BEST 10 Gautam Buddha Ki Shikshaprad Kahani

Rate this post

 TOP BEST Gautam Buddha Ki Shikshaprad Kahani के सीरीज

1 . हर समय उदास रहने वाले लोग (Gautam Buddha Ki Shikshaprad Kahani)

एक बार की बात है एक नौजवान युवक बुद्ध के पास आता है और उनसे कहता है कि क्या आप मेरे एक सवाल का जवाब देंगे ?  भगवान बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा – कि पूछो क्या पूछना है ?

उस नवयुवक ने ने कहा कि मेरी उम्र बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन मैं कम उम्र में ही बहुत ज्यादा परेशान रहता हूं , बहुत दुखी रहता हूं मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि मेरे जीवन में अभी से इतने दुख है तो मेरी जिंदगी तो अभी बहुत बाकी है। क्या मेरे जीवन में दुख ऐसे ही पढ़ते रहेंगे? , क्या इन दुखों से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं है ?

नवयुवक की बात को सुनकर भगवान बुद्ध कहते हैं – कहां है तुम्हारे दुख मुझे तो दिखाई नहीं दे रहे हैं?

यह सुनकर के वह नवयुवक है – दुख तो मेरे अंदर है वह आपको कैसे दिखाई देगा ?

यह सुनकर के कहा – क्या तुम्हें अपने दुख दिखाई देते हैं। युवक कहता है कि हां मैं अपने दुखों को । देख सकता हूं तब बुद्ध ने कहा दुखों का मूल कारण क्या है । और नवयुवक में बातचीत हो रही थी तभी वहां भिक्षु वहां आता है भगवान बुद्ध के कानों में कुछ कहता है इसके बाद युवक भी कहते हैं कि चलो मैं तुम्हें आज जीवन का सत्य दिखाने के लिए एक जगह पर ले जाता हूं। वहां पर जाकर के तुम्हें कुछ भी नहीं बोलना है चुपचाप तुम्हें सारी बातों को सुनते रहना। इसके बाद तुम्हें सारी प्रश्नों का उत्तर खुद ब खुद मिल जाएगा ।

यह कह कर गौतम बुद्ध के पीछे पीछे चलने के बाद में गौतम बुद्ध एक घर में प्रवेश करती हैं । घर में प्रवेश करने के बाद युवक और गौतम बुद्ध देखते हैं वहां पर बहुत सारे लोग इकट्ठे हुए हैं । और बीच में एक चारपाई पर एक वृद्ध आदमीलेटा हुआ है बुद्ध को आते हुए देखता हुआ सभी आदमियों ने उनके आने के लिए रास्ता दिया ।

सभी लोग खुद को अभिवादन करते हैं और बुद्ध आदमी के चार पाई में जा कर के बैठ जाते हैं । गौतम बुद्ध के पास में जमीन पर बैठ जाता है । गौतम बुद्ध से कहता है। मेरी जीवन में और कितनी सांसे बची है पता नहीं , मुझे यह भी पता नहीं है इस वक्त भगवान के घर से बुलावा आ जाए । मृत्यु से पहले मैं आपसे कुछ सवालों के जवाब जानना चाहता हूं ? मुझे पता है कि उन सारे सवालों के जवाब आप ही दे सकते हैं ? इसीलिए मैंने आपको यहां पर बुलाया है ।

इसके बाद में उस आदमी ने भगवान से पूछा – मुझे मेरे बचपन के दिन याद आ रहे हैं , मैं अपने बचपन के दिनों को याद करता हूं और सोचता हूं कि वह भी दिन क्या थी , ना कुछ पाने की फिकर था और ना कुछ खोने की । बचपन के दिनों को याद करके मेरे आंखों में आंसू आ जाते हैं मुझे लगता है कि इतनी आजादी थी उस समय मुझे लगता है मेरा मन कितना खुला हुआ था । मन में कुछ भी पाने की इच्छा नहीं थी जिस भी खेल में लग जाते थे ।

लेकिन मैं जैसे-जैसे बढ़ा हुआ वैसे वैसे लोग मुझे जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए कहने लगे । मेरे पिता मुझे हमेशा कहा करते थे कि तुम अपने भाई जैसे क्यों नहीं होती । तुम दूसरे लोगों से पीछे क्यों रहते हो ? यह सुन सुनकर मेरा मन बहुत बेचैन सा रहने लगा । ना तो मैं खेलकूद में अच्छा था और ना ही पढ़ाई में अच्छा था ।

सब लोग मुझे किसी और की तरह बनने के लिए कहते थे और मैं उन लोगों के ताने से परेशान होकर जीवन में कुछ नहीं करने की निर्णय किया मैंने अपने आप से वादा किया कि मैं भी अपने भाई के समान एक कामयाब इंसान बनूंगा इसके लिए दिन रात मेहनत करने लग गया ।

इस बीच में उतार-चढ़ाव देखे हैं , इस उतार-चढ़ाव में कई बार मैंने सुख दुख दोनों देखे हैं और अंत में मुझे खाली हाथ निराशा ही प्राप्त होगी और इसे करते-करते मैंने अपना खुद का एक व्यापार खड़ा कर दिया । उसके बाद में मुझे कुछ पाने का एहसास हुआ मुझे बहुत खुशी हुई जो लोग मुझे ताने देते थे वह लोग मुझे शाबाशी देते थे और वह मेरे आगे पीछे घुमा करते थे ।

कुछ साल बाद मेरे एक रहे बेटी के साथ में शादी हो गई और इसके बाद मुझे लग रहा था की मैं रहीस बन चुका हूं । इसके बाद में मुझे दो बेटे प्राप्त हुए दोनों बहुत सुंदर थे । अब मेरा मन उन दोनों बेटों के लिए कुछ करने का इच्छा जाहिर किया और उनके लिए जरूरत से ज्यादा कमाने में लग गया । और जल्द ही में मेहनत करते करते अपने नगर का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया ।

इस बीच सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन होनी को कौन टाल सकता था एक दिन मेरी पत्नी मुझे छोड़ कर चली गई । इससे मुझे बहुत गहरा आघात हुआ । मैं इतने दिनों तक पत्नी के दुख में , उनकी यादों में घर से बाहर निकला । मेरे बेटे मुझे हिम्मत देते रहे ।

दोनों बेटों की हिम्मत देने के बाद मैं धीरे-धीरे अपने आप को मजबूत करता गया । इसीलिए मैं अपना मन अपने उन दोनों बेटों के ऊपर जोड़ दिया । उनकी खुशी में ही मुझे खुशी होती थी उनकी दुखी में मुझे दुख होता था ।

इसके बाद में उस वृद्ध आदमी ने भगवान बुद्ध से कहा कि बुद्ध इस जीवन चक्र में मुझे हर बार महसूस होता था कि वास्तव में जीवन क्या है ? वास्तव में जीवन की उनकी गहराइयों में कैसे जाना चाहिए ? यह कैसे जाना चाहिए कि मैं कौन हूं और मैं इस दुनिया में क्या करने के लिए आया हूं ? ऐसे कई प्रकार के सवाल मेरे मन में इस बीच में रहते थे ?

