3 बुद्ध की बचपन की कहानी | Gautam Buddh Ki Bachpan Ki Kahani

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हेलो दोस्तों स्वागत है आप सभी है हरे इस ब्लॉग पोस्ट में । आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको गौतम बुद्धा के (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani ) की कहनियो को बतलाने वाले है जो बहुत ही रोचक और उसकी बचपन में ही उनकी सोच किस प्रकार से विकसित हो चूका था इस कहानी को पढ़कर के आप खुद ही आंकलन लगा सकते है ।

तो चलिए दोस्तों बिना किसी देरी के इस कहानी (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani)  को सुरु करते है :-

गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani

हम आपको आज की इस पोस्ट के माध्यम से गौतम बुद्ध की बचपन की BEST 3 प्रेरणा दायक कहानिया को बतलाने वाले है जो आपके जिंदगी को बदल कर रख देगी ।

1 . राजा असित का आगमन (_गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी)

जिस समय बालक भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ उस समय हिमालय में एक असित नाम के एक बड़े ऋषि रहते थे। जब असित ऋषि सुना की आकाश में स्थित बुध शब्द की घोषणा कर रहे हैं ।  उसने अपने दिव्य दृष्टि से देखा कि वह अपने वस्त्रों को उछाल उछाल करके बड़ी प्रसन्नता के मारे इधर-उधर घूम रहे हैं । और अपनी दृष्टि से यह सोचकर वह सोचने लगा कि मैं वहां क्यों ना जाऊं, जहां बुद्ध ने जन्म लिया है ।

जब उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से समस्त जंबूद्वीप पर अपनी दृष्टि डाली तो देखा कि शुद्धोधन के घर में एक दिव्य बालक ने जन्म लिया है और देवताओं की भी इतनी अधिक प्रसन्नता का यही कारण है ।

इसलिए वह महान ऋषि असित अपने भांजे नालक के साथ राजा शुद्धोधन के घर आए और उनके महल के द्वार पर खड़े हुए ।

जब असित ऋषि ने देखा कि शुद्धोधन के द्वार पर लाखो आदमी की भीड़ एकत्रित है । वह द्वारपाल के पास गए और कहा-अरे ! जाकर राजा से कहो कि दरवाजे पर एक ऋषि खड़े हैं ।”

द्वारपाल राजा के पास गया और हाथ जोड़कर विनती की कि – हे राजन ! द्वार पर एक वृद्ध ऋषि पधारे हैं और आपसे भेंट करना चाहते हैं ।”

राजा ने असित बैठने के लिए आपन की व्यवस्था की और द्वारपाल को कहा- ” ऋषि को आने दो । द्वारपाल महल के बाहर जाकर के ऋषि असित  को कहा – कृपया भीतर पधारे राजा आपको बुला रहे हैं ।

असित राजा के सामने उपस्थित हुए और उसे खड़े-खड़े आशीर्वाद दिया- राजा आपकी जय हो , राजन आपकी जय हो आपकी साल तक जी और अपने राज्य पर धर्म अनुसार शासन करें ।

जब शुद्धोधन ने असित  अजीत राजा को साष्टांग दंडवत किया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया। जब उसने देखा कि असित  ऋषि सुख पूर्वक आशाएं तो शुद्धोधन ने कहा- हे  ऋषिवर ! मुझे स्मरण नहीं है कि इसके पूर्व आपके दर्शन हो । आपके यहां आगमन का उद्देश्य क्या है ? मुझे स्मरण नहीं है कि इसके पूर्व आपके दर्शन हुए हैं ? आपके यहां पधारने का क्या कारण है ?

