छत्तीसगढ़ का त्यौहार जेठौनी तिहार | Jethauni Tihar 2 MIN

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जेठौनी तिहार (देवउठनी पर्व) Jethauni Tihar सम्पूर्ण भारत में धूमधाम के साथ में मनाया जाता है । इस दिन को देश में इसे कई नमो से जाना जाता है जैसे इसे कई राज्यों में तुली पूजा के रूप में जाना जाता है तो और इसे कई राज्यों में अन्य नमो से भी जाना जाता है ठीक वैसे ही छत्तीसगढ़ राज्य में इसे जेठौनी तिहार (देवउठनी पर्व) के नाम से जाने जाते है ।

यह त्यौहार अहीर जाती के लोगो का त्यौहार माना जाता है और इस छत्तीसगढ़ में छोटा दीपावली के नाम से भी जाना जाता है । जंहा दीपावली की ही भांति ही इस दिन फटाके, रीती रिवाज , घरो में पकवान , देवी देवताओ की पूजा आदि की जाती है ।

फर्क सिर्फ इतना होता है की इस दिन लोगो का उत्साह दीपावली से कम देखे जा सकते है लेकिन Chhattisgarh caste वर्गो और गावो के हिसाब से इस दिन कई गावो , कस्बो इसे दीपावली से अच्छे से मनाया जाता है ।

गन्ना तिहार (Jethauni Tihar)  KYA है | What is sugarcane festival

वैसे तो आप सभी लोगो को पता होगा की हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में किसी भी त्यौहार के मानाने के पीछे कोई न कोई कारन जरूर होता है । ठीक वैसे ही त्यौहार को मानने के पीछे भी छत्तीसगढ़ में कई सारे CHHATTISGRH KE LOKKATHA लोक कथा है जिसे आप सभी ने सुना ही होगा जिसे बताने की कोई जरुरत नहीं है ।

CHHATTISGRH के ग्रामीण क्षेत्रों में इस त्यौहार को Jethauni Tihar के नाम से जाने जाते है ठीक इसी नाम को सहरी क्षेत्रों में तुलसी के पूजा के नाम से भी जाना जाता है ।

छत्तीसगढ़ के प्राय: हर घर में तुलसी चौरा मिलता है . जंहा महिलाय हर दिन दीपक और अगरबत्ती लगाकर के तुली की पूजा करती है और शुबह के समय तुलसी को जल अर्पित करती है . जेठौनी तिहार के दिन में तुलसी और सालिग्राम की पूजा की जाती है ।

तुलसी विवाह या तुलसी पूजा कैसे होता है | How is Tulsi marriage or Tulsi Puja done?

Jethauni Tihar
Jethauni Tihar

गन्ना तिहार (sugarcane festival) दिन शाम के समय माता तुलसी और सालिग्राम की पूजा अर्चना की जाती है और दोनों की शादी की जाती है । ऐसी मान्यता है की तुलसी के विवाह होने के बाद में पुरे छत्तीसगढ़ में शादी के पवित्र बंधन का प्रारम्भ माना जाता है ।

पूजा के बाद में माता तुलसी को तुलसी माता को वस्त्र और श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है। चने की भाजी, तिवरा भाजी,अमरूद, कंदमूल और अन्य मौसमी फल सब्जी का भोग लगाया जाता है।

तुलसी की शादी में मड़वा के रूप में गन्ने का प्रयोग किया जाता है । जिसके लिए चार लम्बे-लम्बे गन्ने का चार खुट बनाया जाता है फिर तुलसी परम्परा के अनुसार मिष्ठान आदि को दिया जाता है ।

सोहाई और चित्र भित्ति | Sohai and Chitra Bhatti

शुबह के समय ग्राम की देवी देवताओ को जोहार और उनका आशीर्वाद लेकर के गावो में पशुधन को शोहाई बांधा जाता है । दिन के शुबह से ही अहीर ( यादव समाज ) समुदाय की स्त्रियां किसानों के घर-घर जाकर तुलसी चौरा और धान की कोठी पर पारंपरिक चित्र बनाया करती है। जिसे हाथा देना कहते हैं।

जब यादव ग्वाले चराने वाले अपने साथियो के साथ में गाजे बाजे के साथ में, राउत नृत्य करते , एक विशेष वेशभूषा को धारण करते हुए गांव में सुहाई बांधते हुए आते है तब वे तरह-तरह के दोहे के साथ में किसान के मनोकामना करते हुए एक घर से दूसरे घर में जाते है । बदले में उसे नया साल का नया धान दिया जाता है ।

उन्ही दिए गए सूपा में अन्न, द्रव्य और वस्त्रादि भेंट किया जाता है। धान को यादव (ग्वाले चराने वाले) अपने हाथो से गोबर लेकर के धान में लगाकर चित्र भित्ति अर्थात हाना के ऊपर किसान की उपज और उनकी मंगलगाथा की गुहार लगते हुए हाना में गोबर की थाप लगाते है । इसको सुख धना कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में भिन्नता भी हो सकती है। जेठौनी तक किसानों के घर में धान की नई फसल आ जाती है इसलिए वे भी गदगद रहते हैं।

जेठौनी Jethauni Tihar/गन्ना तिहार के दिन बांस के बने पुराने टुकना चरिहा को जलाकर आग तपने की परम्परा है। कहा जाता है कि पुराना टुकना जलाने से घर की सभी परेशानियों का अंत होता है और समृद्धि आती है।

