भगवान बुद्ध इस सत्धर्म के प्रमुख प्रर्वतक हुए हैं। भारत में कई स्थान ऐसे हैं जो बौद्ध सत्धर्म के तीर्थ बन चुके हैं पर एक ऐसा भी स्थान है जो बौद्ध सत्धर्म में प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है, वह है सारनाथ।
सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। यहीं से उन्होंने सत्धर्मचक्र-प्रर्वतन प्रारम्भ किया था। सारनाथ में अशोक का चतुर्भुज सिंह स्तम्भ, भगवान बुद्ध का मंदिर (जो यहां का प्रधान मंदिर भी है), धमेखस्तूप, चौखण्डी स्तूप, सारनाथ का वस्तु संग्रहालय, नवीन विहार, मूलगन्धकुटी आदि बुद्ध स्थल हैं।
Gautam Buddha First Updesh में क्या कहा था ?
बुद्धगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध के मन में विचार आया क्या उन्हें दूसरों को अपने सत्धर्म का उपदेश देना चाहिए अथवा अपने ही कल्याण में रहना चाहिए. उन्होंने सोचा, निसंदेह मैंने एक नया स्वसत्धर्म पा लिया है लेकिन हर सामान्य आदमी के लिए इसे समझ सकना और अनुकरण करना कठिन है बुद्धिमान हो तक के लिए अति कठिन है . सामान्य लोग इसे नहीं समझ पाएंगे.
और अंत में उनके संविक संकल्प और महा अभी निष्क्रमण के समय यशोधरा का संकेत कि आप जाएं लेकिन इसे मार्ग की खोज में खोज करें जो बहुजन हिताय , बहुजन सुखाय आप ऐसे मार्ग का निर्माण करें जो मानवता के लिए सुख कारी हो . इस बात को मानकर के लोगों तक के अपने उपदेश को पहुंचाने का निश्चय किया .
Gautam Buddha First Updesh (गौतम बुद्धा फर्स्ट उपदेश ) सबसे पहले उन्होंने उपदेश देने के लिए बुद्ध ने अपने आप से प्रश्न किया कि की सर्वप्रथम किसे सत्धर्म उपदेश दिया जाए ? उन्हें सबसे पहले आलार कालम का खयाल आया जो खुद की सम्मति में विद्यमान था , बुद्धिमान था, समझदार था और काफी निर्मल भी था . बुद्ध ने सोचा कैसा होगा यदि मैं सर्वप्रथम उसे ही सत्धर्म उपदेश करूं ? लेकिन बुद्ध को पता लगा कि अलार्म की मृत्यु हो चुकी है .
तब उन्होंने राम पुत्र को उपदेश देने का विचार किया किंतु उसका भी शरीर का अंत हो चुका था .
तब उन्होंने, अपने पांच साथियों का ध्यान आया जो निरंजना नदी के तट पर उनकी सेवा में थे , और जो सिद्धार्थ गौतम की तपस्या और काहे प्लेस का पद त्याग देने पर असंतुष्ट होकर उन्हें छोड़ कर चले गए थे . उन्होंने, उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया है , मेरी बड़ी सेवा की है, मेरे लिए बहुत कष्ट उठाए हैं. कैसा होगा यदि मैं उन्हें ही सर्वप्रथम सत्धर्म का उपदेश (Gautam Buddha First Updesh) (गौतम बुद्धा फर्स्ट उपदेश ) दूं .
गौतम बुद्ध ने उनके और ठिकाने का पता लगाया और जब उन्हें पता चला कि वह वनारसी (सारनाथ) के इसीपतन isipattna meigdey मी रहते हैं, तो बुद्ध उधर ही चल दिए .
उन पांचों परिव्राजक ने जब बुद्ध को आते देखा तो आपस में तय किया, बुद्ध का स्वागत कोई नहीं करेंगे . उनमें से एक बोला, – मित्रों वह श्रवण गौतम चला आ रहा है, जो पथभ्रष्ट हो गया है, जिसने तपस्या का त्याग त्याग करके आराम की जिंदगी और काम भोग का पद अपना लिया है . वह पापी है. इसलिए हमें ना उसका स्वागत करना चाहिए और ना उसका पात्र और ना ही chivar ग्रहण करना चाहिए . उसके लिए आसन रख देते हैं , इच्छा होगी तो उस पर बैठ जाएगा . ऐसा सोच कर के बैठे बैठे रहे.