राजा के प्रश्नों को सुनकर असित  ने कहा – राजन ! तुम्हें पुत्र लाभ हुआ है। मैं उसे देखने के लिए आया हूं ।

तब राजा शुद्धोधन बोला – ऋषिवर बालक अभी सोया है। क्या आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करने की कृपा करेंगे राजा ने असित  कहां । असित ने राजा से कहा – हे राजन इस तरह की दिव्य थी देर तक नहीं सोती रहेगी। वे स्वभाव से ही जागरूक होते हैं ।

तब बालक ने ऋषि पर अनुकंपा करके अपने जागते रहने का संकेत किया। यह देखकर कि बालक जाग उठा है, शुद्धोधन ने उसे अपने दृढ़ता पूर्वक दोनों हाथों में लिया और ऋषि असित के सामने ले आया ।

जब ऋषि असित ने देखा कि बालक 32 महापुरुष लक्षणों तथा असी अनु व्यंजनों युक्त है। उसने देखा कि उसका शरीर शुक्र और ब्रह्मा से भी अधिक दीप्त है और उसका तेजो मंडल उनके तेजू मंडल से कई लाखों गुना अधिक प्रदीप्त है । वे अपने आसन से उठ खड़े हुए , दोनों हाथ जोड़े उसके पैरों पर गिर पड़े । उन्होंने बालक की प्रक्रिया की और उसने अपने हाथों में लेकर विचार मगन हो गए ।

असित ऋषि पुरानी भविष्यवाणी से परिचित थी कि जिसके शरीर में गौतम की ही तरह 32 महापुरुष के लक्षण होंगे, वह इंदु पतियों में से एक को निश्चित रूप से प्राप्त होगा , तीसरी को नहीं। यानी कि वहां गृहस्थ जीवन व्यतीत करेगा तो वह चक्रवर्ती नरेश। बनेगा लेकिन यदि वह गृह को त्याग करेगा तो वह प्रभजीत हो जाएगा और वह सम्यक समबुद्ध होगा ।

गौतम बुध को देख कर के असित राजा को निश्चय हो गया था कि यह बालक गृहस्थ नहीं बनेगा । कुछ देर बालक को देखने के बाद वह अपनी सिसकियां भर भर कर रोने लगे ।

शुद्धोधन ने जब ऋषि को रोते हुए देखा तो उनके रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बिना किसी देरी के देसी से निवेदन किया कि – हे ऋषिवर! आप इस तरह से क्यों रो रहे हैं ? , आप क्यों आंसू बहा रहे हैं ? ठंडी सांसे क्यों ले रहे हैं? ? मैं समझता हूं कि बालक का भविष्य तो कहीं निर्विघ्नं नहीं है ?

असित ऋषि ने राजा को उत्तर दिया – राजन ! मैं इस बच्चे के लिए नहीं रो रहा हूं बल्कि मैं अपने लिए रो रहा हूं।

राजा शुद्धोधन को कुछ समझ में नहीं आया और उन्होंने पुनः ऋषि से प्रश्न किया – हे राजन ऐसा क्यों ? ऋषि का उत्तर था – मैं जरा जीण हूं , प्राप्त हूं और यह बालक निश्चय रूप से बोधि लाभ करेगा , सम्यक संबोध होगा। उसके बाद वह लोक कल्याण के लिए अपने धर्म चक्र परिवर्तित करेगा, जो संचार के लिए लाभकारी होगा और इससे पहले इस संसार में कभी भी परिवर्तित नहीं हुआ है । लोक कल्याणकारी होगा।

जिस श्रेष्ठ जीवन की , जिस धर्म की घोषणा करेगा वह आदि में कल्याण कारक होगा , मध्य में कल्याण कारक होगा , और अंत में वह कल्याण कारक होगा। वह अर्थ तथा व्यंजन की दृष्टि से निर्दोष होगा। वह परिपूर्ण होगा . वह परिशुद्ध होगा ।

जिस प्रकार राजन ! कहीं-कहीं इस संसार में गूलर पुष्पित होता है, ठीक उसी प्रकार से अनंत लोगों के बाद में इस संसार में कहीं न कहीं बुद्ध का जन्म होता है। राजन! इसी प्रकार निश्चय से यह बालक बोधि को प्राप्त करेगा ,सम्यक सम्बुद्ध और अनंत प्राणियों को इस दुख सागर के पार ले जाकर सुखी करेगा । 

हे राजन मैं उस बुद्ध को नहीं देख सकूंगा इसलिए राजा मैं इस बात से दुखी हूं और रो रहा हूं । मेरे जीवन में उस बुध की पूजा करना नहीं लिखा है ।

