परीक्षाओं के दृष्टिकोण से देखा जाए तो सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में ना जाने वाला प्रश्न आता है वह है Gautam Buddha Ke Siddhant या फिर बौद्ध धर्म के सिद्धांत या इसे गौतम बुद्ध के सिद्धांत भी कहते हैं .
जैसा कि जैन धर्म की जो सिद्धांत था वह भी महत्वपूर्ण है परीक्षाओं की दृष्टि से वैसा ही परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बौद्ध धर्म के सिद्धांत बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है.
त्रिपिटक क्या है ?
बौद्ध धर्म के सिद्धांत की बात करें तो सबसे पहले हमें त्रिपिटक क्या है इसको जानना जरूरी है क्या चीज है त्रिपिटक ?
महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद वह जगह जगह पर जाकर के लोगों को उपदेश देते थे और वह अपने उपदेशों को मौखिक रूप से देते थे . और कुछ समय पश्चात महात्मा बुद्ध की निर्वाण प्राप्ति के बाद जो महात्मा बुद्ध के शिष्य थे उन्होंने भी गौतम बुद्ध के सिद्धांत मौखिक रूप से कर रहे थे . कुछ समय बाद आगे चलकर उनके कुछ शिष्यों ने उनके उपदेशों को, नियमों को, सिद्धांतों को एक जगह संकलित कर लिया . और जिस एक स्थान पर संकलित किया है उसे ही त्रिपिटक कहते हैं .
त्रिपिटक बौद्ध धर्म के संबंधित है जो पाली भाषा में लिखा गया है . त्रि+पिटक = त्रि = TEEN , पिटक = TOKRI अर्थात तीन टोकरी में एकत्रित बौद्ध धर्म के सिद्धांत संकलित है . 3 त्रिपिटक का नाम – सूत्र पिटक , विनय पिटक , अभिधम्मा पिटक .
जिस प्रकार से हमें इंग्लिश में लिखे हुए शब्द का मीनिंग मालूम नहीं होता है तो हम डिक्शनरी का सहारा लेते हैं ठीक उसी प्रकार से बहुत धर्म में बुद्धि के सिद्धांत को समझने के लिए अभिधम्मा पिटक का सहारा लिया जाता है इस कारण से अभिधम्मा पिटक को बौद्ध धर्म के इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है .
Gautam Buddha Ke Siddhant (बौद्ध धर्म के सिद्धांत )
बौद्ध धर्म के कुछ सिद्धांत का वर्णन नीचे किया जा रहा है जो इस प्रकार से है –
1 . चार आर्य सत्य – (बौद्ध धर्म के सिद्धांत )
बुद्ध ने अपने सारनाथ में दिए गए प्रथम उपदेश में बताया कि मानव जीवन में आरंभ से लेकर अंत तक दुख ही दुख है . अतः इन दुखों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उन्होंने चार आर्य सत्य का प्रतिपादन किया .
पहला आर्य सत्य है दुख – बुद्ध के अनुसार व्यक्ति के जीवन में दुख ही दुख है उनका मानना था कि क्षणिक सुखों को सुख मानना अदूरदर्शिता है .
दूसरा आर्य सत्य – दुख समुदाय -बुद्ध के अनुसार दुख का मूल कारण तृष्णा ,मोह ,माया है .
तीसरा आर्य सत्य – दुख निरोध – बुद्ध के अनुसार दुख के निवारण के लिए उसके कारण का निवारण पता होना अति आवश्यक है . और बुद्ध ने दुख निरोध को ही निर्वाण माना है . उनके अनुसार यदि तृष्णा को समाप्त कर दिया जाए तो व्यक्ति जन्म मरण से मुक्त हो जाएगा
चौथा आर्य सत्य – दुख निरोध मार्ग – यह चौथा आर्य सत्य दुख को कैसे खत्म किया जाए यह इसका मार्ग है . बुध के द्वारा बताया गया यह मार्ग दुख निरोध गामिनी के नाम से जाना जाता है . बुद्ध का मानना है की अपनी शारीरिक यातना से , तपस्या द्वारा , कभी भी निर्वाण प्राप्त नहीं की जा सकती है. और निर्वाण प्राप्ति के लिए की प्राप्ति के लिए बुद्ध ने जो मार्ग सुझाया है वह मार्ग अष्टांगिक मार्ग .
2 . बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग (गौतम बुद्ध के सिद्धांत )
दुखों की समाप्ति के लिए , निर्वाण बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग अतिआवश्यक बताया .
1 . सम्यक दृष्टि , 2 . सम्यक संकल्प , 3 . सम्यक वाक , 4 . सम्यक क्रमांत , 5 . सम्यक आजीविका , 6 . सम्यक व्यायाम , 7 . सम्यक् स्मृति , 8 . सम्यक् समाधि .
1 . सम्यक दृष्टि – मिथ्या दृष्टि (दिखावा) को त्याग कर यथार्थ स्वरूप पर ध्यान देना . यदि हम झूठी दिखावा को त्याग दे तो हमें तृष्णा से मुक्ति मिल जाएगी और निर्वाण की प्राप्ति होगी .
2 . सम्यक संकल्प – हर आदमी की कुछ आशाएं होती है, आकांक्षाएं होती है , महत्वकांक्षीएं होती है . सम्यक संकल्प का मतलब होता है की हमारी आशाएं, हमारी आकांक्षाएं ऊंचे स्तर की हो , निम्न स्तर का ना हो . हमारी योग्य हो , अयोग्य ना हो .