लेकिन जब दूध समीप पहुंचे तो, वह पांचों की पांचों परिव्राजक अपने बातों पर ना रह सके बुद्ध के व्यक्तित्व ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे सभी अपने आसन से उठ खड़े हुए. एक्ने बुद्ध को पात्र दिया , एक ने बुद्ध को सीवर दिया और एक ने बुद्ध के लिए आसन बिताया और एक ने बाद होने के लिए पानी ले आया .
यह सचमुच एक अप्रिय अतिथि का असाधारण स्वागत था . इस प्रकार जो उपेक्षा वालों थे वह श्रद्धा वन बन गए.
Gautam Buddha First Updesh कुशलता और अन्य बातचीत हो चुकने के बाद परिवार जनों ने बुध से प्रश्न किया क्या आप अब भी तपस्या तथा काया क्लेश में विश्वास रखते हैं ? बुध का उत्तर नकारात्मक था.
बुद्ध ने कहा दो सिरे की बात है- दो किनारों की , एक तो काम भोग का जीवन और दूसरा काय क्लेश का जीवन .
उनमें से एक परिव्राजक ने कहा, खाओ पियो मौज उड़ाओ , क्योंकि कल तो मरना ही है . दूसरे का कहना है, तमाम वासनाओं का अनुच्छेद कर दे , क्योंकि वे पुनर्जन्म का कारण है . उन्होंने दोनों को आदमी की शान की योग्य नहीं माना .
भी मध्यम मार्ग को मानने वाले थे अर्थात बीच का मार्ग-जो कि ना तो काम भोग का मार्ग है और ना ही काय क्लेश का मार्ग है .
बुद्ध ने पांचों से प्रश्न किया कि मेरी इस प्रश्न किया – कि जब तक किसी के मन में पार्थिव व स्वर्गीय भोग की कामना बनी रहेगी , तब तक क्या उसका समस्त काय क्लेश व्यर्थ नहीं होगा ?
उनमें से पांचों परिव्राजक ने उत्तर दिया — जैसा आप कहते हैं वैसा ही है .
फिर भगवान बुद्ध ने उसे प्रश्न किया यदि आप का काय क्लेश द्वारा काम भोग को शांत नहीं कर सकते , तो काय क्लेश का दरिद्र जीवन बिताने से आप अपने को कैसे जीत सकते हैं?
उनमें से पांचों परिव्राजक ने उत्तर _ दिया जैसा आप कहते हैं वैसा ही
जब उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों का कोई उत्तर ना मिला तब भगवान बुद्ध ने उनका उत्तर दिया- जब आप अपने पर विजय पा लेंगे तभी आप क्या काम तृष्णा से मुक्त होंगे क्या तब आपको काम भोग की कामना नहीं रहेगी और तब प्राकृतिक इच्छाओं की पूर्ति विकार पैदा नहीं करेगी आप. अपनी सारणिक अवस्थाओं के हिसाब से खाना-पीना ग्रहण करें.
भगवान बुद्ध उन्हें समझाते हुए कहते हैं – जितने भी प्रकार की कामवासना है वह उत्तेजक है. कामुक व्यक्ति अपनी कामवासना का पूरी तरीके से गुलाम होता है . और जो सभी काम लोगों के चक्कर में पड़े रह कर गवार पन का काम करते हैं वह एक नीच कर्म है . लेकिन मैं तुम्हें कहता हूं कि शरीर की स्वभाविक अवश्य कथा में बुराई नहीं है. क्योंकि शरीर को स्वस्थ बनाए रखना हमारा कर्तव्य है . यदि तुम अपने शरीर को स्वस्थ नहीं बनाए रख सकते तो अपने मनोबल को प्रबल भी नहीं बना सकते जिसके कारण से जो प्रज्ञा रूपी प्रदीप है वह भी प्रज्वलित नहीं हो पाएगा .
बुद्ध अपनी बात को आगे रखते हुए कहते हैं- हे परिव्राजक , इस बात को समझ लो की आदमी को दोनों बातों से सदा बचना चाहिए एक तो उन चीजों के चक्कर में पड़े रहने से जिनका काम-भोग और तृष्णा है बात तब तपश्चार्य से क्योंकि वह भी कष्ट देने वाला है और अयोग्य है तथा हानिकारक भी है .