तब राजा ने असित ऋषि और उसके भांजे नालक  ( नरदत्त) को स्वादिष्ट व्यंजनों से संतुष्ट किया और वस्त्र दान दे उनकी प्रक्रिया पर वंदना k की । तब जाते वक्त असित  ने अपने भांजे नालक को कहा – नरदत्त ! जब भी, तुम्हें यह सुनने को मिलेगी यह बालक बुद्ध हो गया है तो जाकर सरण ग्रहण करना यह तेरे सुख, कल्याण और प्रसन्नता के लिए होगा इतना कह कर केअसित  ऋषि वहां से विदा ली और अपने वापस आश्रम चले गए ।

दोस्तों यह कहानी (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani ) आपको कैसी लगी आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं ।


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2 . आरंभिक प्रवृतियां (gautam buddh ki bachpan ki kahani )

गौतम बुद्ध जब बचपन में थे तब वह कभी-कभी अपने पिता की जिम्मेदारी में जाता था, वहां कृषि संबंधित किसी भी प्रकार के कोई काम ना होता था, वही किसी एकांत कोने में जाकर ध्यान की स्थिति में बैठ जाता था ।

यह कहना उचित नहीं होगा कि उसे बचपन से ही, ठीक उसी प्रकार की शिक्षा मिल रही थी किंतु साथ-साथ एक छतरी होने के नाती सैनिक शिक्षण की ओर भी उसने किसी भी प्रकार की कोई उदासीनता नहीं दिखाई जा रही थी ।

उसके पिता शुद्धोधन को इस बात का भी चिंता था कि वह अपने पुत्र को सिर्फ मानसिक गुणों का विकास करना सिखाए बल्कि उसे क्षत्रिय होने के नाते क्षत्रिय बल में पिछड़ जाने का भी डर था ।

सिद्धार्थ बचपन से ही कार्मिक स्वभाव के थे । उसे यह अच्छा नहीं लगता था कि आदमी आदमी का शोषण करें।

एक दिन की बात है अपने कुछ मित्रों सहित वह अपने पिता की खेत पर गया जहां उसने देखा कि मजदूर खेत में काम कर रहे हैं। और खेतों की खुदाई कर रहे हैं लेकिन उनके शरीर पर पर्याप्त कपड़ा नहीं है बेसुरी किताब से चल रहे हैं। याद करके उसके मन पर उस का गहरा प्रभाव पड़ा ।

अपने मित्रों में से उनमें से एक मित्र से उसने कहा- एक आदमी दूसरे आदमी का यदि शोषण करें क्या इसे ठीक कहा जाएगा ? मजदूर मेहनत करें और मालिक उसी मजदूरी पर मजाक बनाएं यह कैसे ठीक हो सकता है ?

उसके मित्रों के पास उसके इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं रहता था क्योंकि मैं पुराने विचार परंपरा के मानने वाले थे कि किसान मजदूर का जन्म मालिकों की सेवा करने के लिए ही बना हुआ है और ऐसा करना ही उनका धर्म है इस कारण से उनके मित्रों के पास में उनके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं रहता था ।

शाक्य लोग वप्रमंगल नामक एक उत्सव मनाया करते थे । यह उत्सव धान बोने के प्रथम दिन मनाया जाने वाला उत्सव था यह ग्रामीणों का उत्सव था। स शाक्य की प्रथा के अनुसार उस दिन हर शाक्य को अपने हाथों से हल जोतना पड़ता था। सिद्धार्थ ने हमेशा इन सभी प्रथाओं का बचपन से ही पालन किया वह काम करने में बुरा नहीं मानता था। वह अपने हाथों से हल चलाया करता था उन्हें शारीरिक श्रम से कोई घृणा नहीं होती थी ।

क्षत्रिय कुल में पैदा होने के कारण उसे धनुष चलाने तथा अन्य शास्त्रों का प्रयोग करने की शिक्षा बचपन से ही दी जाती थी लेकिन वह किसी भी प्राणी को बिना किसी कारण के , बिना किसी दोष के उसे अनावश्यक कष्ट देना नहीं चाहता था ।

बचपन में उनकी प्रवृत्ति ऐसे विकसित हो गए थे कि वह शिकारियों के दल भी जाने के साथ पूर्ण रूप से इंकार कर देता था उसके मित्र उसे कहते थे- क्या तुम्हें शेर चीतों से डर लगता है ? तब उनके प्रश्नों का उत्तर देते थे- मैं जानता हूं कि तुम शेर चीतों को मारने वाले नहीं हो, तुम फिर नो तथा खरगोश जैसे छोटे जानवरों को मारने वाले हो।