3 . सम्यक वाणी – सम्यक वाणी का मतलब है, की आदमी सत्य ही बोले , आदमी असत्य ना बोले , आदमी दूसरों की बुराई ना करता फिरे , आदमी दूसरे के बारे में झूठी बातें ना फैलाता फिरे , आदमी किसी के प्रति गाली गलौज या कठोर वचनों का व्यवहार ना करें , आदमी सभी के साथ विनम्र वाणी का व्यवहार करें , आदमी व्यर्थ की बात बेमतलब की मूर्खतापूर्ण बात ना करता फिरे, बल्कि उसकी वाणी बुद्धि संगत हो, सार्थक हो और उद्देश्य पूर्ण हो .
जैसा कि मैंने समझाया सम्यक वाणी का व्यवहार ना किसी के भय की अपेक्षा रहता है और ना किसी के पक्षपात की . इसका इससे कुछ भी संबंध नहीं , होना चाहिए की कोई बड़ा आदमी उसके बारे में क्या सोचने लगेगा अथवा सम्यक वाणी के व्यवहार से उसकी क्या हानि हो सकती है .
सम्यक वाणी का मापदंड ना किसी ऊपर के किसी आदमी की आज्ञा है और ना किसी व्यक्ति क्यों हो सकने वाला लाभ . क्रमांक क्रमांक क्रमांक क्रमांक
4 . सम्यक कर्मांत – सभी कर्मों में पवित्रता रखना सम्यक कर्मांत कहलाता है . अपने मन में मत रखो , हिंसा , बुरी भावना से बचते रहो और हमेशा संकल्प करते रहो .
5 . सम्यक आजीविका – प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका चलाने के लिए कुछ ना कुछ कमानी होती है लेकिन जीविका कमाने के ढंगो में अंतर होता है. कुछ बुरे हैं , कुछ भले हैं . बुरे ढंग बे हैं, जिनसे किसी की हानि होती है अथवा किसी के प्रति अन्याय होता है. अच्छे ढंग वह है – जिससे आदमी बिना किसी को हानि पहुंचाए अथवा बिना किसी के साथ अन्याय किए अपनी जीविका को कमा सकता है यही सम्यक आजीविका है .
6 . सम्यक व्यायाम – सत्कर्म करने के लिए निरंतर अपने कामों में लगे रहे .
7 . सम्यक् स्मृति – सम्यक् स्मृति का मतलब है हर बात पर ध्यान देना . सतत मन की जागरुकता रखना . मन में उठने वाले अकुशल विचार को रोकना सम्यक् स्मृति कहलाता है . दुर्गुण भावों से दूर रहना . संसारी लाभ और मोह माया को बुद्धि ने ना आने देना और सदैव बुरे विचारों से दूर रहना .

8 . सम्यक् समाधि – जो व्यक्ति सम्यक दृष्टि , सम्यक संकल्प ,सम्यक वाक , सम्यक क्रमांत , सम्यक आजीविका , सम्यक व्यायाम ,सम्यक् स्मृति प्राप्त करना चाहता है उसके मार्ग में 5 बाधाएं बंधन आते हैं .
लोभ , द्वेष , आलस्य विचिकित्सा , अनिश्चित . इन पांचों बाधाओं को जो वास्तव में कड़े बंधन ही है जीत लेना या फिर तोड़ लेना आवश्यक है . इन बंधनों से मुक्त HONE का एक ही उपाय है वह है समाधि लेकिन यह समझ लेना की समाधि और सम्यक समाधि एक ही बात नहीं है दोनों में बड़ा अंतर है .
समाधि का मतलब है केवल चित्त की एकाग्रता . इसमें संदेह नहीं कि इसे वैसे ध्यान को प्राप्त किया जा सकता है कि जिनके रहते यह पांचों संयोजन या बंधन स्थगित रहते हैं .
लेकिन ध्यान की यह अवस्थाएं अस्थाई है इसलिए यह संयोजन या फिर बंधन भी अस्थाई तौर पर स्थगित रहते हैं . आवश्यकता है तो चित में स्थाई परिवर्तन लाने की . इस प्रकार का स्थाई परिवर्तन सिर्फ और सिर्फ सम्यक समाधि के द्वारा ही लाया जा सकता है .
खाली समाधि एक नकारात्मक स्थिति है क्योंकि यह इतना ही तो करती है की संयोजन को स्थाई तौर पर स्थगित रखें. इसमें मन का स्थाई परिवर्तन निहित नहीं है .
जबकि सम्यक समाधि एक भावनात्मक वस्तु है यह मन को कुशल कर्मों की एकाग्रता के साथ चिंतन करने का अभ्यास डालती है और इस प्रकार मंकी संयोजन को उत्पन्न हुए अकुशल कर्मों की ओर आकर्षित होने की प्रीति को समाप्त कर देता है .
सम्यक समाधि मन को कुशल और हमेशा कुशल कुशल सोचने की आदत डालती है. सम्यक समाधि मन को अपेक्षित शक्ति देता है जिससे आदमी हमेशा कल्याण रथ कार्यों में लगे रहते हैं
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Gautam Buddha First Updesh || गौतम बुद्धा फर्स्ट उपदेश
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