भगवान बुद्ध अपनी बात को आगे करते हुए कहते हैं – इन दोनों बातों के अलावा एक और बात है वह है मध्यम मार्ग की बात जिसे हम बीच का रास्ता कहते हैं . और कहते हैं कि मैं उन्हीं मध्यम मार्ग का उपदेश देने वाला हूं .
उन पांचों परिव्राजक ने भगवान बुद्ध की बात को बड़ी ध्यान से सुनी. वे यह नहीं जानते थे कि बुद्ध के मध्यम मार्ग के बारे में क्या कहें. इसलिए उन्होंने प्रश्न किया- जब हम आपका साथ छोड़ कर चले आए, उसके बाद में आप कहां कहां रहे ?, क्या-क्या किया?
तब बुद्ध ने उन्हें बताया कि किस प्रकार से वह गया पहुंचे, कैसे उस पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे और कैसे 4 सप्ताह तक निरंतर समाधि के बाद उन्हें नया बोध प्राप्त हुआ , जिसे वह नए मार्ग का आविष्कार कर सकें .
भगवान बुद्ध यह बात को सुना तो उन सभी ने इस नए मार्ग को विस्तार पूर्वक जानने के लिए अत्यंत उत्सुक हो गए और उन्होंने भगवान बुध से प्रार्थना की कि वे उन्हें बताएं .
भगवान बुद्ध ने उनकी बात को स्वीकारा और अपनी बात में यह बताएं कि- उनके स्तसत्धर्म को आत्मा , परमात्मा से कोई लेना देना नहीं है . उनके सत्धर्म में आत्मा का क्या होता है ? उनके सब सत्धर्म में कर्मकांड की क्रिया कर आप से कोई भी लेना देना नहीं है .
भगवान बुद्ध के सत्धर्म केंद्र बिंदु है आदमी और पृथ्वी पर रहते समय आदमी का आदमी के प्रति क्या कर्तव्य होना चाहिए . बुद्ध ने कहा यह उनकी पहली स्थापना है .
बुद्ध ने अपनी दूसरी स्थापना में कहा कि आदमी दुखी है , कष्ट में है और दरिद्र का जीवन जी रहे हैं. संसार में धूप भरा पड़ा है और सत्धर्म का उद्देश्य दुख का नाश करना ही है . इसके अलावा सब सत्धर्म और कुछ नहीं है . दुख के अस्तित्व की स्वीकृति और दुख के पतन का उपाय यही सत्धर्म की आधारशिला है .
भगवान बुद्ध ने आगे कहा – जो भी श्रमण या ब्राह्मण यह भी नहीं समझ पाते ही संसार में दुख है और उस दुख के नाश का उपाय है, ऐसे श्रमण ब्राह्मण मेरी सम्मति में श्रमण ब्राह्मण ही नहीं है ना वे अपने को जेस्ट श्रेष्ठ समझने वाले हैं वह सिर्फ इतना ही समझ पाते हैं कि सत्धर्म का सही अर्थ क्या है ?
उन पांचों परिव्राजक मै से एक ने प्रश्न किया – दुख और दुख का विनाश ही यदि आपके सत्धर्म की आधारशिला है तो हमें बताइए कि आपका सत्धर्म कैसे दुख का विनाश कर सकता है ?
भगवान बुद्ध ने बड़े प्यार से समझाते हुए उत्तर दिया की उनके सत्धर्म में के अनुसार यदि हर आदमी (1) पवित्रता के पथ पर चले , (2) सत्धर्म के पथ पर चले, (3) सील मार्ग पर चले तो इस दुख का अंत किया जा सकता है .
और इस प्रकार से भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश (Gautam Buddha First Updesh) दिया था . और उन्होंने कहा कि ऐसा सत्धर्म का आविष्कार उन्होंने अब कर लिया है .
कैसे पहुंचे बनारसी (गौतम बुद्ध के प्रथम उपदेश)

सारनाथ पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है जो बनारस छावनी स्टेशन से 8 किलोमीटर, बनारस सिटी स्टेशन से 6 किलोमीटर और बनारस शहर से सड़क मार्ग द्वारा 10 किलोमीटर दूर है। बनारस से यहां जाने के लिए वाहन आसानी से आ जा सकते हैं ।
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