, तब उनके दोस्त उन्हें कहते थे शिकार के लिए नहीं तो अपने मित्रों का निशाना देखने के लिए आओ । लेकिन सिद्धार्थ इस तरह के निमंत्रण को स्वीकार नहीं करते थे और कहते थे कि मैं निर्दोष प्राणियों के वध का साक्षी होना नहीं चाहता हूं उनके प्राण के साक्षी बनना नहीं चाहता हूं।

बचपन की उसकी इस प्रकार की प्रवृत्ति को देख कर के प्रजापति गौतम में बड़ी चिंतित हो जाती थी । वह उसे समझाती थी तुम भूल गए हो तुम एक छतरी राजकुमार को। तुम्हारा काम है धर्म और लड़ना। शिकार के माध्यम से तुम अपने शस्त्र विद्या में निपुण हो सकते हो क्योंकि शिकार करके ही तू ठीक ठीक से निशाना लगाना सीख सकते हो । यदि तुमने शिकार की भूमि पर शिकार करना सीख लिया तो युद्ध की भूमि पर युद्ध करना भी सीख जाओगे ।

लेकिन सिद्धार्थ बचपन से ही ध्यानी प्रकृति का था तो उस पर उसका कोई असर नहीं पड़ा लेकिन वह सवाल जवाबी जरूर था वह गौतमी से पूछ बैठते हैं तू मां – एक एक क्षत्रिय को क्या लड़ाई करना चाहिए ? तब उसकी मां उसे उत्तर देते – हां लड़ना चाहिए क्योंकि यह उसका धर्म है ।

सिद्धार्थ उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं होता वह अपनी मां से फिर प्रश्न करता मां- यह बताओ कि आदमी आदमी को मारना एक आदमी का ही धर्म कैसे हो सकता है ?

तब उसकी मां उसे समझाते हुए उत्तर देती – यह सब तर्क एक सन्यासी की योग्य है। लेकिन छतरी का धर्म तो लड़ना ही है क्षत्रिय भी नहीं लड़ेगा तो धर्म और राष्ट्र का संरक्षण कौन करेगा ।

तब सिद्धार्थ फिर अपने मां को प्रश्न करते हैं – लेकिन मां यदि क्षत्रिय परस्पर एक दूसरे को प्रेम करे तो क्या बिना कटे मरे दे राष्ट्र का संरक्षण कर ही नहीं सकते ? तब उसकी मां यह सुनकर के निरुत्तर हो जाती ।

कभी-कभी वह अपने साथियों को अपने साथ में बैठा कर ध्यान लगाने की प्रेरणा देता। वह उन्हें बैठने का ठीक ढंग से खाता था । वह उन्हें किसी एक विषय पर चित्र को किस प्रकार से एकाग्र किया जा सकता है उसके बारे में भी उन्हें बतलाता। वह उन्हें परामर्श दें ताकि ऐसी भावना हो की ही भावना करनी चाहिए कि मैं सुखी हूं , मेरे संबंधित सुखी रहे और सभी प्राणी सुखी रहे ।

उसके मित्र उसकी इन बातों को गौर नहीं करते और उनके बातों को कोई महत्व नहीं देते थे । वे उनके की बातों को सुनकर के हंसते उनका उपहास उड़ाते थे । लेकिन उनके दोस्तों के उपहास का उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था ।

वे अपने दोस्तों के साथ शिकार में जाने से अच्छा यह समझते थे की किसी शिकार में , जानवरों के वध में साक्षी बनने से तो अच्छा है की आंखें बंद करके अपने ध्यान को चित करके उस विषय में एकाग्र हो जाए ।

उसके माता-पिता को यह ध्यान अभिमुख होना अच्छा नहीं लगता था उन्हें लगता था कि यह क्षत्रिय जीवन के प्रतिकूल है ।

दोस्तों यह कहानी (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani ) आपको कैसी लगी आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं ।


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3 . एक पक्षी की रक्षा (gautam buddh ki bachpan ki kahani )