देवउठनी एकादशी के बाद सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। विवाह योग्य लड़के-लड़कियों के लिए जीवनसाथी तलाश करने का कार्य प्रारंभ हो जाता है, जो पहले पूरे माघ महीने भर तक चला करती थी और फागुन में विवाह होता था।

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान चौमास के बाद जागते हैं, देव के जागने के पश्चात इसी दिन से हिन्दूओं में मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। ऐसा माना‌ जाता है और प्रकृति में उमंग उत्साह का संचार होने लगता है जो स्थान-स्थान पर आयोजित होने वाले मेले मड़ाई में दिखाई देता है।

देवउठनी लोक कथनी CHHATTISGRHI LOKKATHA

Jethauni की Chhattisgarhi folk tale एक समय में भगवान विष्णु के एक रूप का जन्म श्रापवश दैत्य कुल में हुआ जो जलंधर नाम बाद में प्रसिद्ध हुआ। उसी काल में भगवान विष्णु की परम भक्त तुलसी का जन्म भी वृंदा नाम से हुआ था।

जलंधर का विवाह वृंदा के साथ हुआ। वृंदा पतिव्रता नारी थी। जलंधर एक पराक्रमी राजा था जिन्होंने अपने मजूबत सेना और अपने पराक्रमी बल पर पृथिवीलोक और देवलोक में अधिकार कर लिया था ।

उन्हें अपनी प्रकाराम बल और साहस में इतना गर्व हो गया था की उनकी विजय एक घमड़ में बदल गया था तब उन्होंने अपने बल के ाद्धार पर भगवन सिव के अर्धागनी पारवती के रूप में मोहित हो गया था और पारवती को पाने के लिए वह शिव से युद्ध करने में उतावले थे। दोनों के मध्य खूब युद्ध हुआ लेकिन जलंधर को परास्त करना मुश्किल था क्योंकि जब तब उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रत और सतीस्तव में रहेगी तब तक जलंधर को मार पाना मुश्किल था ।

तब देवताओं ने भगवान विष्णु के पास जाकर गुहार लगाई और उनसे वृंदा का सतीत्व भंग करने का आग्रह किया। भगवान विष्णु देवताओं के इस कार्य को करने के लिए पहले तैयार नहीं हुए पर अंततः जगत कल्याण की मंशा से मान गए।

उसके पश्चात भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पूजन कक्ष में प्रवेश किया। जलंधर स्वरूप धारी भगवान विष्णु के पैरों का स्पर्श कर दिया। परपुरुष के स्पर्श से वृंदा का सतीत्व भंग हो गया और भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया।

भगवान विष्णु के इस कृत्य से आहत होकर वृंदा ने उसको तत्काल पाषाण ( पत्थर ) में बदल जाने का श्राप दे दिया और उनको भी पत्नी वियोग भुगतने का श्राप दिया जो त्रेता युग में रामावतार के समय फलित हुआ और पाषाण स्वरूप में विष्णु जी शालिग्राम के विग्रह रूप में परिवर्तित हो गये।

वृंदा के श्राप से लक्ष्मीजी विचलित हो गई तब उन्होंने वृंदा से श्राप वापस लेने का निवेदन किया तो उन्होंने पुनः विष्णु को उनके स्वरूप में ला दिया। इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को अपने चरण कमल में स्थान देने का वचन दिया। तब वृंदा अपने पति जलंधर के शीश को लेकर सती हो गई। उसके शरीर के राख से तुलसी नाम के अतिकल्याणकारी और गुणकारी पौधे का जन्म हुआ।

तुलसी के पौधे का महत्व | Importance of Tulsi plant

पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं। श्री हरि अर्थात विष्णु के भोग में तुलसी का पत्ती होना अनिवार्य है, भगवान की माला और चरणों में तुलसी का होना आवश्यक है। भगवान विष्णु के किसी भी प्रकार का पूजा पाठ मे तुलसी पत्ती अवश्य मिलाया जाता है।

आयुर्वेद में तुलसी के पौधे का बड़ा महत्व बताया गया है। एक गुणकारी औषधि के रूप में तुलसी के सभी भागो ( जड़ , पत्ती , तना , फूल , बीज आदि ) का प्रयोग किया जाता है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट,

एंटी-एजिंग, एंटी-बैक्टेरियल, एंटी-सेप्टिक व एंटी-वायरल है। इसे फ्लू, बुखार, जुकाम, खांसी, मलेरिया, जोड़ों का दर्द, ब्लड प्रेशर, सिरदर्द, पायरिया, हाइपरटेंशन आदि रोगों में लाभकारी बताया गया है।

इसके आलावा तुलसी के जल से किसी मृत आसन्न व्यक्ति को पिलाने से वह बिना किसी तकलीफ के स्वर्गवास हो जाते है । इसके आलावा घर में तुलसी के पौधे रखने वातवरण शुद्ध करता है एवं घर को सुशोभित करता है । तुलसी के जड़ो के कंठी का माला बनाया जाता है जिसे साधु माहत्मा धारण करते है

when is sugarcane festival | गन्ना तिहार कब है |

गन्ना तिहार को प्रत्येक साल इसे दीपावली के 15 दिन के बाद में मनाया जाता है । जिसे बड़े धूमधाम के साथ में इंडिया के लोगो के द्वारा मनाया जाता है ।

FAQ ANSWER

गन्ना तिहार कब है | when is sugarcane festival

गन्ना तिहार को प्रत्येक साल इसे दीपावली के 15 दिन के बाद में मनाया जाता है । जिसे बड़े धूमधाम के साथ में इंडिया के लोगो के द्वारा मनाया जाता है ।

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