और इसी बीच मुझे आपके बारे में भी पता चला बुद्ध से प्रणालियों के बारे में विस्तार से बताते हैं जिससे जीवन का मतलब समझा जा सके । लेकिन मैं हमेशा यही सोचता रहता था कि पहले मैं अपने दुख को खत्म कर लो उसके बाद में ध्यान में अपना सारा ध्यान लगा दो और मैं यही सोच सोच कर कभी ध्यान नहीं कर पाता था और ऐसे ही समय कटता रहा और अंत में बुढ़ापे में मैं बीमार पड़ गया ।

, ऐसी मेरी जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी मेरे दोनों बेटे ने मेरा अच्छा ख्याल रखा मैंने अपने इस जीवन में बहुत कुछ हासिल भी किया । अब मैं अपने जीवन में पीछे मुड़ कर के देखता हूं तब मुझे एहसास होता है कि मेरे बचपन के दिन ही सबसे प्यारे दिन थे तब उस वृद्ध आदमी ने भगवान बुद्ध से पूछा – मै मिनटों का मेहमान हु क्या आप मुझजे कुछ ऐसे सूत्र बता सकते हो की मै सुकून से मर सकू ? मेरे मन के सवाल जवाब ख़त्म हो जाये । और मरना चाहता हु तो जीवन का असली मतलब समझ कर मर सकू ।

उस वृद्ध आदमी के बात को सुनकर के भगवन बुद्ध ने कहा – की हर इंसान को अपने बचपन के दिन प्रिय क्यों होते है ? क्योंकि उस समय उसे कोई चिंता नहीं होती है वह आजाद होता है , उसके मन में कोई लालसा नहीं होती है , वह जिस काम में लग जाता है वह उसी काम में लग जाता है लेकिन जैसे जैसे इंसान की आयु बढ़ती जाती है वैसे वैसे उसकी कामनाय , इच्छाये दिन बी दिन बढ़ती जाती है । और इसीलिए मनुस्य भविष्य के तयारी में ही लगा रहता है । हमेशा अतीत के बारे में सोचते रहते है जिसके कारण से वह वर्तमान में जीना भूल जाता है ।

और वंही उस छोटे से बच्चे को देखे तो उसके लिए कोई भविष्य या कोई अतीत नहीं होता उसके लिए वर्तमान होता है । और इसीलिए वह वर्तमान में पूरा आनंद के साथ में रहता है । इसलिए तूने अपना पूरा जीवन अपनी कामयाबी हो, अपने बेटों अपनी पत्नी और अपनी भविष्य की योजनाओं में ही बीता दिया और तुम हमेशा यही सोचते रहे कि पहले मैं अपने जीवन को व्यवस्थित कर लेता हूं । उसके बाद में सत्य की खोज करूं, उसके बाद में ध्यान करूंगा ।

और इसी कल के चक्कर में हम यह भूल जाते हैं कि कल कभी भी नहीं आता और भविष्य की जो योजनाएं हैं वह कभी भी पूरी नहीं होती। जब एक योजना पूरी हो जाती है तो दूसरी योजना फिर से शुरू हो जाती है और इस प्रकार से हमारा जीवन चक्र चलता रहता है । और अब आखिरी समय में जब मृत्यु तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है तब तुम्हें एहसास हो रहा है मैंने जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया , अब तुम्हें लग रहा है कि जो भी तुमने वास्तव में किया है उसमें से तुम एक सुई भी अपने साथ में नहीं ले जा सकते ।

यही बात तुम उस वक्त समझ लेते की मृत्यु कभी निश्चित होकर के नहीं आती वह तो कभी भी , कहीं भी , किसी भी समय आ सकती है । यह बात अगर उस वक्त तुम्हारा मन समझ लेता। और उसी वक्त तुम ध्यान और सत्य की खोज में लग जाते । तुम कुछ ऐसे ही खोजने की कोशिश करते जो तुम्हारे साथ में जा सके जो तुम्हें शांत रहकर मरने का मार्ग दिखा सके ।

उस वृद्ध आदमी ने भगवान बुद्ध के बात को ध्यान से सुना और दोनों हाथों को अपने जोड़ते हुए गौतम बुद्ध से कहा – यह तो मैं जानता हूं कि मुझसे बहुत सारी गलतियां हुई है मैंने अपने वास्तविक जीवन को सार्थक रूप से जीवन   बात का मुझे बहुत गहरे में एहसास हो चुका है लेकिन आपसे फिर से वही सुंदर जाना चाहता हूं कि क्या मैं अभी परिपूर्णता के साथ नहीं मर सकता क्या मुझे अभी सत्य की कोई जरूरत नहीं मिल सकती यह सुनकर बुद्ध ने उस आदमी का हाथ से लाते हुए कहा कि अब तो एक ही सुंदर समझने लायक रह जाता है और

वह सूत्र यह है कि तुमने जो कुछ भी तुमने जीवन में जो कुछ भी पाया या फिर जो कुछ भी खोया वह यहीं पर छोड़ कर चले जाओ । उसे अपने मन के साथ में जोड़ करके मत ले जाओ । अपने मन में यह भाव पैदा करो कि तुमने अपने इस जीवन से बहुत कुछ सीख लिया और वास्तविकता में तुमने अपने जीवन में बहुत सारे प्रगति देखी है क्योंकि तुमने यह जान लिया है कि क्योंकि जीवन में कुछ भी सार्थक नहीं है । और यह जानना कि अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है ।

लोग जीवन भर जीते जीते मर जाते हैं लेकिन उन्हें जीवन की वास्तविकता वास्तविक अर्थ मालूम ही नहीं होता इसलिए अभी अपने मन से सारे सवालों को मिटा दो और यह भाव पैदा करो कि जीवन में जो कुछ जाने जैसा था वह मैंने जान लिया है अब कुछ ऐसा जाने जैसा नहीं बचा है ।

जब तुम इस बात को अपने मन के अंदर गांठ बांध लोगे तब तुम तब तुम खाली हो कर के मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे और यही वास्तविकता में मरने की कला होती है हमने जीवन में जो कुछ भी पाया है और जो कुछ भी खोया है वह इसी दुनिया का था और वह यही रह जाएगा । हमारे साथ में कोई भी वस्तु नहीं जाएगा। हम खाली जाएंगे ,