एक बार की बात है जैसा कि आप सभी को पहले बताया है कि वह अपने पिता के खेतों में काम करने के लिए, या फिर खेतों की रखवाली करने के लिए खेतों में जाया करते थे। एक बार वह विश्राम के लिए एक वृक्ष के नीचे में बैठा हुआ था । बैठे-बैठे वह आराम के साथ लेट करके प्राकृतिक शांति और प्राकृतिक आनंद का विभोर उठा रहा था।

ठीक उसी समय आकाश से एक पक्षी आ करके उसके सामने गिरा ।

सिद्धार्थ पक्षी की सहायता के लिए उठ बैठा। वह बहुत ही ज्यादा जख्मी था उसका शरीर पर एक तीर लगा हुआ था । यह देख कर के वह बहुत चिंतित हो गया और उसने उसका तीर खींच करके निकाला । जख्म पर पट्टी लगाई और उसे पीने के लिए पानी दिया। उसने उस पक्षी को बड़े ही प्यार के साथ अपनी गोद में लिया और अपनी चादर के भीतर छिपा कर उसे अपनी छाती की गर्मी पहुंचाने लगा ।

सिद्धार्थ इस बात से आश्चर्य था कि इस असहाय पक्षी को किसने निशाना लगाया होगा ? वह सोच रहा था शीघ्र ही उसकी तेरा भाई देवदत्त वहां आ पहुंचा । वह शिकार के सभी गुणों से परिचित था । आ करके वह सिद्धार्थ से कहा कि उसने उड़ते हुए पक्षी पर तीर चलाया था । पक्षी घायल हो गया था कुछ दूर उड़कर वह वहीं आसपास गिरा था ।

उसने सिद्धार्थ से पूछा – क्या तुमने उसे देखा है ?

सिद्धार्थ ने कहा था मैंने पक्षी को देखा है । उन्होंने अपने शरीर से चादर हटाया और पक्षी को उसे दिखाया जो अब धीरे-धीरे स्वस्थ हो चला था।

यह देखकर कि पक्षी सिद्धार्थ के पास में है देवदत्त ने सिद्धार्थ से कहा- की यह शिकार के नियमों के अनुसार जो पक्षी को मारता है वही उसका मालिक होता है इसलिए तुम मुझे यह पक्षी दे दो । मैं ही इसका मालिक हूं ।

सिद्धार्थ का कहना था कि वह आधार सर्वथा ही गलत है । , उनका कहना था कि जो किसी का रक्षा करता है वही उसका मालिक हो जाता है । कोई हत्या करने वाला कैसे किसी का मालिक हो सकता है ?

दोनों में से एक भी पक्ष अपने आप से झुकने के लिए तैयार नहीं था । ना तो सिद्धार्थ अपने और झुकने को था और ना ही उनके तेरा भाई । अपनी ओर झुकने को था .

यह मामला इतना बढ़ गया कि यह मामला न्यायालय तक में जा पहुंचा। और यह पक्ष सिद्धार्थ के पक्ष में निर्णय किया गया।

देवदत्त सिद्धार्थ को अब दुश्मन समझने लगा लेकिन गौतम सिद्धार्थ की करुणा ऐसी थी कि वे अपने फुकरे भाई को प्रसन्न करने की बजाय उन्होंने एक पक्षी को बचाने में अधिक श्रेष्ठ समझा इस प्रकार से गौतम बुद्ध की प्रारंभिक जीवन (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani ) इस प्रकार से उनके चित्र प्रवृति थी । गौतम बुद्ध की बचपन की 3 प्रेरणा दायक कहानिया ।

दोस्तों (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani) इस कहानी से हमें सिख मिलती है की जिंदगी में किसी को कष्ट देखर के हम सुखी नहीं रह सकते है बल्कि प्रेम के साथ में रहकर के एक दूसरे के साथ में मदद करते हुए जिंदगी में आगे बाद सकते है । गौतम बुद्ध ने सच ही कहा है की किसी हत्या करने वाला मालिक नहीं है बल्कि उसकी जान को बचाने वाला ही उसका असली मालिक है । दोस्तों इस छोटी से कहानी(गौतम बुद्ध की कहानियाँ pdf) (गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी || gautam buddh ki bachpan ki kahani)से आप ने क्या सीखा आप हमें कमेंट कर के जरूर बता सकते है ।


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