Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai || धनतेरस क्यों
दीपावली के आ जाने के बाद से कुछ चीज है जो बदल जाती है। हमारी परंपरा में एक विज्ञान बनाया गया था कि हमें कैसे रहना चाहिए तो दिवाली के महत्व को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया गया है इसे वापस लाने का समय आ गया है ताकि आपकी हो जाएंगे ना जाए और आप उन सभी अशुभ शक्तियों के शिकार न बन जाएं जो हमेशा आप पर काम करती रहती हैं।
दीपावली का समय क्या महत्व है ?
यह त्यौहार है जो हमेशा कैलेंडर में कार्तिक माह के 13 वे दिन आता है और इसे त्रयोदशी कहते हैं । कार्तिक मास के 13 वे दिन त्यौहार होता है । हमारी परंपरा में इसका विज्ञान यह है की इस दिन सभी पूजा करते हैं दीपावली के दिन यह परंपरा है कि सभी धनवंतरी की पूजा करते हैं जो हमारी सेहत और खुशहाली के लिए है ।
आज धनवंतरी शब्द का अर्थ काफी हद तक बदल गया है । धनवंतरी या धन्वंतरी देवता आयुर्वेद के स्त्रोत माने जाते हैं । आयुर्वेद और सेहतमंद का इतिहास है ।
धनतेरह नाम कैसे पढ़ा ?
यदि आप भारत के उत्तर भारत में देखेंगे वहां की भाषा की प्रकृति कैसी है उत्तर भारत में ज्यादातर लोग हिंदी भाषा बोलते हैं । और वह आखिरी शब्द को काट देते हैं यदि। आप कहेंगे ध्यान लिंगम वह कहेंगे ध्यान लिंग , अगर आप कहेंगे शिवा वह कहेंगे शिव , अगर आप कहे रामा तो वह कहेंगे राम । कृष्णा वह कहेंगे कृष्ण , दीपावली को कहेंगे दिवाली इस भाषा की यही आदत है हमेशा आखरी शब्द को ही काट देते हैं लगभग हर शब्द का ।
तो किसी ने धन्वंतरी और त्रयोदशी शब्दों को काटा और बना दिया धनतेरह । जो चीज सेहत के लिए थी वह अब बन गई है धन के लिए । धन यानी कि पैसा । अब सब सोचते हैं दीपावली पैसे से जुड़ी है ।
क्योंकि हम में से जो लोग उत्तरी गोलार्ध में रहती हैं उनके लिए कार्तिक मास की त्रयोदशी से कुछ चीजें बदल जाती है । कुछ चीजें कुछ चीजें बदलती हैं जो जिसे जिससे धीमा होता है । सर्दियों के मौसम में आपको कब उठना चाहिए , कब खाना चाहिए आपकी खाने की आदत कैसे बदलनी चाहिए , आपकी योग अभ्यास करना चाहिए । इन सबके लिए हमारी परंपरा में एक विज्ञान बनाया गया कि हमारा रहन सहन कैसा होना चाहिए। ताकि सर्दियों के महीनों में गुजर पाए बिना किसी बीमार पड़े हुए , बिना किसी संतुलन और उद्देश्य को खोय ।
इसका पूरा का पूरा विज्ञान था दिए जलाना और पटाखे फोड़ना भी उन्हीं चीजों में से एक था। ताकि आपकी और जाएं गिरने ना लग जाए । वंश के स्तर पर एक आयाम होता है हमारे अंदर विकास से जुड़ी हुई प्रक्रिया की यादें होती हैं । जो सोचती है कि जैसे ही सर्दी के मौसम आती है चाहे वह मौसम ठंडा हो या ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता बदलाव होती है ।
धरती और सूरज के बीच स्थिति बदल जाती है जिससे धरती पर जीवन धीमा होते चला जाता है । उदाहरण के लिए यदि आप एक भालू होते तो एक लंबी नींद में होते . तो शरीर में एक लंबी नींद में जाने की प्रवृत्ति होती है । यदि आपको यह ना पता हो तो कि इस मौसम में यानी कि सर्दी के मौसम में बीज अंकुरित नहीं होते हैं । भारत में मौसम से लेकर 14 जनवरी तक कोई बीज नहीं होते क्योंकि पूरी तरह से अंकुरित नहीं होगा । या फिर इतना तेजी से अंकुरित नहीं होगा जो दूसरे मौसम होता है ।
उत्तरी गोलार्ध में धनतेरस के (Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai ) बाद पूरा जीवन धीमा हो जाता है क्योंकि जीवन धीमा होने जा रहा है इसलिए हम अपने आसपास और ज्यादा ऊर्जावान कार्य करने की तैयारी करें ताकि हम खुद ही में ना हो जाए और इसका हिस्सा ना बन जाए । एक तरह से हम अपने विकास की प्रक्रिया पर डटे रहना चाहते हैं ।