हम भी जाएंगे और जो लोग अपने मन से खाली हो कर के जाते हैं वास्तव में उसके अंदर ज्ञान की दीप जल जाता है और आगे चलकर बहुत दूसरे जन्म में निर्वाण को प्राप्त करते हैं ।लेकिन उससे पहले तुम्हें बुद्ध की निरर्थक को समझना पड़ेगा यहां पर कुछ भी पाना और कुछ भी कोई मायने नहीं रखता।

भगवान बुद्ध के वचनों को बड़े ध्यान से सुनते हुए उस वृद्ध आदमी ने कोई सवाल नहीं पूछा भगवान बुद्ध को नमस्कार करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए ।

इसके बाद में भगवान बुद्ध ने उस नौजवान युवक से पूछा- क्या तुम्हें अपने सवालों के जवाब प्राप्त हुए ? और मिले तो तुम्हें जवाब में क्या मिले? उसे ही बताओ।

उस युवक ने भगवान बुद्ध से दोनों हाथ जोड़कर के कहा- हे बुद्ध मुझे अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए हैं आदमी के जीवन । मानव जीवन में कुछ भी नहीं होता। चाहे सुख हो या फिर चाहे ना हो पीछे रह जाता है। और यदि हम पीछे रह जाएंगे तो हम कभी नहीं जान पाएंगे इसीलिए तो जीवन में सुख और दुख तो चलते रहेंगे । इसके साथ चलते हुए हमें सत्य की खोज करनी पड़ेगी ।

वह नवयुवक गौतम बुद्ध से कहता है- इसके बाद भी प्रभु मेरे मन में एक प्रश्न अभी भी बाकी है लेकिन इसका जवाब जानना सभी लोगों के लिए जरूरी है ? मेरा सवाल है कि मैं ध्यान की यात्रा करने के लिए बहुत ही प्रेरित हुआ हूं लेकिन लेकिन मुझे कोई मार्ग ही नहीं पता ध्यान कैसे किया जाता है ?

भगवान बुद्ध कहते हैं-ध्यान लाने के लिए ही बनी वर्तमान में लाने के लिए बनी है . अगर तुम किसी भी काम को पूरी उपस्थिति के साथ पूरे का प्रभाव से अपने आप को पूरा करके कर सकते हो तो ध्यान में होते लेकिन हमारा ध्यान इधर-उधर भटकता रहता है . अपना काम करते-करते वर्तमान में रहने के लिए मैं तुम्हें एक छोटी सी विधि बताता हूं। अपना काम भी कर सकते हो और ध्यान को भी समझ करते हो जब भी तुम चलते फिरते हो उठते बैठते हो सिर्फ अपनी सांसो पर ध्यान लगाना शुरु करो सांस किस नाक से आ रही है ? इस नाक से जा रही है नाक के कौन से कोने से टकरा रही है।

सिर्फ तुम उसके साक्षी हो जाओ और फिर देखते रहो कुछ भी काम कर रहे हो , चल रहे हो,  खाना खा रहे हो , सिर्फ अपनी सांस पर ध्यान लगाओ और यह करते वक्त तुम्हें महसूस होगा कि तुम्हारा दिमाग तुम्हारे विचार तुम्हें इधर-उधर ले जाते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद तुम्हें फिर से हो जाएगा कि तुम्हें अपनी सांसो पर ध्यान लगाना है । ध्यान फिर से सांसो पर टिक जाएगा जब तुम अपने विचारों को देखने लगे विचार भी नहीं होने लगे हैं तुम्हारे अंदर बसे खाली मैदान बचा हुआ है सारे सवाल जवाब समाप्त हो चुके हैं ।

इसके बाद बुद्ध ने कहा – साँस जो होती है वह वर्तमान में चलती है , ना ही वह भविष्य में चलती है ना ही भूतकाल में वही वर्तमान स्थिति होता है । जब तुम अपनी सांसो से जुड़ जाते हो तो तुम वर्तमान में ध्यान लगाना शुरु सीख जाते हो क्योंकि सांसे जिन पर तुम ध्यान लगा रहे हो वर्तमान में चल रही होती है। इसके बाद में धीरे-धीरे कदम दर कदम तुम्हें ध्यान का खुद ही एहसास होने लगेगा । इसके बाद तुम जो भी काम करोगे उस पर तुम्हारा पूरा एकाग्र होगा ।

तो शुरूआत वहीं से करो जहां तुम हो , यहीं से , अभी से सांसो को पकड़ना शुरू कर दो ।

2 .   मन की कीचड़ (Gautam Buddha Ki Shikshaprad Kahani)

gautambuddha ki shikshaprad kahani
gautam buddha ki shikshaprad kahani

बहुत समय पहले की बात है एक गरीब इंसान। अपनी गरीबी से बहुत परेशान हो गया था। अपनी गरीबी के कारण उनका अपना परिवार का पालन पोषण करना बहुत ही कठिन हो गया था । एक पत्नी और दो पुत्रों के भरण-पोषण के बुझने उसके मन में उथल-पुथल मचा दिए थे । किसी उत्तल पुथल के चलते उसने घर छोड़ कर के भाग जाने का निर्णय ले लिया और एक रात समय देख कर के चुपचाप अपने घर परिवार को छोड़ कर के चला गया ।

वह रात में बिना किसी मंजिल को जाने एकांत चला जा रहा था । जब रात में एक नदी के किनारे में पहुंचा तो उसने देखा कि भगवान गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ में डेरा डाले हुए हैं । यह देख करके उसने निर्णय लिया वह सन्यासी हो जाएगा और वह भगवान बुद्ध का शिष्य बन कर उनके साथ ही विचरण करेगा ।

यह विचार करके वह भगवान बुद्ध के के पास उनके चरणों में गिर गया । और उन से विनती करने लगा अपना शिष्य बनाकर अपने साथ ही रख ले ।

भगवान बुद्ध ने उस गरीब व्यक्ति के दया दिखाते हुए उसे शिष्य बना लिया । उसके बाद जब भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ में आगे बढ़ा तो वह भी उनके साथ ही चल पड़ा  ।

गर्मी का महीना था । भगवान बुद्ध और उनके शिष्य उनके पीछे-पीछे चलता ही चला जा रहा था जब वे सभी एक जंगल में पहुंचे तो सभी लोग पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए रुक रुक गए ।

