मारु का अधिक वर्णन होता है ।
छत्तीसगढ़ में सुरुजू भाई खांडू की ढोलामारु गाथा की कथा अधिक प्रसिद्ध है ।

8 . घोटुल पाटा -Chhattisgarhi Lok Geet

घोटुल पाटा cg लोकगीत मृत्यु के बाद में गया जाने वाला लोक गीत है जो बहुतया में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में गया जाता है । आदिवासी में मुड़िया जनजाति के लोगो में ज्यादा प्रचलित है । घोटुल पाटा में बुजुर्ग व्यक्ति यह लुक गीत को गाता है जो मुख्यतः राजा जलोन्ग साय कथा के साथ में प्रकृति के अनेक जटिल रहस्यों का समाधान प्रस्तुत करता है ।

9 . सुआ गीत – Chhattisgarhi Lok Geet

सुवा सीट मूल रूप से छत्तीसगढ़ में महिलाओ और किशोरियों का गीत है जंहा नित्य करते हुए सुवा गीत गया जाता है । सुआ नित्य के साथ ही सुवा लुक गीत दीपावली के कुछ दिन पूर्व और दीपावली के सिव गौरा विवाह के साथ में समाप्त होता है । सुआ गीत श्रृंगार प्रधान है ।

सुआ गीत में नित्य करते हुए मिटटी के तोते के साथ में महिलाय और युवा लड़किया गोल घेरे बनाकर के गीत गाती है ।सुवा गीत प्रेम का गीत है । सुवा गीत में प्रेमिका अपने प्रेमी को सुवा गीत के माद्यम से सन्देश भेजती है । धान के कटाई के बाद में में सुरु होता है ।

10 . लोरी गीत – Chhattisgarhi Lok Geet

लोरो लोक गीत में महिलाओ द्वारा गया जाने वाला cg lokgeet है । जिसमे माताए अपने बच्चो को सुलाने के लिए लोरी गीत का प्रयोग करती है ।

11 . जंवारा गीत – Chhattisgarhi Lok Geet

जंवारा छत्तीसगढ़ के लोकगीत सबसे अधिक प्रचलित है । जंवारा गीत साल में दो बार गया जाता है । एक तो दसहरा के समय में और दूसरा चैत नवरात्री में होली के बाद में गया जाता है । जंवारा lok गीत में महिलाओ और पुरुष दोनों के साथ बैठकर के गाते है और कभी कभी तो महिलाय अकेला जाती है और पुरुष अकेला गाता है । जंवारा लोक गीत में देवी माँ सीतला के भजन , माता को प्रसन्न करने के लिए आस्था भाव को दर्शाते हुए गाया जाता है ।

जवांरा गीत में प्रमुख वाद्ययंत्र ढोलक , मंजीरा , नगाड़ा , बेंजो , हारमोनियम , आदि प्रमुख होता है ।

12 . संधोरी गीत

संधोरी गीत को जब गर्भवती महिला के सात महीने पुरे हो जाते है तब संधोरी chhattisgarh ke lokgeet को गया जाता है ।

[su_heading size=”16″ align=”left”]13 . सोहर गीत – छत्तीसगढ़ के लोक गीत[/su_heading]

सोहर गीत को बालक शिशु के जन्म लेने के पहले पुत्र प्राप्ति के लिए cg lokgeet गीत को गया जाता है ।

[su_heading size=”16″ align=”left”]14 . भड़ौनी गीत – CG LokGeet[/su_heading]

   भड़उनी गीत एक प्रकार का विवाह गीत है । जो दूल्हे के सलियो द्वारा दूल्हे के उपहास , मज़ाक करने के लिए गया जाने वाला लोक गीत है ।

[su_heading size=”16″ align=”left”]15 . सवनाही गीत – CG Lokgeet[/su_heading]

सवनाही गीत को वर्षा ऋतू में बरसात के पहले माँ सीतला में मंदिर में गया जाने वाला गीत है । इस गीत में पुरुष होते है । बुजुर्ग पुरुष इस गीत को गाते है और देवी सीतला के मंदिर में ठाकुर देव के आसपास में पूजा किया जाता है । इस पूजा में बहुत सारे बच्चे  को बैल बनाया जाता है और उसके ऊपर में पानी , धान और उन्हें ठाकुर देव के चारो और बैल बनाकर के घुमाया जाता है और उसके हाथ में लोहे के औजार होते है जो जमीन में हल चलाने की भांति हाथ को करते हुए चारो और घूमते है ।

ये सभी प्रकिया मानो ऐसा होता है जैसे की किसी खेत में धान की बुवाई के लिए किया जाता है । जंहा खेत में बैल होते है और और उसे जोतने वाले होते है और उसमे बीज भी डाला जाता है ठीक इसी प्रकिया के साथ सवनाही cg lokgeet गया जाता है ।

[su_heading size=”16″ align=”left”]16 . फ़ाग गीत – छत्तीसगढ़ के लोकगीत[/su_heading]

फ़ाग गीत को होली के समय गया जाता है । जंहा पर प्रमुख वाद्ययंत्र नगाड़ा होता है ।

[su_heading size=”16″ align=”left”]17 . संस्कार गीत – Chhattisgarhi Lok geet[/su_heading]

संस्कार गीत को शादी के अवसर में गाया जाता है । संस्कार गीत के कई अलग अलग गीत होते है
1 . चुलमाटी गीत – चुलमाटी गीत को शादी के आरम्भ के समय मिटटी लाने के नेंग के अवसर पाय यह गीत को गाया जाता है ।
2 . तेलचघी गीत – जब वर और कन्या को हल्दी लगाया जाता है उस समय गया जाता है ।
3 . परघइनी गीत – बारात के स्वागत के समय यह गीत को गाया जाता है ।
4 . भढ़ैनी गीत – बारातियो के भोजन के समय है परिहास के समय इस गीत को गया जाता है ।

5 . भवार गीत – विवाह के फेरे लेने के समय इस गीत को गाया जाता है ।
6 . टिकावन गीत – नव दंपत्ति को उपहार देते समय इस गीत को गया जाता है ।
7 . बिदाई गीत – विवाह के समापन के समय यह गीत को गया जाता है ।

 18 . मड़ई गीत – CG LokGeet

मंडई गीत को मंडई के अवसर में गया जाता है । इसमें छत्तीसगढ़ के जनजीवन का चित्रण मिलता है ।

19 . देवार  गीत – CG LokGeet

देवAर छत्तीसगढ़ की खाना बदोश जाति है । नित्य और गीत ही मात्र इनका जीविका चलाने के साधन है , इसके आलावा ये अपने जीविका को चलाने के लिए शुवर का पालन भी करते है । देवर गीत में हास्य देखने को मिलता है ।

20 . गौरी गौरा गीत- Chhattisgarhi Lok geet

दीपावली के दिन विशेष के लोक गीत में गौरी और गौरा के गीत को गाया जाता है ।

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