यदि हम और कोई प्राणी होते तो इस मौसम में दुबक कर सो जाते । धनतेरस के बाद पूरा जीवन ही धीमा हो जाता है क्योंकि सूर्य और पृथ्वी की दूरी बढ़ती जाती है इस वजह से इस महीने में धीमा पन आ जाता है ।
यह चंद्र माह 13 वे दिन ऐसा होता है जिसे कार्तिक त्रयोदशी कहते हैं । तो इसके भरपाई के लिए भारत में कई तरह के काम किए जाते हैं । इस महीने के बाद उसे आमतौर पर परंपरा के हिसाब से , इसमें पुरुष और महिलाएं अपने काम को बदल लेते हैं उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं
सुबह होते ही अपने आंगन की साफ सफाई करते हैं और अपने आंगन में ज्योमेट्री डिजाइन बनाती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं सिर्फ एक ही डिजाइन बनती है । उसे हर दिन हर सप्ताह में अलग-अलग डिजाइन बनाने होती हैं । यह डिजाइन चावल के आटे से बनाई जाती है । ऐसा करने से हमारे घर में एक एक विशेष ऊर्जा आकर्षित होती है । यदि अगर आज पूर्णिमा है तो एक तरह की डिजाइन । यदि अमावस्या हो तो एक अलग ही डिजाइन । वे जानते थे किस दिन क्या बनाना है ?
इन महीनों में रंगोलियां बनाने का काम पुरुषों का हो जाता है । और यह सा महीना होता है पुरुष सड़कों पर गाना गाते हुए जाना होता है । आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ही कम लोग ऐसा करते हैं लेकिन शहरों में यह धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही है । यदि आप गांव में रहते तो उसे अपने सिस्टम के लिए ढोल नगाड़े और ताल की जरूरत होती है ताकि वह हाइपरनेट ना करने लगे , कहीं उसका सिस्टम धीमा ना हो जाए तो दीपावली इसीलिए होती है शायद आप रोशनी ना देख पाए इसलिए पटाखे जलाए जाते हैं ताकि आप जाग जाएं ।
सुबह के समय पूरे कस्बे में लोग पटाखे फोड़ने लगते है जिससे लोग जाग जाय और जीवंत हो जाये । क्योंकि सर्दियों के महीने में यह जरूरी होता है कि आप सूरज से पहले उठ जाएं । सूरज की पहली किरण घांस या कीड़े पर नहीं पढ़नी चाहिए । सूरज की पहली किरण आप पर पढ़ना चाहिए ।
इस प्रकार के महत्व को काफी हद तक लोगों ने नजरअंदाज कर दिया है । पर फिर भी लोग थोड़ा बहुत गा रहे हैं और पटाखे फोड़ रहे हैं जिसे वापस लाने का समय आ गए हैं। विशेष रूप से इनमें से कुछ चीजें यदि हम कर पाए तो बहुत बढ़िया होगा । की दिवाली कोई धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि यह त्यौहार हमारी पृथ्वी की स्थिति से जुड़ा हुआ है क्योंकि हम उत्तरी गोलार्ध में हैं जिसके कारण हमारे अंदर होते हैं हमारे शरीर में हमारे पौधों में जानवरों में होते हैं , हर चीज में और आप देखेंगे कि यह सब कुछ धनतेरस (Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai )के बाद धीमा हो जाता है ।
पर यदि आप अपने भीतर धीमे हो गए , आप मानसिक रूप से धीमे हो गए तो आप थोड़े मंद हो जाएंगे । यदि आपका जीवन मंद हो गया तो आपको कई ऐसी बीमारियां हो सकती हैं .
जो तब नहीं होगी जो आपका शरीर जीवंत और ऊर्जावान हैं तो अभी आपके अंदर एक हजार इंफेक्शन हो तो आप बीमार नहीं पड़ेंगे क्योंकि शरीर ऊर्जावान और जीवंत है अगर शरीर थोड़ा सा धीमा हो गया तू यह छोटी-छोटी चीजें हैं जो आपकी अंदर भीमा हो जाएगा , इसीलिए यह त्यौहार इसीलिए यह त्यौहार धनवंतरी जीवन में खुशहाली से जुड़ा हुआ है कि हमें अपने सिस्टम को जीवंत रखना चाहिए। 14 जनवरी तक सभी चीजों को ऊर्जावान रखा जाना चाहिए । तो यही धनवंतरी (Dhanteras Kyu Manaya Jata Hai ) की त्रयोदशी का महत्व है ।