भगवान बुद्ध को गर्मी के कारण काफी जोर की प्यास लगी थी । उन्होंने उस ने शिष्य से कहा – यहां पास में ही एक सरोवर है जहां से तुम जाकर वहां से पानी ले आओ ? भगवान बुद्ध का आदेश पाकर के उसके शिष्य सरोवर में पानी लेने के लिए चला गया ।

जब वह सरोवर के पास में पहुंचा तो उसने देखा जंगली जानवर उस तालाब में उधम मचा रहे हैं । और जब वह सरोवर के नजदीक में पहुंचा तब सभी जानवर । उसके डर के मारे वहां से भाग गए । उस शिष्य तालाब के पास में आकर के देखा तो तालाब का सारा पानी जानवरों के कारण गंदा हो गया था । तलाब के कीचड़ और सड़े गले पत्ते पानी के ऊपर आ गए थे । वह इतना गंदा पानी देख कर के वह वहां से बिना पानी लिए ही वापस आ गया ।

और आकर के भगवान बुद्ध से बोला- हे भगवान उसे सरोवर में तो बहुत ही ज्यादा गंदा पानी था। वह पानी इतना गंदा था कि उसे दिया भी नहीं जा सकता ।

सिर्फ की बात को सुनकर के भगवान बुद्ध कुछ समय के लिए चुप रहा – उसके बाद में उसने फिर उसी से उसी सरोवर में जाकर की पानी लाने के लिए कहा ।

बुद्ध के दोबारा कहने के बाद वह शिष्य उसी सरोवर में दोबारा पानी लेने के लिए गया – और वह जाते जाते रास्ते में यह सोचते हुए जा रहा था कि वह इतने गंदे पानी को पिएंगे कैसे ? तालाब के नजदीक में पहुंचाता है और जा कर के देखता है कि तालाब का पानी स्वच्छ हो चुका है यह देख कर के वह स्वयं आश्चर्यचकित हो जाता है ।

वह पानी लेकर के भगवान गौतम बुद्ध के पास में आता है और उनसे यह प्रश्न करता है कि हे भगवान थोड़ा देर सरोवर का जो पानी है वह इतना साफ कैसे हो गया ?

तब भगवान बुद्ध समझाते हुए कहते हैं – जब जानवर पानी में थे जिसके कारण से उसका कीचड़ बाहर आ चुका था परंतु कुछ देर चुप रहने पर कीचड़ फिर वापस नीचे बैठ गया और फिर पानी फिर से स्वच्छ हो गया निर्मल हो गया । इसी प्रकार से हमारी मन की भी स्थिति होती है ।

जीवन की भागदौड़ और जीवन की कठिनाइयां हमारे जीवन में उथल-पुथल मचा देते हैं और जिसके कारण से हम अपने निर्णय को गलत निर्णय ले लेते हैं यदि गलत निर्णय लेने से पहले हम अपने चित्त को एकाग्र और शांत धीरज पूर्वक बैठकर सोचे तो हमारा मन भी उसी पानी ने मची हुए कीचड़ की उथल-पुथल के समान है नीचे बैठ जाती है । और जब हम निर्णय लेते हैं तो वह निर्णय हमारा सही निर्णय होता है ।

इसलिए बुरे समय में किसी भी इंसान को धीरज नहीं खोना चाहिए । भगवान बुद्ध का यह प्रभावशाली वचन उसके समझ में आ जाता है और वह एक शांत जगह में बैठकर सोचने लगता है तो उसे यह आभास हो जाता है कि उसने घर छोड़ कर के गलत निर्णय लिया था ।

3 . कुछ पाने के लिए कुछ खोना होगा (Gautam Buddha Ki Shikshaprad Kahani)

एक बहुत ही गरीब लड़का था वह अपने खाने-पीने की जुगाड़ इधर उधर से रोज कर लेता था । लेकिन जैसे ही वह अपने खाने की जुगाड़ करता था वैसे ही रोज उसका खाना कोई ना कोई चुरा लेता था । एक दिन उसे पता चलता है की एक चूहा जो उसका भोजन को चुरा लेता है।

उसने उस चूहे को पकड़ लिया और उससे पूछा कि तुम जानते हो कि मैं बहुत ही गरीब हूं \ फिर भी तुम हमेशा मेरा ही खाना चुराते हो । अगर तुम्हें चोरी करनी ही है तो एक अमीर आदमी के खाना को चुराओ इससे उसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।

लड़के की बात को सुनकर के चूहे ने कहा- तुम जितने भी कोशिश कर लो तुम्हें तुम्हारे जीवन में उतने ही मिलेगा जितने तुम्हारे भाग्य में लिखा होगा ।

यह सुनकर के लड़का बहुत ही चकित हो गया और कहां यह कैसे संभव हो सकता है ?

फिर चूहे ने लड़के को समझाते हुए कहा यदि तुम जानना चाहते हो कि तुम्हारा भाग्य में क्या लिखा है कि तुम गौतम बुद्ध के पास में जाओ वह तुम्हें बता सकते हैं कि तुम्हारे भाग्य में क्या लिखा है।

चूहे की बात को सुनकर लड़का गौतम बुद्ध से मिलने के लिए बड़ी उत्सुकता के साथ में घर से निकलता है । जाते जाते रास्ते में काफी रात हो गया और घनी अंधेरी रात में उन्हें एक हवेली दिखाई दिया । और उसने हवेली के लोगों को एक रात रुकने की विनम्र निवेदन की ।

हवेली के लोगों ने उनसे पूछा कि तुम इतनी रात को अकेले इस घने जंगल में कहां जा रहे हो ?

लड़के ने कहा मैं अपने भाग्य को जानने के लिए मैं गौतम बुद्ध के पास में जा रहा हूं ? फिर उसने कहा कि तुम हमारे लिए गौतम बुद्ध को एक बात पूछ सकते हो कि हमारी एक 16 साल की बेटी है । लड़की बात नहीं कर पाती है क्या करने से लड़की के गले से आवाज आएगी ।

लड़के ने कहा मैं आपका प्रश्न जरूर पूछूंगा यह कह कर के उसे एक रात रुकने के लिए दिया । और जैसे ही सुबह हुआ वह सुबह उठ करके फिर आगे रास्ते के लिए निकल गया ।

रास्ते में जाते जाते उसे एक बर्फ का पहाड़ मिला । वह बड़ी कठिनाई के साथ में और बड़ी मुश्किल के साथ में उस भर के ठंडी हवाओं को ठिठुरते हुए पहाड़ के ऊपर भाग में पहुंचा तो वहां उसकी मुलाकात एक जादूगर । जादूगर ने लड़की से पूछा वह कहां जा रहा है ?

लड़के ने कहा कि मैं अपना भाग्य जाने के लिए गौतम बुद्ध के पास में जा रहा हूं ? तब उस जादूगर ने का क्या सच में ?

तो लड़के ने कहा हां सच में मैं अपने भाग्य जाने के लिए गौतम बुद्ध के पास में जा रहा हूं ? जादूगर ने उस लड़के से कहा कि तुम गौतम बुद्ध के पास में जा रहे हो तो मेरा एक प्रश्न पूछना कि मैं स्वर्ग कब जा सकता हूं ? सैकड़ों वर्षो से स्वर्ग जाने की प्रतीक्षा कर रहा हूं तुम्हें पूछना होगा कि क्या करने से स्वर्ग की प्राप्ति होगी ।

लड़के ने कहा मैं आपके प्रश्न का उत्तर जरूर पूछूंगा ।

उस जादूगर के पास में एक जादू की छड़ी थी जिसने जादू का मंत्र पढ़ा और उसे ठंडी पहाड़ से हटा करके उसे एक उसके दूसरे छोर पर पहुंचा दिया जहां ठंड बिल्कुल ही कम था ।

कुछ दूर पैदल चलने के बाद में उसे एक बड़ी नदी मिली और बड़ी नदी को पार करना उसके लिए नामुमकिन था । तभी उसकी मुलाकात एक विशाल कछुए से हुई । कछुआ भी उसे नदी पार कराने के लिए राजी . कछुआ और लड़का दोनों एक दूसरे से बातें करते रहे और कछुआ ने पूछा कि तुम कहां जा रहे हो । लड़के ने वही उत्तर दिया

तब क्या मेरी ओर से एक प्रश्न पूछ सकते हो लड़के ने कहा हा । कछुआ ने कहा – मैं पिछले 500 वर्षों से ड्रैगन बनने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन ड्रैगन नहीं बन पाया क्या करूं जिससे कि मैं ड्रैगन बन सकता हूं ?

लड़के ने कहा ठीक है मैं आपके सभी सवालों के जवाब मैं गौतम बुद्ध से जरूर पूछूंगा । कछुआ नहीं उसे अपनी पीठ पर बैठाया और नदी के इस छोर से उस छोर तक उसे पहुंचा दिया ।

आखिरकार कुछ और पैदल चलने के बाद में वह लड़का गौतम बुद्ध के पास में आ पहुंचा । जहां गौतम बुद्ध रुके थे वहां पहुंचे तो वहां अन्य लोग भी पहुंचे हुए थे । गौतम बुद्ध के पास में जा करके उसे प्रणाम करके वहां बैठ गया । गौतम बुद्ध ने कहा कि वह सिर्फ आज 3 प्रश्नों का उत्तर दूंगा । लड़का गौतम बुद्ध की बात को सुनकर के चिंतित हो गया उसे तो 4 प्रश्न पूछने थे ।

कि कौन से तीन प्रश्न वह पूछे । उसने उस कछुए के बारे में सोचा जो 500 वर्षों से ड्रैगन बनने की कोशिश कर रहा है , वह जादूगर जो स्वर्ग जाने के लिए सैकड़ों वर्षो से तपस्या कर रहा है, और वह लड़की जो बिना बात किए हुए अपना पूरा जीवन कैसे ब बताएगी ।

फिर उसने मन ही मन सोचा मैं तो एक गरीब भिखारी हूं । भीख मांग कर के अपना गुजारा कर सकता हूं लेकिन बेचारा कछुआ , जादूगर और लड़की की समस्या मुझ से कहीं अधिक है । यह सोच कर के लड़के ने खुद के सवाल को गौतम बुद्ध से नहीं किया बल्कि उन तीनों के सवाल उन्होंने गौतम बुद्ध से पूछे ।

भगवान बुद्ध ने उस लड़के से कहा – कछुआ 500 सालों से ड्रैगन बनने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह अपने कवच को छोड़ने के तैयार नहीं है । वह तब तक ड्रैगन नहीं बन सकता जब तक वह अपना कवच को नहीं छोड़ देता तथा जादूगर स्वर्ग जाने के लिए सैकड़ों वर्षों से तपस्या कर रहा है लेकिन उसने वह जादुई छड़ी अपने पास में रखा है ।

वह जादुई छड़ी उसे स्वर्ग जाने से रोक रही है । अगर वहां स्वर्ग जाना चाहता है तो उसे अपनी जादुई छड़ी छोड़नी होगी और वह लड़की जो बोल नहीं पा रही है वह अपना जीवनसाथी चुनने की उस दिन से लड़की खुद ब खुद बात करने लगेगी।

लड़के ने गौतम बुद्ध को प्रणाम करके उनका शुक्रिया किया और वहां से निकल पड़ा घर की और वापस आते वक्त उन्हें रास्ते में कछुआ मिला। कछुए को भगवान बुद्ध के बात को बतलाया और उस बात को सुनने के बाद में कछुआ अपना कवच को खुला तो उसके अंदर कई कीमती मोती प्राप्त हुए । कछुए ने उन मोतियों को लड़के को दे दिया और ड्रैगन वन करके उड़ गया ।

फिर लड़के ने मोती को लेकर के उस जादूगर के पास पहुंचा और उनको गौतम बुद्ध की कई सारी बातें बतलाई । जैसे ही उस जादूगर ने अपना छेड़े छोड़ा वैसे ही वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ । और लड़का उसके छड़ी को पकड़कर जादूगर बन गया ।

मोती छड़ी को लेकर के लड़का अंत में पैदल चलते हुए उस महल में पहुंचा जहां पर वह गूंगी लड़की रहती थी । महाल में पहुंच करके उसने उस लड़की से शादी कर ले उसके बाद वह लड़की बोलना शुरू कर दी ।

इस प्रकार से दोस्तों उस गरीब लड़का 1 दिन बड़ा आदमी बन जाता है ।

4 . कर्म नोट करके जरूर आता है (गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी )

एक बौद्ध भिक्षु और उनका शिष्य एक जंगल में कुटिया बनाकर के रहते थे । बौद्ध भिक्षुक अब बूढ़े हो चुके थे और उसका शिष्य जवान था । बूढ़े बौद्ध भिक्षुक एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे । जब वे ध्यान करने बैठते तो वह दो दो दिनों ध्यान ही करते बैठती । बौद्ध भिक्षु के पास में एक अनोखी सकते थे वह बूढ़े अवस्था में भविष्य को भी देख सकते थे ।

एक दिन वह ध्यान लगा कर के बैठे हुए थे तो उन्होंने देखा कि उसके आठवीं दिन उसकी उस युवा किसी की मृत्यु हो जाएगी । उन्होंने अपने शिष्य को पास बुला कर के कहा- मैं तुम्हें अगले 7 दिनों की छुट्टी देता हूं । तुम इन 7 दिनों के लिए अपने घर रह कर के आ सकते हो ।

शिष्य ने कहा – क्या सत्य है गुरुवर ?

गुरु ने कहा हां सत्य है ।

इस ने मुस्कुराते हुए कहा मेरा मन पिछले कुछ दिनों से घरवालों से मिलने के लिए उत्सुक था ।गुरु ने कहा – ठीक है अब तुम जा सकते हो लेकिन आठवीं दिन के शाम होने तक तुम्हें यहां हाजिर होना ।

उसके शिष्य ने हां कहते हुए कहा ठीक है गुरुवर मैं पहुंच जाऊंगा लेकिन आप अपना ख्याल रखिएगा और कोई भी हो उसे मेरे लिए छोड़ दीजिएगा । मैं उसे वापस आते ही पूरा कर दूंगा इसके बाद सिर्फ अपने गुरु का आशीर्वाद लेते हुए उस जंगल से वापस घर की ओर निकल गया ।

जैसे कि गांव के किनारे एक नदी था और नदी के किनारे चीटियों का बिल था वहां लाखों चीटियां थी उस बिल के अंदर जा रहे थे और कुछ बाहर निकल रहे थे जिससे कि कुछ चीटियां आपस में टकरा जा रही थी जिसके कारण से अपना रास्ता बदल रहे थे । यह देख कर के उसे बड़ा ही आनंद आ रहा था । वह कुछ देर तक खड़ा होकर के बड़े आनंद के साथ

उन चीटियों को देखता रहा फिर अचानक उसका ध्यान उस नदी की तरफ गया । उसने देखा कि नदी का जो पानी है वह धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है जिसके उठने वाले लहर चीटियों के बिल के पास पहुंच रहे हैं इनके वजह से लाखों चीटियां बिना वजह के मारे जाएंगे ।

यह सोच कर के उसने तुरंत ही अपने कपड़े उतारे और उसने मिट्टी भरकर बिल के चारों तरफ मिट्टी का घेरा बना दिया । साथ ही उसने अपने बड़े ही कर आत्म कलाकृति से  नाली बना दी ताकि नदी से आने वाला पानी वहां से बाहर चला जाए। इसके बाद में वह नदी पार करके अपने घर चला गया ।

घर पहुंचने के बाद में 8 दिन कैसे बीता उसे पता ही नहीं चला। आठवीं दिन उसे याद आया कि उसे शाम तक गुरु ने आश्रम में लौटने का आदेश दिया था । उसने उसी रात ही अगले दिन निकलने के लिए सारी तैयारी कर ली थी।

सुबह होते ही 8 दिन वह आश्रम के लिए निकल गया उसे पूरा उम्मीद था कि शाम होने से पहले वह आश्रम पहुंच जाएगा। शाम हो चुकी थी और यहां गुरु बैठे-बैठे यह सोच रहे थे कि आज तो 9 दिन है अब तक तो मेरा शिष्य दुनिया छोड़ चुका होगा ।

भी काफी चिंतित थे, और दुखी थे की आखरी बार उसे देखना सकेगा । गुरु वैसा ही सोच रहे थे तो उन्हें दूर से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गई । गुरु ने दौड़कर अपने शिष्य को गले से लगा लिया।

लेकिन वह इस बात से भी अचंभित थे कि 8 दिन बीत जाने के बाद भी वह अभी भी जिंदा कैसे हैं ?  गुरु ने शिष्य को बड़ी उत्सुकता के साथ में कहा कि तुमने यहां से जाने के बाद में क्या किया मुझे बताओ?

तब शिष्य ने चीटियों वाली कहानी गुरु को सुनाएं । कहानी सुनते ही गुरु को यह समझने में देरी नहीं हुए के शिष्य ने लाखों चीटियों की जान बचाई थी कि उसके इसी कर्म के परिणाम ही उसे एक लंबा और खुशहाली भरा जीवन प्राप्त हुआ है । कहानी सुनने के बाद में गुरु के मुंह से अनाया निकल गया कि – कर्म लौट कर जरूर आते हैं ।

शिष्य को गुरु की यह बात समझ में नहीं आया लेकिन उसने पूछा भी नहीं और चुपचाप अपने आश्रम के बचे हुए कामों में लग गया ।

यदि हम अपने जिंदगी में देखें तो इसे खुशी-खुशी जीने का आसान तरीका है कि हम लगातार अच्छे कर्म करते रहे । इस कहानी की तरह जरूरी यह नहीं की कि अच्छे कर्म हमारी उम्र को लंबा करेंगे लेकिन इस बात की भी गारंटी है कि अच्छे कर्म हमारे जिंदगी में भी सारी परेशानी और दुख को खत्म कर देगी ।

गौतम बुद्ध का एक साधारण सा सिद्धांत है कि हम जो कुछ भी करते हैं कि कई गुना लौटकर हमारे पास वापस आता है चाहे वह अच्छे कर्म हो या फिर बुरे कर्म हो वह के गुना हों करके हमारे पास में आते हैं  । अच्छे कर्म करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि हमेशा हमारे पास है पैसा होना चाहिए और ना ही किसी की जान बचाना ही है । छोटी सी मदद करना भी आता है , किसी डिमोटिवेट हुए इंसान को मोटिवेट  अच्छा कर्म कहलाता है।

5 . पुरानी बातों छोड़कर वर्तमान में जियो (गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी )

एक बार महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ में बैठ कर के गांव में उपदेश दे रहे थे ।  गांव के अन्य लोग भी वहां गौतम बुद्ध के उपदेश को सुनने के लिए आए हुए थे कि वह बोले कि क्रोध एक प्रकार की अग्नि है। क्रोध करने वाला व्यक्ति खुद भी जलता है और दूसरों को जलाता रहता है । क्रोध में व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुंचाने कोशिश में खुद को नुकसान पहुंचाता है।

गौतम बुद्ध की यह बातें सभा में मौजूद एक व्यक्ति भी सुन रहा था उन्हें क्रोध आने की यह बातें बिल्कुल ही अच्छी नहीं लगी । बे सभा में से उठकर बुद्ध से क्रोध मैं बोला – अरे ढोंगी तू बड़ी बड़ी बातें करता है ? इनका पालन करके दिखा । लोगों के व्यवहार के विरुद्ध यह सब कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती ।

उस व्यक्ति की इस क्रोध को देखकर गौतम पुत्र शांत रहे ।

गौतम बुद्ध को इस प्रकार से सुख शांति देख कर के उस व्यक्ति को और अधिक क्रोध आ गया । उस व्यक्ति ने गौतम बुद्ध के पास में जाकर गौतम बुद्ध के मुंह में थूक दिया । गौतम बुद्ध ने अपना चेहरा पहुंचा और बोले – कि तुम्हें और क्या कहना है?

वह व्यक्ति फिर से क्रोधित होकर के कहा- मैं कह रहा हूं ?

गौतम बुद्ध बोले – , तुम्हारा इस प्रकार से बर्ताव तुम्हारा नफरत ही है । इस प्रकार से वह व्यक्ति गौतम बुद्ध को और बुरा भला कह कर के वहां से चला गया ।

तब कुछ देर बाद सब खत्म हो गई और उसके दूसरे दिन गौतम बुद्ध दूसरे गांव चले गए। सुबह जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ उन्हें अपने आप पर बहुत पश्चाताप हुआ । वह गौतम बुद्ध को ढूंढता हुआ खोजते खोजते दूसरे गांव पहुंच गया ।

जहां वह प्रवचन दे रहे थे – यह देखकर कि गौतम बुद्ध लोगों को प्रवचन दे रहे हैं । वह गौतम बुद्ध के चरणों में जाकर के गिरा और रोने लगा और  गिर गिराने लगा कि मुझे माफ कर दीजिए ? मैंने कल आपके साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया

गौतम बुद्ध ने उससे पूछा – कौन है आप?

गौतम बुद्ध की इस बात को सुनकर वह व्यक्ति चौक गया – और बोला कि आप मुझे कैसे भूल सकते हैं ? मैं वही दुष्ट इंसान हूं जो आप ऊपर थूक कर और आपको भला बुरा कहा था और आप का अपमान किया था ।

गौतम बुद्ध हंसते हुए बोला- कल की बात तो मैं कल मैं छोड़ आया हूं । हर बुरी बात को यदि जिंदगी में याद रखा जाए तो वर्तमान और भविष्य दोनों ही ठहर जाएंगे जिससे मिलेंगे तो दुख और परेशानी।

दोस्तों इस छोटी सी कहानी (गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी ) का सार यही है कि हमें भी बुरी बातों को , और बुरी हादसों को पीछे छोड़ कर के जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए पुरानी बातों को याद करने से दुख के सिवा और कुछ नहीं मिलता ।

6 . इंसान की सबसे बड़ी गलती (गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी )

आनंद गौतम बुद्ध के चचेरे भाई थे। जब गौतम बुद्ध ने लोगों को दिखा देना शुरू किया था उसके चचेरे भाई आनंद उसके पास आते हैं और उनसे कहते हैं की मैं भी दीक्षा लेना चाहता चाहता हूं और भिक्षु बन्ना चाहता हूं लेकिन मैं आपकी भिक्षु बन जाऊं तो मेरी एक शर्त है ?जो एक छोटे भाई होने के नाते तुम्हें सुनना होगा ।

तब गौतम बुद्ध कहते हैं – ऐसी शर्त ?

तब आनंद कहते हैं – मैं तुम्हारे शिष्य बनने जा रहा हूं लेकिन मैं हमेशा आपके साथ ही आऊंगा । आप आप मुझसे कोई भी काम नहीं करवाएंगे  . मैं हमेशा आप ही छाया बन कर रहूंगा ।

यह सुनकर के महात्मा बुद्ध कहते हैं – यह तो आप पर निर्भर करता है मुझे इस से कोई समस्या नहीं है यदि आप एक से बनना चाहते हैं लेकिन यदि आप साथ में उसके कोई शर्त रखते हैं तो आप कभी भी सी से बनने का स्वाद नहीं चल पाएंगे । जिस क्षण आपने एक शर्त आपने अपने जीवन की सभी संभावनाओं को नष्ट कर दिया ।

महात्मा बुद्ध हंसते हुए कहते हैं – आपकी यही शर्त है तो उनकी हसरत पूरी की जाएगी मुझे कोई समस्या नहीं है।

अब आनंद वैसे तो हर काम करते थे  । बुद्ध के साथ रहते थे दीक्षा भी लेने को जाया करते थे लेकिन वहां ज्यादातर समय बुद्ध के साथ ही रहते थे ।

एक बार महात्मा बुद्ध अपनी पत्नी यशोधरा से मिलने का निश्चय करते हैं । वह लगभग 8 साल बाद उनसे मिलने के लिए जा रहे थे । इतने सालों तक वह उनसे नहीं मिले थे बुद्ध जब अपना घर छोड़ रहे होते है तो उस समय वह आधी रात को ही बिना किसी को बताए घर त्याग देते हैं वह अपने बेटे और पत्नी को सोते हुए में ही छोड़कर निकल गए थे । अब 8 साल बाद उसका उनसे मिलने की संभावना बनती है ।

तब महात्मा बुद्ध आनंद से कहते हैं कि मैं अपनी पत्नी से मिलने जा रहा हूं वहां तुम्हें साथ आने की आवश्यकता नहीं है । कृपया इस बार आप दूर रहे ।

बुद्ध कहते हैं कि वह पहले से ही मुझसे बहुत आहत हैं और गुस्से में है कि मैंने आधी रात को बिना उसे बताएं क्यों छोड़ दिया और अब इतने सालों मिलने जाऊंगा तो पता नहीं वह क्या करें और यदि अब मैं तुम्हें एक साथी के रूप में ले जाऊं तो वह इसे ठीक से नहीं लेगी । इसके लिए आप कृपया यही रहे आपका वहां आना उचित नहीं है ।

यह शब्द सुन आनंद महात्मा बुद्ध से कहा यह आप सब भूल रहे हैं कि मैं हमेशा आप की छाया बनकर आपके साथ रहूंगा अपना वचन रखो  । यह समय बहुत ही असहज स्थिति बन गई थी कि बुद्धा दिया हुआ वचन तोड़ भी नहीं सकते थे और आनंद को साथ ले जाने में भी सोच रहे थे कि ना जाने आनंद को साथ देख उनकी पत्नी क्या कहे?

आनंद को साथ ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं और दोनों महल के लिए प्रस्थान कर लेते हैं । जब वह अपने द्वार पर पहुंचते हैं की यशोधरा को यह खबर मिलती है कि सिद्धार्थ आए हैं । यशोधरा और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का आमना सामना होता है । यशोधरा बुद्ध को देखकर क्रोधित होती है उन पर खूब चिल्लाती है . वह उधर से कहती है कि आपने कायरता दिखाई जो आप भी ना हम सबको चुपके से चले गए ।

बुद्ध , यशोधरा की सभी बातों को चुपचाप खड़े होकर सुनते हैं एक शब्द भी नहीं कहते हैं जब तक यशोधरा की बात पूरी ना हो जाती । जब यशोधरा अपनी मन की भड़ास बुद्ध पर निकाल लेते हैं और चुप हो जाती है तब बुद्ध यशोदा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिस आदमी ने तुमसे विवाह किया था वह सिद्धार्थ था जोकि अब वह नहीं रहा ।

वह आदमी चला गया लेकिन जो तुम्हारे सामने आज खड़ा है वह मैं यहां हूं आज तुम्हारे सामने सिद्धार्थ नहीं बल्कि बुद्ध खड़ा है, एक भी खड़ा है। अब मैं मैं एक साकार प्राणी । सिद्धार्थ और बुद्ध दोनों अलग-अलग है । आप मुझे ध्यान से देखें मैं सिद्धार्थ नहीं आप को बुद्ध नजर आऊंगा ।

यह सुनकर यशोधरा कहती है की यह बातें और शर्तें आनंद पर लागू होगी मैं यह नहीं मानती हूं आप मेरे पति मेरे पति यह आपका बेटा है जिसे कायरता के साथ आप यूं ही छोड़ कर के गए । यह तो यह भी नहीं जानता कि उसके पिता उसे सोता हुआ छोड़कर भाग गए थे । यशोधरा के मन में बहुत सी बातें थी जो उन्हें बुद्ध से कहना था उन्होंने वह हर शिकायत की जो इतने सालों से उनके मन में थी उनका क्रोध दर्द सब दिख रहा था।

यशोधरा हर वह बात कह दी जो वह कहना चाहती थी . उसके बाद वह अपने बेटे को लेकर आती है और कहती है कि पूछो अपने पिता से वह तुम्हें क्या देंगे ?  क्या है? उनके पास में देने के लिए वह सब देने के लिए इतना करते हैं । क्या वह तुम्हारे लिए कुछ नहीं करेंगे ? अपने बेटे को कुछ नहीं देंगे ?

वह बुद्ध कहती है बताइए आप अपने बेटे को क्या देंगे ?

यह सुनकर के आनंद से कहते हैं जाओ आनंद आप मेरा भिक्षा पात्र लेकर आओ यहां मानो बुद्ध पहले से ही तैयार होकर आए थे । आनंद बुद्ध का भिक्षा पात्र लेकर आ जाते हैं फिर बुद्ध अपने बेटे को बुलाते हैं और वह भिक्षा पात्र उसे दे देते हैं और कहते हैं – कि मैं नहीं चाहता कि एक राजा के रूप में पीड़ित हो इसलिए मैं तुम्हें परम स्वतंत्रता दे रहा हूं । मेरी विरासत मेरा भिक्षा टन का कटोरा है ।

उसने अपनी भिक्षा का का कटोरा अपने 8 साल के बेटे को सौंप दिया और वह सन्यासी बन गया और आनंद वापिस बिहार लौट आए ।

आनंद ने यह सब दृश्य अपनी आंखों के सामने देखा था और वह अपनी केवल एक साथ से उसकी संभावना को नष्ट कर देते हैं यहां अपनी शर्त के कारण चूक  जाते हैं । जब गौतम बुद्ध अपनी अंतिम समय में थे तब बुद्ध से मिलने के लिए केवल प्रबुद्ध इसे ही अंदर जाते हैं बाकी शिष्य सभी बाहर ही रह जाते हैं ।

तब आनंद ने रोते हुए कहते हैं कि उनके बहुत ही करीब था हमेशा उनकी परछाई बनकर उनके साथ ही रहा लेकिन मैं घेरे से बाहर हो गया क्यों?

, जब लोगों ने गौतम से वही प्रश्न पूछा , तो उन्होंने कहा की एक चम्मच सूप का स्वाद कोई कैसे ले सकता है ? आप सब का स्वाद लेना चाहते हैं तो आपको जीभ के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है . जिस छन तुम जीवन में परिस्थितियां निर्धारित करते हो तुम निर्जीव हो जाते । तुम एक चीज में सिमट जाते हो और तुम दूसरी चीज को कम करने की कोशिश करते हो ।

दोस्तों क्यों होने पर अपार और अद्भुत संभावनाएं हम देख सकते हैं लेकिन आनंद में सिर्फ एक शर्त के कारण उन अपार और असीमित संभावनाओं को नष्ट कर दिया । एक भिक्षु के जीवन में मौन का , भिक्षा मांगने का , हर तरह की क्रिया करने का, उपदेश देने का अलग महत्व होता है । कोई इन सब से दूर होता है, इसके बारे में विचार नहीं करता , , इसके बारे में सोच नहीं रखता इसके गहन भाव को नहीं समझता तो वह एक संपूर्ण बिच्छू नहीं बन पाता।

जिस प्रकार बुद्ध के पास उनके अंतिम समय में सिर्फ प्रबुद्ध शिष्य ही अंदर जाते थे । जो बुद्ध के ज्ञान को सिर्फ समझे नहीं थे बल्कि अपने भीतर उतारा था और हर दिशा में जाकर बुद्ध की आज्ञा अनुसार उसका प्रचार प्रसार करने में लगे हुए थे । वह स्वयं का जीवन भूल कर उस बुद्धत्व तक पहुंच गए थे जहां एक व्यक्ति स्वयं बुद्ध बन जाता है, लेकिन आनंद ने सिर्फ गौतम बुद्ध गौतम बुद्ध की परछाई बनने की इच्छा रख कर ,  एक शर्त सभी संभावनाओं से खुद को वंचित कर लिया .

यह सब चीजें बहुत गहरी होती है बुद्ध का ज्ञान समझाया हुआ ज्ञान हर किसी को समझ में आए कई बार ऐसा होता नहीं है, क्योंकि हर व्यक्ति अपनी अपनी समझ के अनुसार की चीजों को समझता है, अपनी समझ के अनुसार ही अच्छा या बुरा उसमें से लेता है । बुद्ध की बताई कोई भी बात अच्छी या बुरी सिर्फ उस व्यक्ति पर, निर्भर करती है जो उसमें से जो लेना चाहता है ।

हर व्यक्ति बुद्ध की बातों से सहमत था  , ऐसा नहीं था हर व्यक्ति बुद्ध के ज्ञान से असहमत था , ऐसा भी नहीं था जो सच में इस संसार के बंधनों से बाहर निकलकर जीवन के , मरण के अर्थ को समझना चाहते थे , मौन के रहस्य को जानना चाहते थे , परम अवस्था तक पहुंचना चाहते थे कि आखिर में क्या मिलता है ? वह महसूस करना चाहते थे सिर्फ वही लोग बुद्ध के अर्थ को समझ पाते थे ।

 

Leave a Reply